शनि की वापसी- दोहरी सेंचुरी – नरेन्द्र मोदी – 2023

 शनि एक राशि में लगभग अढ़ाई साल रहते हैं और बारह राशियों में गोचर करने में शनि को लगभग 30 वर्ष का समय लगता है। जन्मकुंडली में स्थिति शनि पर शनि का दोबारा गोचर लगभग 27 से 30 वर्ष की अवधि में होता है। यह वह समय होता है जब व्यक्ति अपने करियर में लगभग स्थापित हो चुका होता है या फिर स्थापित होने का प्रयास कर रहा होता है। इससे पूर्व के जीवन में व्यक्ति ने शिक्षा अर्जित कर जो भी योग्यता पाई है उसे प्रयोग करने का यह समय होता है।

शनि को एक ही स्थान पर वापस आने में लगभग 29 वर्ष लगते हैं और उस वर्ष को शनि की वापसी कहते हैं। शनि की यह वापसी व्यक्ति को दुनिया को समझने, जानने और विश्लेषण करने के अवसर देती है। जिसके माध्यम से हम अपने जीवन को दिशा दे सकते हैं। हम अक्सर देखते हैं कि हम जीवन की एक सीधी राह में चले जा रहे होते हैं कि तभी किसी चौराहे पर आकर हमें यह निश्चित करना होता है कि अब हमें किस ओर जाना है, कौन-सी राह पकड़ने पर हम अपने जीवन लक्ष्य को पा सकेंगे।

श्री अटल बिहारी वाजपेयी

भारतीय राजनीति को एक नया आयाम देने वाले श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के जीवन के 27 से 30 वर्ष के मध्य का समय अति महत्वपूर्ण था। इस समय के दौरान अटल जी 1954 में बलरामपुर से सांसद चुने गए। मात्र इस छोटी सी आयु में यह पद पाना किसी के लिए भी सम्मान और गौरव का विषय रहेगा। इस पद के साथ ही अटल जी सक्रिय राजनीति का हिस्सा हो गए। इनकी कुंडली में शनि द्वादश भाव में उच्चस्थ अवस्था में है एवं तृतीयेश व चतुर्थेश है। इस समय इनकी शनि की साढ़ेसाती भी शुरू हुई जो इनके लिए शुभ और उन्नतिकारक साबित हुई। जन्मकुंडली में दशा भी शुक्र में शनि की प्रभावी थी। इनके जीवन की इस समयावधि को प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाने की प्रथम सीढ़ी कहा जा सकता है। शनि साढ़ेसाती की इस अवधि ने उनके जीवन को एक दिशा दी और आगे जाकर अटल जी भारतीय राजनीति का आधार बन पाए।

श्री गुलजारी लाल नंदा

गुलजारी लाल नंदा जी के जीवन को दिशा देने का कार्य 1927 में हुआ जब जन्म शनि पर गोचर शनि का विचरण हुआ। गुलजारी लाल नंदा जी की कुंडली मेष लग्न और धनु राशि की है। शनि इनके अष्टम भाव में स्थित है। वृश्चिक राशि में स्थित शनि पर 1925 से 1926 के मध्य रहा। यह समय इन्हें राजनीति जीवन में लेकर आया।

श्रीमती इंदिरा गांधी

शनि 1945 से 1946 की अवधि में शनि इनकी जन्म राशि पर गोचर कर रहे थे। उस समय इनके जीवन में बदलाव हुआ और इंदिरा गांधी ने पारिवारिक जीवन में माता की भूमिका की शुरूआत की। इसके बाद जब शनि दोबारा 1975 में इनके जन्म  शनि पर गोचरवश आए तो इन्होंने देश में आपातकाल लागू किया। अपनी सत्ता को बचाने के लिए इन्होंने यह कदम उठाया जो जीवन के अंत तक इनके लिए आलोचना का कारण बना। 1984 में इनकी मृत्यु के समय शनि इनके चतुर्थ भाव पर गोचर कर, लग्न में स्थित जन्म शनि को प्रभावित कर रहा था जो इनकी मृत्यु की वजह बना।

जवाहरलाल नेहरू

जवाहर लाल नेहरू जी के जीवन का 1918-1919 वर्ष की अवधि का समय राजनीतिक जीवन में प्रवेश का समय कहा जा सकता है। जवाहर लाल नेहरू इस समय महात्मा गांधी के संपर्क में आए और इन्होंने राजनीतिक जीवन की इनसे इस समय में दीक्षा ली। यह वह समय था जब इन्होंने महात्मा गांधी के साथ मिल कर रॉलेट रॉलेट अधिनियम ने खिलाफ आंदोलन किया। इस समय ही सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी इनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। इसके बाद 1947 से 1948 की अवधि का समय इनके जीवन का सबसे खास समय था क्योंकि इसी दौरान वह स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने। तत्पश्चात शनि जब इनके जन्म शनि से गोचर में सप्तम भाव में आए और जन्म शनि को गोचर में सक्रिय किया तो वह इनके परलोक गमन का समय था। यह वर्ष था 1964 का। इनकी जन्मकुंडली कर्क लग्न और कर्क राशि की है। शनि इनकी कुंडली में सिंह राशि में स्थित है। जीवन में शनि भी इनके जन्म शनि से गुजरे, इनका जीवन बदल गया।

नरेन्द्र मोदी – 2023

अब बात करते हैं श्री नरेंद्र मोदी की। इनकी कुंडली वृश्चिक लग्र और वृश्चिक राशि की है। शनि इनके दशम भाव में सिंह राशि में स्थित हैं। इनका जन्म 1950 में हुआ और शनि इन पर 1977 में आए। उस समय नरेंद्र मोदी आर।एस।एस। में महत्वपूर्ण भूमिका में सामने आए। इसके बाद 2022 से 2023 के मध्य शनि जन्म शनि से सप्तम भाव पर गोचर करेंगे।

यह बात आज किसी से छुपी नहीं हैं-दुनियाभर में फैले आतंकवादियों के मन में नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी शासन के विरुद्ध घृणा दिनप्रतिदिन बढ़ रही हैं। इसका प्रभाव आगे क्या रहेगा, ज्योतिष के माध्यम से विश्लेषण करने की कोशिश करते हैं। नरेन्द्र मोदी की जन्म पत्रिका की सबसे बड़ी खासियत केन्द्र स्थानों में पाँच ग्रहों का उपस्थित होना है। इससे भी बड़ा एक राजयोग है जिसमें चन्द्रमा से केन्द्र में स्थित बृहस्पति से बन रहे गजकेसरी योग को चन्द्रमा से ही केन्द्र में बैठे शुक्र का सहयोग मिल रहा है। चतुर्थ भाव में बैठे बृहस्पति को दशम भाव में बैठे शुक्र दृष्टिपात कर रहे हैं, बल्कि दोनों ही ग्रह एक-दूसरे पर दृष्टिपात करके इस योग को कई गुना अधिक शक्तिशाली बना रहे हैं। 

नरेन्द्र मोदी की जगत ख्याति का रहस्य उनके जिस योग में छिपा हुआ है, वह यह है कि लग्न में स्थित मंगल चतुर्थ भाव को दृष्टिपात कर रहे हैं। उधर चतुर्थ भाव के स्वामी शनि चतुर्थ भाव पर दृष्टिपात कर रहे हैं। याद रहे दशम भाव में स्थित शनि व्यक्ति को थोड़ा सा डिक्टेटर बनाते हैं। नेपोलियन बोनापार्ट, अल्बर्ट आइंस्टीन, मार्टिन लूथर किंग, शेख मुजीबुर्र रहमान आदि के दशम भाव में शनि थे। ये सब इतिहास बनाने में सफल हुए। क्या नरेन्द्र मोदी की कुण्डली में ऐसा है? 

 अनुमान है कि देश के बाहर के कुछ संगठन व देश के अन्दर ही कुछ लोग नरेन्द्र मोदी की जान के लिए खतरा हैं।  आप गौर करें कि जो लोग भारत में शासन के दावेदार रहे हैं, उनके आसपास के या विश्वसनीय कुछ लोगों की मृत्यु स्वाभाविक ढ़ंग से नहीं हुई है। जनता में अफवाहें भी रही हैं। सत्ता के लिए संघर्ष न केवल खिलजियों, मुगलों, तुर्क व मंगोलों में रहे हैं बल्कि सम्राट अशोक के बारे में भी यह कथन है कि सम्बन्धियों के बहुत बड़े रक्तपात के बाद वे शासन में आये थे। सत्ता का चरित्र ही यही है। सत्तासीन लोगों को हटाये बिना शासन प्राप्ति संभव नहीं है। लोकतंत्र में चुनाव के माध्यम से व तानाशाही में बल प्रयोग या रक्तपात के माध्यम से ऐसी कोशिशंग सदा ही हुई है। परन्तु नरेन्द्र मोदी की कुण्डली में मध्यम आयु के योग हैं। 

नरेन्द्र मोदी का आयु योग – 

जैमिनी ऋषि ने आयु गणना के जो तीन आयाम बनाये हैं, उनमें वे एक ऐसे योग का लाभ पा रहे हैं जो अपवाद स्वरूप है। ‘पितृलाभगे चन्द्रे, चन्द्र मन्दाभ्याम्’ अगर लग्न या सप्तम भाव में चन्द्रमा हों तो चन्द्रमा और शनि की स्थिति से ही आयु निर्धारण करना चाहिए। उनके चन्द्रमा स्थिर राशि में हैं और शनि भी स्थिर राशि में हैं। दोनों स्थिर राशि में होने से उनको मध्यायु का योग बना है, जिसकी ऊपरी सीमा 80 वर्ष है। अगर केन्द्र में बृहस्पति हों तो कुछ आयु और भी बढ़ जाती है। शनि पर बृहस्पति की दृष्टि होने के कारण कक्षा हानि भी नहीं होगी। अर्थात् मध्यायु योग बना रहेगा। किसी कारण से कक्षा हानि होती भी है तो एक अन्य योग उपलब्ध है- ‘रोगेशे तुंगे नवांश वृद्धिः’’ अर्थात् अष्टमेश यदि उच्च राशि में हो तो नौ वर्ष आयु और मिल जाती है। लग्न में अपनी ही राशि में बैठे मंगल आयु योग को पुष्ट करते हैं। इनके आत्मकारक शनि से त्रिकोण स्थान शुद्ध है और आयु हानि नहीं करते हैं। इन सब बातों से नरेन्द्र मोदी मध्यायु योग के ठहरते हैं जिसकी औसत गणना 80 वर्ष की है। 

क्या उनकी मारक दशाएँ चल रही हैं?

नहीं, वे इस समय मंगल महादशा की राहु अन्तर्दशा में चल रहे हैं, जो कि मई 2023 तक रहेगी। उसके बाद गुरु अन्तर्दशा रहेगी जो कि अप्रैल 2024 तक रहेगी और उसके बाद मंगल महादशा की शनि अन्तर्दशा रहेगी जो कि अप्रैल 2024 से मई 2025 तक रहेगी।   जनवरी, 2023 से मार्च, 2025 तक शनिदेव कुम्भ राशि में रहेंगे और इस समय वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चतुर्थ भाव में भ्रमण करते हुए उनकी लग्न पर दृष्टिपात करेंगे। शनि की लग्न पर दृष्टि अच्छी नहीं मानी जाती। इस अवधि में ही वे दो बार वक्री भी होंगे, 18 जून, 2023 से कुछ महीनों के लिए तथा जून, 2024 से कुछ महीनों के लिए। राशि कुम्भ ही रहेगी। परन्तु उनको प्रथम तो बृहस्पति ही मीन राशि में रहते हुए लग्न पर दृष्टिपात करेंगे और अप्रैल 2023 तक सुरक्षित रखेंगे। इसके बाद बृहस्पति देव मेष राशि में आ जाएंगे जो पुनः आयु रक्षा करेंगे। मई 2023 से अप्रैल, 2024 तक बृहस्पति की अन्तर्दशा है और जब पुनः शनि की अन्तर्दशा आएगी तब उनके बृहस्पति वृषभ राशि में रहते हुए एक वर्ष तक लग्न पर दृष्टिपात करेंगे। इसका मतलब आयु को खतरा नहीं है। आतंकवादी उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएंगे। बल्कि कुम्भ राशि के शनि शत्रुहंता योग बना रहे हैं और उनकी लोकप्रियता को और भी बढ़ा देंगे।

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