भाजपा में वरिष्ठ नागरिकों की दशा

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वीरेन्द्र जैन

पिछले दिनों विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस 1 अक्टूबर को नई दिल्ली में आयोजित एक गैर सरकारी संस्था ‘सम्पूर्णा’ की ओर से वरिष्ठ नागरिकों क सम्मान किया गया था। इस सम्मान समारोह में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा था कि न केवल समाज सेवी संस्थाएं और सरकार अपितु औद्योगिक घरानों को भी वरिष्ठ नागरिकों की सेवा के लिए आगे आना चाहिए ताकि वरिष्ठ नागरिकों के अनुभव का प्रयोग देशहित में किया जा सके। उस समय ऐसा लगा था कि वे देश के बड़े औद्योगिक घरानों के प्रमुख मुकेश अम्बानी, रतन टाटा आदि ने गुजरात में औद्योगिक लाभ की अनुकूलता के लिए मोदी की जो तारीफें की थीं उससे प्रभावित होकर ही प्रधानमंत्री पद हेतु लालायित अडवाणीजी ने उनसे ‘अनुभव’ अर्थात उन्हें न भुलाने का परोक्ष सन्देश दिया था। पर पिछले दिनों मध्य प्रदेश में घटित घटनाक्रम से ऐसा लगा कि इस राजनीतिक दल में बहुत सारे वयोवृद्ध सचमुच ही ‘यूज अंड थ्रो’ से पीड़ित चल रहे हैं।

गत दिनों भोपाल के पूर्व भाजपा सांसद सुशील चन्द्र वर्मा ने पार्टी में अपनी उपेक्षा से दुखी होकर छत से कूद कर आत्महत्या कर ली। गत 19 साल से लगातार उनके ड्राइवर रहे श्री रामवीर गौड़ ने इस दुखद अवसर पर संवाददाताओं को बताया कि वे भाजपा नेतृत्व द्वारा अपनी उपेक्षा से बहुत दुखी रहते थे। स्मरणीय है कि भाजपा ने देश की सत्ता हथियाने के अभियान में अनेक क्षेत्रों के लोकप्रिय लोगों को पार्टी में सम्मलित किया था, श्री वर्मा भी उनमें से एक थे। वे मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव रहे थे और अपनी ईमानदारी, समझदारी, व कार्य के प्रति समर्पण के लिए बहुत मशहूर थे। बाबुओं का शहर कही जाने वाली मध्यप्रदेश की इस राजधानी में सरकारी कर्मचारियों और कायस्थ समाज ने श्री वर्मा को जिताने के लिए जी जान लगा दी थी और उनके कारण ही 1967 में जगन्नाथ राव जोशी [जनसंघ] के बाद 1989 में भोपाल से पहली बार कोई भाजपा का सांसद चुना गया था। बाद में भी श्री वर्मा लगातार 1991, 1996, 1998 में चुने जाते रहे थे। उनकी अपनी लोकप्रियता और सम्पर्कों ने ही मध्य प्रदेश की राजधानी में भाजपा को जड़ें जमाने का मौका दिया था। वरिष्ठ आईएएस अधिकारी रहे इस राजनेता ने अवसर आने पर अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा का भी सार्वजनिक विरोध करने से गुरेज नहीं किया था।

19 वर्ष तक पुत्रवत स्नेह पाये उनके ड्राइवर श्री रामवीर गौड़ ने दुखी मन से पत्रकारों को बताया था कि उसे याद नहीं कि उनके द्वारा पोषित यह सीट उनसे छीन लेने के बाद शायद ही कोई भाजपा नेता उनसे मिलने घर आया हो, पर जब तक उनके पास कुर्सी थी तब तक नेताओं की कतारें लगी रहती थीं। मुख्यमंत्री बनने के बाद एक बार बाबूलाल गौर उनसे सदस्यता का फार्म भरवाने के लिए आये थे, पर उन्होंने साफ इंकार कर दिया था। जो अडवाणीजी हर बार टिकिट देने से पहले उनसे बात करते थे उन्होंने भी उनका टिकिट काटने और उमा भारती को टिकिट देने से पहले उनसे बात भी नहीं की थी। खुद को नजरान्दाज किये जाने का यह दुख उन्हें लगातार सालता रहता था यही कारण था कि वर्माजी उसके बाद कभी भी भाजपा के किसी भी कार्यक्रम में नहीं गये। स्मरणीय है कि जिस तरह देश में कार्यरत बहु राष्ट्रीय कम्पनियां देश के जवान खून की प्यासी हैं और अच्छे वेतन का लालच देकर उन्हें चूस चूस कर फेंक रही हैं उसी तरह भाजपा भी किसी भी क्षेत्र में लोकप्रियता प्राप्त व्यक्ति की लोकप्रियता को भुना कर उसे फेंक देने में भरोसा रखती है। वर्तमान में भोपाल के सांसद कैलाश जोशी दशकों तक मध्यप्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे हैं जिनके द्वारा विधानसभा में की गयी बहसों का एक संकलन पिछले दिनों प्रकाशित हुआ है। इस संकलन को पढकर उनके गौरवमयी इतिहास का पता चलता है। पर भाजपा द्वारा सुषमा स्वराज को सुरक्षित सीट देने के लिए श्री जोशी का टिकिट काटा जा रहा था जिसे पाने के लिए उन्हें जी जान लगा देनी पड़ी थी। मध्य प्रदेश में ही लगातार जीतने का रिकार्ड बनाने वाले वरिष्ठ बाबू लाल गौर को हटाकर युवा शिवराज सिंह को बैठा दिया गया जबकि बहुमत उमा भारती के साथ था। इन्हीं बाबूलाल गौर ने जब अभी हैड क्वार्टर नागपुर जा कर प्रदेश की जर्जर सड़कें और शासन- प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार की शिकायत की तो मुख्यमंत्री के चापलूसों द्वारा उनको बुढापे में मुख्यमंत्री पद के लिए ललचाने वाला व्यक्ति कह कर उनकी खिल्ली उड़ाई गयी। प्रदेश में न केवल मुख्यमंत्री ही वरिष्ठता को लाँघ करके ही बनाया गया अपितु पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष पद भी स्थानीय वरिष्ठों की उपेक्षा कर बाहर के लोगों से भर दिया गया। जो अडवाणीजी औद्योगिक क्षेत्र के लोगों से अनुभव को सम्मान देने की अपील करते हैं वे ही अपनी पार्टी शासित राज्यों में अनुभव को दूर रखे जाने पर मौन बने रहते हैं।

उम्र की वरिष्ठता के कारण जब भाजपा के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी सार्वजनिक जीवन से दूर होने को विवश हो गये पर पोस्टरों पर से उनके फोटो न छापे जाने का फैसला तो नीति के रूप में लिया गया। सिकन्दर बख्त, जेना कृष्णमूर्ति मदनलाल खुराना, से लेकर केशुभाई पटेल तक एक लम्बी श्रंखला है। फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र तक को यह कह कर विदा होना पड़ा था कि इस पार्टी ने मुझे बहुत इमोशनली ब्लेकमेल किया। उधार के सिन्दूर से सुहागन बनी फिरती इस पार्टी का आधार जिन लोकप्रिय व्यक्तियों की लोकप्रियता पर टिका हुआ है यदि सुशील चन्द्र वर्मा की शहादत से समय रहते उन्हें समझ आ गयी तो वे इस पार्टी को उमाभारती और शत्रुघ्न सिन्हा की तरह नचाने लगेंगे।

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