पनघट और मरघट सदैव जग में चलती रहती

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पनघट पर प्यास है बुझती,
मरघट पर लाशे है जलती।
देखो यह जीवन की धारा,
सदैव जग में चलती रहती।।

पनघट पर सब पानी है पीते,
मरघट पर सब प्राण है देते।
चलती रहती ये सदैव प्रक्रिया,
हंसते रहते हम ही रोते रहते।।

पनघट पर कोलाहल है होता,
मरघट पर मौन व्रत है होता।
एक तरफ मेला लगा हुआ है,
दूसरी तरफ मन शांत है होता।।

पनघट पर पनहारिन है आती,
मरघट पर रिश्तेदार व नाती।
पनघट से सब पानी है लाते,
मरघट से सब राख ले जाते।।

पनघट पर पानी के घड़े होते,
साथ वहां रस्सी व डोल होते।
मरघट में ये सब नही मिलता,
केवल शांति के अंबार है होते।।

पनघट पर कुएं है खूब गहरे,
मिलेगे वहां चमकते हुए चेहरे।
रस्तोगी दोनो में अंतर बताए,
मरघट में मिलेगे दुखी चेहरे।।

आर के रस्तोगी

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आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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