मोहनजोदड़ो की नारियां जो साड़ी सिंदूर पहनती थी वही आर्या सीता सावित्री व हिन्दू भार्या पहनती

—विनय कुमार विनायक
तुम दस हजार साल की पुरानी भारतीय सभ्यता
व संस्कृति की बात किस मुंह से करते?
दस हजार साल की धर्म संस्कृति सभ्यता की बात
वही कर सकते जो सनातन धर्म के
किसी मत पंथ से जुड़े वंश परम्परा को मानते!

तुम तो खुद को खुदा बाबा आदम के पोते
अरबी फारसी तुर्की के पिंजरबंध रट्टू तोते समझते!

तुम नहीं जानते कि मोहनजोदड़ो हड़प्पा सभ्यता की
नारियां जो साड़ी चूड़ियां व सुहाग सिंदूर पहनती थी
वही साड़ी चूड़ियां सिंदूर आर्या सीता सावित्री दमयंती द्रोपदी
व आज की हिन्दू बौद्ध जैन सिख माता बहनें भार्या पहनती!

तुम नहीं जानते कि दस हजार साल से
आजतक समस्त सनातनी हिन्दू बौद्ध जैन सिख आर्यसमाजी
अपने मृत परिजनों को मुखाग्नि तिलांजलि जलांजलि देते रहे
बोधगया में, जहां भगवान राम ने पिताश्री दशरथ व पूर्वजों को
पिंडदान दिए पशु पक्षी कौए को अन्न जल मिष्ठान खिला के!

उसी बोधगया में बुद्ध ने जन्म मृत्यु का रहस्य सुलझाए थे,
वटवृक्ष देवता को पूजती एक हिन्दू नारी सुजाता की खीर खाके!

उसी बोधगया में आज भी सनातनी हिन्दू मृत पूर्वजों को
पिंडदान जलदान तिलांजलि देकर उनकी मुक्ति याचना करते
भला बताओ किस मजहब में रब को, मानव को, पूर्वज को
जीवन व मृत्यु के बाद भी परम्परा रही पिंडदान जलदान की?

तुम अपने पूर्वजों के जिन आक्रांताओं को अपने आका मान बैठे,
वे भाईयों रिश्ते के हत्यारे, पिता को जेल में जल बिना मारे थे!

तुम नहीं जानते कि राम, कृष्ण, बुद्ध, चौबीस तीर्थंकर
और दस गुरुवर कश्यप अदिति पुत्र सूर्य आदित्य संतति
मनुवंशी क्षत्रिय, आदित्य विष्णु के ही अवतारी ईश्वर थे!

हिन्दुओं के सारे अवतार, बौद्धों के भगवान बुद्ध आर्य भंते,
जैनों के सारे तीर्थंकर व सिख गुरुओं के मुखमंडल के चहुंओर
सूर्य की आभा फैली होती, आदित्य विष्णु के सुदर्शनचक्र जैसी!

कोई नहीं कह सकता और ना ही किसी इतिहास में लिखा
कि बौद्ध जैन सिख के मठ विहार चैत्य व गुरुद्वारे तोड़कर
हिन्दुओं के मंदिर बने, मठ मंदिर गुरुद्वारे में सारे ईश्वर,
अवतार, गुरु, धर्मग्रंथ, पवित्र पंचनद गंगाजल साथ-साथ रहते,
ॐ स्वास्तिक चिन्ह शुभ लाभ श्री श्री उकेरे गए होते,
राम से गुरु गोबिंद सिंह को शिवा भवानी आशीष देते!

विष्णु के गरुड़ को देखो, बाजांवाले गुरुगोविंद के बाज देखो,
सभी कश्यप विनता संतति; अरुण गरुड़ संपाति जटायु बाज
विष्णु के सारे अवतारों के रक्षक सेवक सखा बंधुवर लगते!

विष्णु के सिर के पीछे शेषनाग, राम के लघु भ्राता शेषावतार,
बेड़ीबंधी कोख से जन्मे कृष्ण की छतरी यमुना के नाग फनधर,
तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के सिर पर शोभित नागफन को देखो,
और समझो शिव के सारे नाग विष्णु के अवतारों के मित्र रक्षक
सुह्रदवर शेषावतार लक्ष्मण व बलराम सरीखे अनुज व अग्रज थे!

राम से गुरु गोविंद सिंह तक ने ना कभी पीठ पीछे वार किए,
जब भी युद्ध किए तो आमने सामने छाती पर वक्ष फुलाकर,
सूर्यवंशी राम, सोमवंशी कृष्ण, सोढ़ी क्षत्रिय/खत्री गुरु गोबिंद ने
युद्ध क्षेत्र के बाहर नहीं कभी किसी दुश्मन का संहार किए थे!

दशमेश पिता गुरु गोबिंद सिंह जी की महानता का क्या कहना
जिन्होंने प्रपिता गुरु अर्जुनदेव, पिता गुरु तेगबहादुर माता गुजरी,
चार पुत्र अजित जुझार जोरावर फतेहसिंह स्वयं सहित सर्वबंश की
मुगलों को बली देकर न कभी विषबुझे तीर से तुर्को से मार किए
बल्कि उतने भर के स्वर्ण अभिमंडित बाण से शत्रु पर प्रहार किए
जिसकी कीमत से युद्धभूमि के बाहर उपचार पा ले जीवन बचा ले!

तुम्हें ज्ञात नहीं है कि सनातन धर्म के सारे अवतार तीर्थंकर गुरुवर
मनुर्भरती थे, स्वायंभुव मनु पौत्र आदिनाथ वृषभदेव थे प्रथम तीर्थंकर
सारे अवतार तीर्थंकर बोधिसत्व गुरुवर धर्म सुधारने आए धरा पर
सबके प्रतिपाद्य विषय वेद उपनिषद ज्ञान विस्तार, मानव उद्धार
जैन मत में राम कृष्ण अरिहंत की कथा कही गई, बुद्ध विष्णुवतार
गुरुग्रंथ साहिब में राम नाम महिमा सिमरन, शिवा भवानी मंत्रोच्चार!

वो क्या जाने दस हजार साल से शुद्ध बुद्ध अमिताभ बनकर
उभरे निखरे सनातन हिन्दू धर्म पंथों की गहराई को, जिसके सिर
विधर्मी आक्रांता-अताताईयों के पीर पिशाच भूत प्रेत बैठे चढ़कर!

हिन्दू उसे कहते जो सुबह मंदिर शिवालय जाकर जल चढ़ाते,
दोपहर में किसी चैत्य विहार में जाकर बुद्ध जिन के पैर छूते,
संध्या में गुरुद्वारा जाकर मत्था टेककर गुरुवाणी पाठ सुनते!

वो क्या जाने हिन्दू बौद्ध जैन सिख के अंतर
जिसे सृष्टि के रचनाकार विधाता ना जान सके
एक हिन्दू घर का बड़ा बेटा अक्सर सिख बन जाते
बांकी बेटे सनातनी हिन्दू आर्य समाजी बनकर रहते!

शहीद सरदार भगत सिंह आर्य समाजी
सिख अर्जुनसिंह सोंधी के उपनयनधारी
केस कंघा कड़ा कच्छ कृपाणधारी पौत्र थे!

कुछ पथवंचित नवबौद्धों की क्षुद्र प्रलाप
और विदेशी खालिस्तानी बेसुरे आलाप से
हिन्दू बौद्ध जैन सिख आर्य समाज को
अलग-अलग धर्म मज़हब नहीं समझना!
—-विनय कुमार विनायक

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