क्या लठ के बल पर आरक्षण ले पाएंगे हरियाणा के जाट ?

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जग मोहन ठाकन

अब आरक्षण के लिए कुछ भी करेगा हरियाणा का जाट. दिल्ली का घेराव होगा. जाट युवा सेना का होगा गठन. जरूरत पड़ी तो लाठी-जेली लेकर सड़क पर उतरेंगे जाट. हर तरह की कुर्बानी को कसी कमर. सितम्बर माह में छिड़ेगी जंग.

उपरोक्त ऐलान हुए हिसार, हरियाणा में १६ अगस्त, २०१५ को हुई जाटों की खापों के क्षत्रपों एवं जाट आरक्षण संघर्ष समिति की बैठक में. प्रदेश स्तरीय बैठक में करीब चार घंटे के मंथन के बाद जंग का ऐलान कर दिया गया. अब जाट २८ सितंबर को दिल्ली का घेराव करेंगे. दिल्ली को मिलने वाली बिजली, दूध, सब्जी व अन्य आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई ठप्प की जाएगी. आन्दोलन का संचालन ५१ सदस्यीय कमेटी करेगी. जाट आन्दोलन में जोश भरने व लाठी-जेली का प्रदर्शन करने हेतु युवा जाटों की कमांडो फ़ोर्स का गठन किया जाएगा, जिसे सेना के रिटायर्ड अधिकारी प्रशिक्षित करेंगे. परन्तु इस आन्दोलन को राजनीति से दूर रखा जाएगा. काजला खाप के प्रधान राजमल काजला ने जाटों को एकजुट होने का सन्देश देते हुए कहा,“ यदि सभी जाट एकजुट नहीं होंगे तो आरक्षण नहीं मिलेगा. इस आन्दोलन को राजनीति से भी दूर रखना होगा.”

jaatजाट कल्याण सभा के प्रधान अत्तर सिंह संधू ने कहा कि गुर्जरों की तरह आन्दोलन करना होगा. एकजुट होकर अपनी ताकत दिखाओ तो सरकार खुद तुम्हारे पास चलकर आएगी.

अखिल भारतीय जाट संघर्ष समिति के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष हवा सिंह सांगवान ने कहा कि आरक्षण आन्दोलन में यदि जेली-लाठी का भी प्रयोग करना पड़ा तो भी जाट नहीं हिचकेंगे.

अब प्रश्न उठता है कि क्या जाटों को लाठी के बल पर आरक्षण मिल पाएगा? इस पर जाट विचारक कहते हैं –“जिसकी लाठी उसकी भैंस” अब भी सत्य है, यदि दारोगा(सरकार) पक्ष में हो. राजस्थान के गुर्जरों को लाठी के बल पर ही आरक्षण मिला है. जाटों को भी हरियाणा में ‘फेवरेबल’ कांग्रेसी सरकार होने के कारण ही ठीक लोक सभा चुनावों से पहले आरक्षण की लालीपॉप दी गयी थी, जो २०१५ में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी. इस पर जाट विचारक मानते हैं कि दोनों ही प्रमुख राजनैतिक पार्टियों ने जाटों को ठगा है. कांग्रेस को अगर जाट आरक्षण देना ही था तो क्यों नहीं सभी कानूनी पेचीदगियों पर ठोस विचार विमर्श करके आरक्षण दिया गया? क्या कांग्रेस सरकार के पास कानूनविद वकीलों व अधिकारियों की कमी थी जो आरक्षण का फैसला सुप्रीम कोर्ट में धराशाही हो गया? क्यों नहीं कांग्रेस ने सभी आवश्यक प्रक्रियाओं व कदमों की अनुपालना की? विचारक इस खामी के पीछे कांग्रेस का दोमुहा आचरण मानते हैं. उनका मानना है कि कांग्रेस जाटों के वोट लेने के लिए लालीपॉप दे गयी थी और ऐसे कानूनी छेद छोड़ गयी जो बाद में कोर्ट में आरक्षण को गलत सिद्ध करने में बालू रेत के बाँध की तरह बहा ले गए.

जाट विचारक भाजपा सरकार के संकेतों को भी जाट आरक्षण में टांग अडाने वाले मानते हैं. उनका सोचना है कि भाजपा सरकार ने भी कोर्ट में उचित एवं  प्रभावकारी पैरवी नहीं की. भाजपा के कुरुक्षेत्र से सांसद राजकुमार सैनी द्वारा बार बार जाट आरक्षण के विरोध में ब्यान दिया जा रहा है कि ओ.बी.सी. के २७ प्रतिशत कोटे में किसी को भी डाका नहीं डालने दिया जाएगा. सैनी ने खुली चेतावनी दी है कि जो भी ओ.बी.सी. कोटे में सांझेदार होने की बात करेगा हम उसका विरोध करेंगे. उल्लेखनीय है कि जाट आरक्षण विरोधी कुछ जातियां जाटों पर दबंग जाति का ठप्पा लगाकर जाट आरक्षण का विरोध कर रही हैं. इस पर प्रतिक्रया व्यक्त करते हुए हाल ही में दलित धर्म परिवर्तन के कारण खबरों में आये गाँव भगाना(हिसार) के सरपंच राकेश पंघाल कहते हैं-,“ जाट क्यां के दबंग सैं? रिश्ते म्हारे नहीं होंदे, नौकरी म्हारे बालकां नै ना मिलदी, आरक्षण म्हारा खोस लिया,फेर हम क्यां के दबंग सां?”

क्या भाजपा का एक सांसद बिना पार्टी लाइन के ही जाट आरक्षण का विरोध कर रहा है? जाट विचारकों के गले यह बात नहीं उतर रही है. जाट विचारक तो यहाँ तक मान रहे हैं कि भाजपा सरकार पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल की पालिसी का अनुसरण कर जाटों कि उपेक्षा कर रही है और जाट-गैर जाट का विभाजन किया जा रहा है. क्योंकि भाजपा को लग रहा है कि जाट तो हमेशा त्रिकोणीय गुटों में बंटा रहता है इसलिए भाजपा को मजबूती देने व आगामी चुनावों में गैर-जाट मतदाताओं को लुभाना ज्यादा लाभकारी है. वर्तमान सरकार में न तो केंद्र में और न ही प्रदेश में ऐसा कोई प्रभावशाली व दबंग जाट नेता है जो जाटों की आवाज उठा सके. बल्कि वे तो अपनी मंत्री पद की कुर्सी को बचाने में ही मशगूल हैं. अब समय आ गया है कि जाटों को बाहुबल के साथ-साथ बुद्धिबल का भी प्रयोग करना पड़ेगा. जाट विचारक एवं भूमि विकास बैंक के पूर्व वाईस चेयरमैन वेदपाल हरियावासिया का मानना है कि जाटों को खापों की विभाजन रेखा छोड़कर पहले ‘जाट’ होना होगा और फिर अन्य जातियों से अलग थलग पड़ चुके जाटों को अपनी संवर्गीय जातियों का समर्थन लेना व देना होगा. हिसार की विचार सभा में भी इस बात पर चर्चा हुई है और सहमती भी बनी है कि हरियाणा में स्पैशल बैकवर्ड जातियों(एस.बी.सी.) के आरक्षण में जाटों के साथ रोड़, बिश्नोई, सिख व त्यागी जातियों को भी आरक्षण दिया गया था, जो कोर्ट ने खारिज कर दिया है. अतः सभा में जाट विचारकों ने फैसला लिया है कि उन चारों जातियों को भी इस आरक्षण की लड़ाई में शामिल किया जाएगा. जाटों ने गुजरात के पटेल समुदाय को भी आन्दोलन में अपने साथ जोड़ने का निर्णय लिया है.

परन्तु क्या जाट आरक्षण में लगे नेता अपनी चौधराहट छोड़ने को तैयार हैं? क्या वे आरक्षण से वंचित इन सभी जातियों को मिलाकर सरबत जाट(सिख, रोड़,बिश्नोई,त्यागी,जाट) आरक्षण मंच के बैनर तले लड़ाई लड़ने को तैयार हैं? क्या जाट अन्य जातियों से सहयोग मांगने हेतु हाथ बढ़ाएंगे ? लगता तो मुश्किल है कि जाट अपने अहम को छोड़ पाएंगे. एक अन्य जाट विचारक रमेश राठी का कहना है-,“ व्हेन आल द हॉर्सेज, फोर्सेज एंड सौर्सेज सीज टू बी इफेक्टिव, देन एंड ओनली देन अ जाट विल बेग एंड परे फॉर.”

वैसे भी हरियाणा में एक कहावत है-,“ जाट भगवान नै जिदे याद करै सै, जब चौगरदे तैं पाणी की भर ज्या.”

तो ऐसी स्थिति में जबकि सुप्रीम कोर्ट जाट आरक्षण को रद्द कर चुका है तब क्या सरकार पर जेली-लाठी का दवाब डालकर जाट बिना कोई वैधानिक हल खोजे आरक्षण ले पाएंगे?

 

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