उत्तर भारतीयों के हालात के लिए दोषी कौन?

ठाकरे परिवार ने अपनी राजनीति चमकाने या अन्य किसी कारण से उत्तर भारतीयों या बिहारियों के खिलाफ फिर से मोर्चा खोल रखा हैं और उत्तर भारतीय नेताओं ने उन्हे निशाने पर ले रखा है। इन सारे विवादों से जो एक बात निकल कर सामने आ रही है वो ये की उत्तर भारतीय नेता हद से ज्यादा ढीठ और बेशरम हो गए हैं, एक जिम्मेदार पिता अपने छोटे बच्चे को भी उस पड़ोसी के घर कभी नहीं जाने देता है जहां उसके बच्चे का सम्मान न हो या उसे डांटा गया हो पर हमारे ये उत्तर भारत के नेतागण उस पड़ोसी से ही लड़ रहे हैं की हम तो अपने लोगों को आपके घर भेजेंगे जो करना हो कर लो जबकि होना ये चाहिए था की यहाँ के नेता कहते कि हम अपने लोगों को अपने यहाँ ही रोजगार के अवसर उपलब्ध कराएंगे जो वापस आना चाहे मुंबई छोडकर आ जाये। आखिर हमारे इस उत्तर भारत मे किस चीज की कमी है? इतना विशाल क्षेत्रफल जो खनिज संपदावों से भरा हुआ है, भारत की प्रमुख नदियों से सिंचित ये क्षेत्र सदा से कृषि मे उन्नत माना जाता रहा है, बौद्धिक सम्पदा मे तो आज भी कोई तोड़ नहीं है, टॉप क्लास के IAS IPS, डॉ॰, इंजीनियर पैदा करने वाला यह क्षेत्र क्या इतना पंगु हो चुका है की वो अपने लोगों को दो वक्त की रोटी नहीं दे सकता? क्या ये वही उत्तर भारत है जो प्राचीन काल से ही समृद्ध और शक्तिशाली रहा है? मगध, पाटलीपुत्र(पटना), काशी(वाराणसी), अवध, मथुरा आदि जैसे शक्तिशाली और समृद्ध राज्य क्या यहीं थे? नालंदा और काशी जैसे विश्व प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान देने वाला यह क्षेत्र दिनो दिन हर क्षेत्र मे आखिर क्यों पिछड़ता जा रहा है? इन सारे प्रश्नो पर यदि ठीक से विचार किया जाय तो सिर्फ एक ही बात सामने आती है कि इस क्षेत्र ने आजादी के बाद से निकम्मे नेताओं का कुछ ज्यादा ही उत्पादन कर दिया है जो बस भाषण देना, जातिवादी और तुष्टीकरण की राजनीति करना और अपनी जेबें भरना ही जानते हैं, अगर उनमे जरा भी इस क्षेत्र से और यहाँ के लोगों से प्यार होता तो आज यहाँ के हालात ऐसे ना होते क्योंकि यहाँ के अधिकतर नेता राष्ट्रीय क्षवि वाले हैं और ज्यादातर सत्ता मे ही रहते हैं और तो और भारत सरकार का रिमोट जिसके हाथ मे है वो मैडम भी इसी क्षेत्र से हैं। आजादी के पैंसठ साल बीतने के बाद भी इस क्षेत्र के नेतावों ने आखिर ऐसे प्रयास क्यों नहीं किए कि मुंबई जैसा एक महानगर इस उत्तर भारत या कहें की यूपी, बिहार मे भी बन सके? अगर मुंबई मे बनने वाली हिन्दी फिल्मे उत्तर भारत मे ना देखी जाएँ या उनका निर्माण उत्तर भारत मे करने के उपाय किए जाएँ तो वहाँ की पहचान बन चुके बॉलीवुड का खात्मा हो जाये और सायद मुंबई का ग्लैमर भी, और कुछ हद तक माइग्रेशन पर भी रोक लगे क्योंकि की उत्तर भारत से मुंबई जाने वालों मे से ज़्यादातर लोग बॉलीवुड मे काम करने का सपना ही लेकर जाते हैं। आखिर ये बात तो समझ से परे है कि जब तमिल फ़िल्मे तमिलनाडू मे तेलगु आंध्रा मे, कन्नड कर्नाटक मे मराठी महाराष्ट्र मे पंजाबी पंजाब मे बनती हैं तो हिन्दी फिल्मे महाराष्ट्र मे क्यों बनती हैं?

हम जिस संविधान कि दुहाई देकर भारत मे कहीं भी बसने या काम करने का राग अलापते रहते है क्या हमे उसके दूसरे पहलू पर विचार नहीं करना चाहिए? आखिर हम अपने घर मे किसी को तभी तक रख सकते जब तक हमारे घर मे पर्याप्त जगह हो और हमे आगंतुक से कोई परेशानी ना हो। मुंबई के संदर्भ मे तो ये दोनों बातें लागू होती हैं एक तो अब मराठियों कि आबादी भी काफी बढ़ गयी और उन्हे भी रोजगार के लिए ठोकरें खानी पड़ रही हैं, ऐसे मे जब वो देखता है की उसके आस पास के ज़्यादातर रोजगार पर उत्तर भारतीयों का कब्जा है तो उसका उग्र होना स्वाभाविक ही है, और दूसरा यूपी, बिहार से मुंबई जाने वालों मे इतने अपराधी किस्म के लोग भी जा रहें जिससे सारे उत्तर भारतीयों कि छवि खराब हो रही है। मुंबई मे जब भी कोई अपराध होता है तो उसका सीधा कनेक्सन बिहार से या यूपी के आजमगढ़ जनपद से निकलता है। हमे मराठियों या ठाकरे परिवार को दोष देने के बजाय इन बातों पर भी गौर करना चाहिए। अगर हमारे गाँव, शहर, राज्य मे भी बाहरी लोगों या अन्य राज्य वालों की तादात मे बेतहासा बढ़ोत्तरी होगी तो सायद हम भी वैसा ही करेंगे जैसा मराठी लोग या ठाकरे परिवार कर रहा हैं, आज हमे जरूरत है अपनी कमजोरी को समझने और उसे दूर करने के लिए निरंतर प्रयास करने की ना की उसके लिए दूसरों को दोष देने की।

3 COMMENTS

  1. एक दम उम्दा लेख है इसमें कोई दो राय नहीं है, ये बिलकुल सत्य है की हमारे नेता अपनी कमी को वोर नहीं देख रहे है, की वाकई इस विष्फोटक स्थिति के जिम्मेवार कौन है, सत्ता के लोलुप नेता जिन्होंने राजनीती छोड़कर आज तक कुछ नहीं सोचा , नहीं कुर्सी के सिवा किसी चीज पर ध्यान दिया, सत्य तो यही है, की अज की जो इस्थिति है उसकी पूरी जिम्मेवारी आजादी के बाद की सरकारों है है, जो सिर्फ भासन दिए,

    सोचने वाली बात है की, इतिहास के पन्नो पैर जिस भारत का उल्लेख है, वो एक दम पीछे चल रहा है, जिसमे कशी, पाटलिपुत्र, नालंदा, अदि. अगर मई गलत नहीं हु तो माता सीता से लेकर, चन्नाक्य तक, गुरु गोविन्द से लेकर, जैन गुरु महावीर, गौतम बुध्ह, वही उत्तरप्रदेश से श्री राम , श्री कृष्ण अदि संभंधित है जो आज पूजे जा रहे है लेकिन वही की साधारण जनता गली और दुत्कार खाने के लिए मजबूर है,

    अब भी समय है अगर यहाँ की जनता के लिए नेताओ ने कोई पर्याय नहीं ढूंढा तो इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा.

  2. मिश्रा जी मै आपकी बतो से पूर्ण रूप से सहमत हूँ ।.

    पहली बात तो ये की हमारे उत्तर भारतीय नेताओ को बयान बाजी के बजाय आपने राज्य मे विकास करना चाहिए ताकि उसके यहाँ के लोगों की आपने राज्य ओर अपने लोगों को छोड़कर बाहर न जाना पड़े । क्योकि सायद ही कोई होगा जो आपने लोगो से दूर जाना चाहता हो, वो भी सिर्फ रोजगार के लिए ।.

    दूसरी बात जब महाराष्ट्र मे हिन्दी को महत्व ही नहीं दिया जाता तो हिन्दी फिल्मे महाराष्ट्र मे क्यों बनती हैं? हिन्दी फिल्मे उत्तर भारत मे बनाना चाहिए । ईससे उत्तर भारत का विकाश भी होगा ओर मराठियो को सबक भी मिलेगी। तो यदि हमारे नेतावों को कुछ करना ही है तो विकाश करे ना की बयान बाजी.

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