मेरी ताकत लेखनी, तू रखता हथियार !

लुके-छिपे अच्छा नहीं, लगता अब उत्पात !
कभी कहो तुम सामने, सीधे अपनी बात !!
भूल गया सब बात तू, याद नहीं औकात !
गीदड़ होकर शेर की, पूछ रहा है जात !!
मेरी ताकत लेखनी, तू रखता हथियार !
दोनों की औकात को , परखेगा संसार !!
शीशों जैसे घर बना, करते हैं उत्पात !
रखते पत्थर हाथ में, समझेंगे कब बात !!
गायब प्यादे सब हुए, सदमे में सरदार !
बदली चालें मात में, मरने के आसार !!
एक बार ही झूठ के, चलते तीर अचूक !
आखिर सच ही जीतता, बिन गोली बन्दूक !!
खुद को खुद ही फूंकते, लगा रहे हैं आग !
उलझे सच्ची बात पर, समझे खुद का दाग !!
सच से आंखें मूँद ली, करता झूठ बखान !
गिने गैर की खामियां, दिया न खुद पर ध्यान !!
दगाबाज़ मक्कार के, देखो ये अंदाज़ !
रस्सी कब की जल गई, बाकी है बल आज !!
अगर कहानी ठीक से, गढ़ लेता कुछ यार !
भरा घड़ा ना फूटता, तेरे घर के द्वार !!
बाहर बनता चौधरी, घर न मिले सत्कार !
कागज़ की कश्ती चढ़े, मरने को तैयार !!
✍ डॉo सत्यवान सौरभ,

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