खुले में शौच से तौबा करते आदिवासी परिवार

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sample3185 साल का आदिवासी गुगरी और उसकी बीवी कमला अब खुले में शौच के लिए नहीं जाते हैं। उनके घर में ही शौचालय बन गया है और अब दोनों इसका उपयोग करते हैं। इनकी तरह ही बैगा आदिवासी सुकाल ने भी खुले में शौच से तौबा कर ली है। खुद के घर में शौचालय बन जाने से सरस्वती बाई को तो जैसे सारी दुनिया का सुख मिल गया है। वह कहती है कि खुले में शौच करना मजबूरी थी लेकिन हमेशा डर बना रहता था। मैदान के आसपास से बार बार पुरुषों के आने-जाने से उन्हें अनेक किस्म की परेशानी होती थी। इस परेशानी से सरस्वती बाई ही अकेली परेशान नहीं थी बल्कि गांव भर की महिलाओं को दिक्कत हो रही थी लेकिन स्वच्छ भारत अभियान ने उनके जीवन का ढर्रा ही बदल दिया है। यह तो महज चंद उदाहरण हैं। छत्तीसगढ़ खुले में शौचमुक्त राज्य की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर समूचे देश में स्वच्छ भारत अभियान चल रहा है लेकिन छत्तीसगढ़ की सफलता कुछ अलग मायने रखता है। आदिवासी बहुल राज्य होने और दशकों तक विकास से दूर रहने वाले छत्तीसगढ़ में ऐसे लोगों ने भागीदारी की है जिनकी कल्पना नहीं कर सकते। राजनांदगांव जिले के बकरी पालकर अपना जीवन चलाने वाली वृद्धा तो जैसे हिन्दुस्तान के सामने मिसाल बनकर उभरी है। इसने शौचालय बनाने के लिए अपनी बकरियां बेच दी। एक आयोजन में प्रधानमंत्री श्री मोदी ने उनके पैर छूकर इस बात को स्थापित किया कि खुले में शौचमुक्त की दिशा में इस महिला का कार्य अनुकरणीय है।
छत्तीसगढ़ सरकार की लोकहितैषी सोच के साथ सामाजिक दायित्व को पूरा करने इस अभियान के लिए डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने पंचायत चुनाव लडऩे वाले प्रतिनिधियों के घरों में शौचालय होना अनिवार्य करने वाला देश का पहला राज्य है। इतना ही नहीं बल्कि इस अभियान को सफल बनाने और लोगों को इस दिशा में जागरूक करने के लिए पूरे प्रदेश के सभी सत्ताइस जिला पंचायतों, 146 जनपद पंचायतों और 10 हजार 971 ग्राम पंचायतों में नौरत्नों का गठन कर उन्हें समुदाय को प्रोत्साहित करने स्वच्छता अभियान से जोड़ा गया है। ये नौरत्न अपने-अपने क्षेत्रों में शौचालय निर्माण, उपयोग और साफ-सफाई के प्रति गांवों और मोहल्लों में लोगों को जागरूक कर रहे है। वर्तमान में सामाजिक जनभागीदारी, जनप्रतिनियों के सहयोग और राज्य सरकार के भरसक प्रयास से प्रदेश में सात लाख से अधिक व्यक्तिगत और समुदाय आधारित शौचालय का निर्माण हो चुका है। इसके साथ ही राजनांदगांव जिले के दो विकासखण्ड अम्बागढ़-चौकी और छूरिया सहित प्रदेश के 2063 ग्राम पंचायतों को खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया है।
बिना किसी सरकारी मदद के ग्रामीणों द्वारा स्वयं की पहल पर घरों में शौचालय बनाने की ग्राम बावली की गाथा राजनांदगांव जिले से निकलकर सात समंदर पार अमेरिका में यूनिसेफ के मुख्यालय न्यूयार्क तक पहुंच गयी है। जिले के छुरिया विकासखंड के आदिवासी बहुल ग्राम बावली खुले में शौचमुक्त हो गया है। न्यूयार्क स्थित यूनिसेफ मुख्यालय में ग्लोबल डिप्टी एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर योका ब्रैंट भी उच्च स्तरीय दल के साथ छुरिया विकासखंड के ग्राम बावली आ चुके हैं। वहां खुले में शौच मुक्त करने ग्रामवासियों द्वारा किये गये प्रयासों की दाद दी। जंगलों के बीच बसे बावली के ग्रामीणों ने स्वयं की पहल पर गांव के सभी 57 घरों में शौचालय का निर्माण कराया है।
ग्राम बावली के ग्रामीणों द्वारा पारंपरिक निर्माण पद्धति से सस्ते शौचालय का निर्माण किया गया है। शादी-ब्याह एवं अन्य सार्वजनिक कार्यक्रमों में बाहर से आने वाले सगे-संबंधितों के लिए सार्वजनिक शौचालय भी बनाया गए है। बावली ग्राम में घरों में शौचालय नहीं होने से महिलाओं एवं बुजुर्गों को पहले कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था, वहीं खुले में मल त्याग से गांव में बीमारी भी फैलती थी। बावली निवासी श्रीमती सरस्वती बाई बताती है कि शौच के लिए दूर तक जाना, झाडिय़ों की ओर को ढूंढना एवं रास्ते में पुरुषों की आवाजाही से बार-बार खड़ा होना। इन समस्याओं से महिलाओं को रोज गुजरना पड़ता था। ग्रामीण मुन्नी बाई एवं मीना साहू ने बताया कि शौचालयों के निर्माण एवं इस्तेमाल से गांव में स्वच्छता कायम हुई है एवं अस्वच्छता के कारण गांव में जलजनित बीमारियां फैलने की आशंका कम हुई है। उन्होने कहा कि घर में शौचालय बनने से महिलाओं की मान-सम्मान की रक्षा हुई है।
छत्तीसगढ़ के सुदूर वनांचल जंगलों में निवासरत ग्राम लमनी के बैगाओं-आदिवासियों में जागृति आई है। इसी कड़ी में सुकाल बैगा का कहना था कि पहले शौच के लिए बाहर जाते थे। पहले झाड़ी, खेत, डबरा-झोरका में शौच करने जाना होता था। पंच-सरपंच और अधिकारियों द्वारा समझाईश देने पर घर में शौचालय बनवा लिया है। सुकाल ने बताया कि उनके परिवार में 10 सदस्य है जिसमें दो बेटा-बहू और दो नाती (पौत्र) हंै। सभी शौचालय का उपयोग करते हंै, अब शौच के लिए बाहर नहीं जाते। क्योंकि शौचालय बन जाने से शौच हेतु सुविधा मिल गई है। सुकाल बताता है कि घर में शौचालय नहीं होने के कारण शौच के लिए बाहर जाना पड़ता था। रात्रि में जंगली जानवर, सर्प-बिच्छू का डर बना रहता था। अब घर में शौचालय हो जाने से शौच के लिए चिंता दूर हो गई है। परिवार के लोग अब शौचालय में ही जाना चाहते है। शौचालय अच्छा लगता है। अब सुकाल के घर वालों को रात्रि, बरसात होने पर भी शौच के लिए चिंता नहीं है।
इसी कड़ी में विकासखण्ड पथरिया के भूमियापारा के 85 वर्षीय गुगरी ने बताया कि पहले घर में शौचालय नहीं होने के कारण शौच के लिए बाहर जाने की मजबूरी थी तथा शौच हेतु खेत, बाड़ी, पेड़ के नीचे नाला एवं छाया का सहारा लेना पड़ता था। उन्होंने बताया कि स्वच्छता अभियान को समझकर एवं दूसरे व्यक्ति से प्रेरणा लेकर अपने घर में शौचालय का निर्माण करा लिया है। शौच के लिए अब बाहर जाना नहीं पड़ रहा है। गुगरी ने बताया कि वे जड़ी-बूटियों से लोगों का ईलाज भी करते है। उन्होने यह भी बताया कि जड़ी-बूटियां अमरकंटक और बस्तर के वनों से लाते है। मोहल्ले का नारक सिंह और गुगरी ने बताया कि एक लडक़ा है। जो कमाने खाने बाहर गया है। गुगरी का 8 नाती-पोता भी है। उन सभी बच्चों को अपने साथ रखा है और बच्चों का देखभाल भी कर रहा है। उन्होने बताया कि शौचालय बनने के बाद ही शौचालय का उपयोग करने लगे है। बाहर जाने की झंझट और चिंता दूर हो गई है। बरसात के दिनों में पानी बरसते और कीचड़ में शौच के लिए जाना पड़ता था। अब इससे भी मुक्ति मिल गई है।
भूमियापारा के 85 वर्षीय गुगरी और पत्नी कमला ने बताया कि घरों में शौचालय बनाने के लिए पारे, मोहल्ले में व्यक्तियों को समझाइश देते है। उनका कहना है कि स्वच्छता अभियान शासन की अच्छा अभियान है। घर में शौचालय बनने से गंदगी और अस्वच्छता नहीं होती है। अब बच्चे लोग बीमार भी कम पड़ रहे है। शासन की यही मंशा है कि लोग स्वच्छता को अपनाये और स्वस्थ जीवन व्यतीत करें। छत्तीसगढ़ में स्वच्छ भारत अभियान जिस तेज गति से चल रहा है और लोगों की भागीदारी बढ़ रही है, उससे लगता है कि समय से पूर्व ही छत्तीसगढ़ स्वच्छ भारत अभियान के लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा।

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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