धूप बेचारी

0
222

बीनू भटनागर

roshniधूप बेचारी,

तरस रही है,

हम तक आने को।

धूल, जीवाणु, विषाक्त गैेसें,

उसका रस्ता रोके खड़ी हैं।

वायु प्रदूषण के कारण,

अब आँखें जले लगी हैं।

ये धुंध है, ना कोहरा है,

ना ही बादल का घेरा है,

दूर दूर तक वायु प्रदूषण का,

जाल बना गहरा है।

साल के अंतिम छोर पर भी,

ठँड का नामोनिशान नहीं है।

सूरज को भी अब तो,

धूप पर अभिमान नहीं है।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here