डॉ घनश्याम बादल
5 सितंबर को हर वर्ष देश भर में भारत के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन के जन्मदिन पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है और हर शिक्षक दिवस पर ही शिक्षक के अस्तित्व और उसके महत्व पर कई प्रश्न खड़े किए जाते हैं।
एक और जहां आज का दिन शिक्षक के सम्मान का दिन है वही युगबोध एवं परिस्थितियों के अनुसार यह प्रश्न भी प्रासंगिक है कि आने वाले समय में क्या शिक्षक का स्थान कृत्रिम बुद्धि यानी ए.आई. ले सकती है ?
इस प्रश्न के कई उत्तर अलग-अलग दिशाओं से सुनने को मिलते हैं और जब यह उत्तर आता है कि तकनीक एवं ए.आई. के चलते शिक्षक का अस्तित्व एवं वर्चस्व दोनों ही संकट में है तब इस प्रश्न पर मंथन और भी समीचीन हो जाता है।
निस्संदेह 21वीं शताब्दी ज्ञान-विज्ञान और प्रौद्योगिकी की तीव्र गति से बदलती दुनिया की साक्षी है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रवेश शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग, परिवहन और जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में हो चुका है। शिक्षा जगत भी इससे अछूता नहीं है।
लआने वाले समय के कक्षा कक्षों की एक परिकल्पना ऐसी भी दिखाई जा रही है जिसमें शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया किसी बंद कमरे में नहीं अपितु दूरस्थ संसाधनों के द्वारा संभव हो पाएगी और कक्षा कक्ष में भी मानव शिक्षक नहीं अपितु एंड्राइड, रोबोट या फिर और कोई नया तकनीकी डिजिटल अविष्कार नई पीढ़ी को पढ़ा रहा होगा । यह परिकल्पना जहां एक और रोमांचित करती है वही डराती भी है तथा पुनः वही यक्ष प्रश्न खड़ा करती है कि क्या आने वाले समय में मानव शिक्षक का समय समाप्त होने जा रहा है?
आज ए.आई. आधारित सॉफ़्टवेयर, वर्चुअल कक्षाएँ, स्मार्ट कंटेंट, चैटबॉट और स्वचालित मूल्यांकन प्रणाली शिक्षा का अभिन्न हिस्सा बन रहे हैं। ऐसे समय में प्रश्न उठता है कि क्या भविष्य में ए.आई. शिक्षक को पूरी तरह रिप्लेस कर देगा या फिर दोनों की भूमिका मिलकर शिक्षा को और भी प्रभावी बनाएगी? और साथ ही साथ इन दोनों में से किसका महत्व अधिक होगा?
इस प्रश्न का उत्तर केवल तकनीकी दृष्टि से नहीं, बल्कि सामाजिक, नैतिक और मानव मूल्य आधारित दृष्टिकोण से देना आवश्यक है।
ए.आई. की भूमिका और संभावनाएँ
भविष्य की शिक्षा में ए.आई. का महत्व कई स्तरों पर दिखाई देता दे रहा है। इसमें तो दो राय नहीं हैं कि आने वाले समय में शिक्षा बिना तकनीकी के असंभवप्राय एवं प्रभावहीन होने जा रही है। ऐसा क्यों सोचा जा रहा है सबसे पहले इसी पर विचार करते हैं।
सूचना तक त्वरित पहुँच
ए.आई. की सबसे बड़ी शक्ति उसकी गति और अपरिमित विशाल ज्ञानसंग्रह है। विद्यार्थी किसी भी विषय पर तुरंत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। एक ही क्लिक पर पुस्तकालय, शोधपत्र और उदाहरण उपलब्ध हो जाते हैं।
व्यक्तिगत शिक्षण
ए.आई. आधारित सिस्टम विद्यार्थी की सीखने की क्षमता, गति और रुचि का विश्लेषण कर व्यक्तिगत पाठ्यक्रम और अभ्यास प्रश्न उपलब्ध करा सकते हैं। यह सुविधा प्रत्येक छात्र को उसकी ज़रूरत के अनुसार शिक्षा प्रदान करने में मदद करेगी।
सुलभता
ए.आई. दूरस्थ और पिछड़े क्षेत्रों में भी डिजिटल शिक्षा सामग्री उपलब्ध कराकर शिक्षा को सुलभ बनाएगा। भाषा अनुवाद और स्पीच-टू-टेक्स्ट तकनीक विकलांग छात्रों के लिए शिक्षा को सरल बनाएगी।
शिक्षक का सहायक
भविष्य में ए.आई. शिक्षक का बोझ कम करेगा। परीक्षा मूल्यांकन, उपस्थिति, होमवर्क जाँच जैसे प्रशासनिक कार्य ए.आई. द्वारा किए जा सकेंगे, जिससे शिक्षक विद्यार्थियों के समग्र विकास पर अधिक समय दे सकेंगे।
रचनात्मकता और नवाचार
ए.आई. आधारित सिमुलेशन, वर्चुअल लैब और 3 डी तकनीक विद्यार्थियों को नए प्रयोगों और खोजों के लिए प्रेरित करेगी।
इस विवेचन से ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे सचमुच ही कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं तकनीकी मिलकर शिक्षक को शिक्षण अधिगम के परिदृश्य से गायब कर देंगे लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। डी स्कूलिंग,अनस्कूलिंग, होम एजुकेशन एवं डिस्टेंस एजुकेशन जैसे अनेक प्रयोग पहले भी शिक्षा के क्षेत्र में हुए हैं और सब का सार यही है कि शिक्षक का कोई विकल्प हो ही नहीं सकता।
शिक्षक की अनिवार्यता
हालाँकि ए.आई. अनेक सुविधाएँ प्रदान कर सकता है, परंतु शिक्षक का स्थान पूर्णतः अपरिवर्तनीय है। इसके कुछ कारण हैं—
मानवीय स्पर्श और भावनात्मक जुड़ाव
शिक्षा केवल जानकारी देने का नाम नहीं है, बल्कि यह मूल्य, संस्कार और संवेदनाओं का संचार भी है। विद्यार्थी को प्रोत्साहन, प्रेरणा और आत्मविश्वास देने का कार्य केवल एक मानव शिक्षक कर सकता है।
चरित्र निर्माण और नैतिक शिक्षा
भविष्य का समाज केवल तकनीकी ज्ञान से नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारियों से चलता है। यह कार्य शिक्षक ही कर सकते हैं, ए.आई. नहीं।
आलोचनात्मक सोच
ए.आई. डेटा और पैटर्न पर आधारित है। लेकिन “क्यों” और “कैसे” पूछने की आदत, स्वतंत्र सोच और रचनात्मकता को विकसित करने का का कार्य केवल और केवल शिक्षक ही करने में सक्षम है।
सामाजिक संबंध और नेतृत्व क्षमता
विद्यालय केवल पढ़ाई के केंद्र मात्र नहीं हैं, बल्कि सामाजिकता और नेतृत्व क्षमता विकसित करने के स्थान भी हैं। शिक्षक समूह गतिविधियों, खेल, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और संवाद के माध्यम से यह गुण विकसित करते हैं। साथ ही साथ बच्चों में सहानुभूति सहयोग आपसी विचार विनिमय एवं संवेदनशीलता उत्पन्न एवं विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान निभाता है।
परिस्थिति अनुकूल मार्गदर्शन
जीवन की समस्याएँ हमेशा तकनीकी समाधान से नहीं सुलझतीं। कभी-कभी विद्यार्थी को मानसिक, सामाजिक और व्यक्तिगत संकटों से निकलने के लिए संवेदनशील मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है, जो केवल शिक्षक हो सकते हैं। यह तो संभव है कि सीखने सिखाने की प्रक्रिया में आई सूचनाओं का बड़ा और व्यापक क्षेत्र तो विद्यार्थियों के लिए खोल दे लेकिन जब एक मोटीवेटर उत्प्रेरक एवं उत्साह वर्धन तथा प्रेरणादाई फैक्टर की बात आएगी तब केवल और केवल शिक्षक ही यह भूमिका अदा कर पाएगा।
ए.आई. और शिक्षक का परस्पर संबंध
भविष्य की शिक्षा में यह सोचना भ्रम होगा कि ए.आई. शिक्षक की जगह ले लेगा। वास्तविकता यह है कि ए.आई. और शिक्षक मिलकर शिक्षा को और अधिक सशक्त, गतिशील और प्रभावी बना सकते हैं। ए.आई. सूचना और तकनीकी सुविधाएँ उपलब्ध कराएगा, जबकि शिक्षक उसे जीवन से जोड़ेंगे। ए.आई. विद्यार्थियों को व्यक्तिगत अभ्यास देगा, जबकि शिक्षक उन्हें नैतिकता और सहयोग का पाठ पढ़ाएँगे। ए.आई. प्रशासनिक कार्य संभालेगा, जबकि शिक्षक विद्यार्थियों की रचनात्मकता और नेतृत्व को विकसित करेंगे।
अस्तु, सार रूप में कहा जा सकता है कि शिक्षक को आने वाले समय में नई से नई तकनीकों को सिखाने एवं सीखने दोनों में सिद्धहस्त होना पड़ेगा । उसे लगातार अपने ज्ञान का समय, परिस्थिति, ज़रूरत एवं मांग के अनुसार अपडेशन करना होगा तभी शिक्षक आने वाली पीढ़ी के सर्वांगीण विकास का आधार बन सकेगा।
डॉ घनश्याम बादल