सेना का प्रत्येक जवान भारत रत्न

armyबीते 60 वर्षो में पहली बार धरती के स्वर्ग का नजारा नरक से भी बदतर नजर आ रहा है। बाढ़ की विभीषिका ने जम्मू-कश्मीर के नैसर्गिक सौंदर्य को लील लिया है। करीब चार लाख लोग अब भी जीवन की आस में हैं और राज्य सरकार का तंत्र दम तोड़ चुका है। ऐसे में भारतीय सेना ने कमान अपने हाथ में ले ली है व बाढ़ में फंसे लोगों की जिंदगी बचा रही है। चाहे 16 घंटे में पुल बनाने का कारनामा हो अथवा लोगों को बचाते हुए अपनी जान खो देना, सेना का हर जवान, जो इस आपदा में राहत पहुंचा रहा है, वंदनीय है। सेना का यह जज्बा निश्चित तौर पर देशभक्ति की भावना को कभी मरने नहीं देता। सच्चे अर्थो में सेना का हर सैनिक भारत रत्न है।मगर, इसे राजनीतिक दुर्भावना कहें अथवा पाकिस्तान पोषित अलगाववाद, सेना की बचाव टीम पर पत्थरबाजी होती दिखी है। ऐसी खबरें आ रही हैं कि बचाव कार्य में देरी की वजह से लोगों का गुस्सा सेना के दल पर फूटने लगा है। हालांकि, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कहना है कि अगर झड़प हुई है, तो यह माना जाना चाहिए कि लोग सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिए गए हैं। इधर, सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग का कहना है कि सेना अगले दो से तीन दिन में राहत कार्य पूरा कर लेगी और इस दौरान जवानों की संख्या या संसाधनों में कमी नहीं होने दी जाएगी। कुल मिलाकर परिस्थिति ऐसी निर्मित की जा रही है, मानो सेना बचाव कार्य के एवज में एक बड़े सौदे में हो।दरअसल, कश्मीर घाटी में संचार के सारे साधन पूरी तरह ठप हैं। जो पाकिस्तानी चैनल अब भी वहां काम कर रहे हैं, उन्होंने ही बाढ़ का फायदा उठाते हुए लोगों के बीच अफवाहें फैलाना शुरू कर दिया है और उनका सीधा निशाना भारतीय सेना की ओर है। हालांकि, भारत सरकार ने तुरंत संज्ञान लेते हुए डीडी कश्मीर का प्रसारण दिल्ली से शुरू कर दिया है, साथ ही प्रसार भारती ने नियमित प्रसारण सुनिश्चित करने के लिए राज्य में एक विशेष दल भेजा है, तो भी कश्मीरी बड़ी तादाद में पाकिस्तानी चैनलों द्वारा फैलाए जा रहे जहर को देख-सुन रहे हैं।घाटी में मौजूद अलगाववादी समूह भी निजी स्तर पर सेना के विरुद्ध दुष्प्रचार में लगे हैं। ये वे समूह हैं, जो खाते तो हिंदुस्तानी नमक हैं, किंतु हलाली पाकिस्तान की करते हैं। चूंकि मानवीयता के नाते इस वक्त उनके प्रति कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। अत: उनका हौसला भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में खुफिया एजेंसियों को आशंका यह है कि बाढ़ का फायदा उठाकर पाकिस्तानी आतंकी घुसपैठ कर सकते हैं और घाटी के अलगाववादी उनकी मदद भी कर सकते हैं। सीमा रेखा पर कुछ जगहों पर लगी तार की बाड़ के प्रभावित होने की भी खबरें हैं।

यानी, देखा जाए तो भारतीय सेना इस समय दो-दो मोर्चो पर लड़ रही है। उसके लिए सीमा की सुरक्षा भी जरूरी है और लोगों की जान बचाना भी। देखा जाए तो सेना के बचाव कार्य के इतर जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक और सामाजिक समूह अपनी-अपनी रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं। चूंकि बाढ़ की विभीषिका का मंजर जैसे-जैसे कम होगा, राज्य की राजनीति भी अपने चरम पर होगी। एक पक्ष द्वारा दूसरे पर दोषारोपण आम हो जाएगा। उमर अब्दुल्ला को राज्य के सरकारी तंत्र की निद्रा पर जवाब देना मुश्किल होगा, तो दूसरी ओर अलगाववादी घाटी के बाशिंदों को बरगलाने की कोशिश भी करेंगे। लश्कर-ए-तैयबा का सरगना हाफिज सईद पहले ही आग उगल चुका है कि पाकिस्तान में आई बाढ़ में भारत की भूमिका है। कुल मिलाकर इस प्राकृतिक आपदा पर भी जमकर राजनीति होने लगी है। वह तो भला हो केंद्र का जिसने राहत कार्य के सभी सूत्र अपने हाथ में ले लिए हैं, वरना घाटी का क्या होता, सोचकर ही डर लगता है। तारीफ करनी होगी भारतीय सेना की, जो अपनी परवाह किए बगैर राहत एवं बचाव कार्य में लगी है। बाढ़ से जूझ रहे जम्मू-कश्मीर में अंतिम आदमी तक मदद पहुंचाने के लिए सेना द्वारा चलाए जा रहे राहत अभियान की रणनीति में भी अब बदलाव किया गया है। इसमें लगे सैन्य बल का सारा जोर भोजन -पानी जैसी जरूरी मदद पहुंचाने के साथ ही व्यापक पैमाने पर पानी में फंसे हुए लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने पर है।पत्थरबाजी के बीच वायुसेना की सेवाओं को बढ़ा दिया गया है। नौसेना के कमांडो दस्तों को अब नौकाओं के सहारे निचले इलाकों से लोगों को निकालने के मिशन में उतारा गया है। अब तक राहत व बचाव कार्य में 84 विमान व हेलीकॉप्टर लगाए गए हैं। बाढ़ पीड़ित जम्मू कश्मीर में 30 हजार से ज्यादा सैन्य दस्तों को भी सहायता के मिशन में उतारा गया है। इनमें से 21 हजार सैनिक केवल श्रीनगर क्षेत्र में तैनात किए गए हैं। सेना की इन कोशिशों ने रंग दिखाना शुरू भी कर दिया है। यदि घाटी के लोगों का अपेक्षित सहयोग सेना को मिला होता, तो अब तक स्थिति सामान्य हो जाती। बिना सहयोग के ही वह दिन और रात घाटी को पुन: स्वर्ग में तब्दील करने में लगी है। अत: सेना के कार्यो और उसकी जीवटता की जितनी तारीफ की जाए, कम ही है।

Previous articleग़ज़ल-जावेद उस्मानी
Next articleये संवैधानिक पद
सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress