कनाडा-भारत के बीच सुधरते रिश्ते के वैश्विक मायने

0
31

कमलेश पांडेय

कनाडा-भारत के बीच सुधरते रिश्ते दोनों देशों के लिए परस्पर लाभदायी हो सकते हैं, क्योंकि दोनों देश अमेरिका जैसे अंतरराष्ट्रीय महाशक्ति के निशाने पर हैं। एक ओर जहां कनाडा को अमेरिका अपने राज्य में मिलाना चाहता है, वहीं दूसरी ओर भारत को अमेरिका विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नीचा दिखाना चाहता है ताकि उसकी वैश्विक दादागिरी बरकरार रहे। चूंकि भारत और कनाडा के रिश्तों में एक नया मोड़ आ गया है और लगभग दो साल की तनातनी के बाद, कनाडा ने एक बड़ा खुलासा किया है। 

कनाडा की खुफिया एजेंसी सीएसआईएस ने स्वीकार किया है कि कनाडा में बैठे खालिस्तानी चरमपंथी (आतंकवादी) भारत के खिलाफ हिंसा, प्रचार और फंड इकट्ठा करने के लिए उसकी धरती का इस्तेमाल कर रहे हैं। खुफिया रिपोर्ट में कहा गया है कि खालिस्तानी चरमपंथी (अलगाववादी) कनाडा से भारत के खिलाफ गतिविधियां चला रहे हैं। साल 1980 के दशक से ही कनाडा स्थित खालिस्तानी चरमपंथियों (CBKE) ने हिंसक तरीके से पंजाब में एक स्वतंत्र सिख राज्य बनाने के लिए अभियान चलाया है। 

इस रिपोर्ट में 1985 के एयर इंडिया बम धमाके का भी जिक्र है जिससे भारत के उस दावे को बल मिला है जिसमें वह कहता रहा है कि कनाडा आतंकवादियों को पनाह दे रहा है। CSIS ने यह खुलासा किया कि पाकिस्तान, कनाडा में भारत के प्रभाव को कम करने की कोशिश कर रहा है। यह भारत के लिए एक कूटनीतिक जीत है। इससे यह साफ होता है कि भारत के विरोधी देश, दूसरे देशों की जमीन का इस्तेमाल कर रहे हैं।

दरअसल, यह बात तब सामने आई है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कनाडा के पीएम मार्क कार्नी की गत दिनों कनाडा में आयोजित जी7 शिखर सम्मेलन के दौरान मुलाकात हुई और आपसी द्विपक्षीय रिश्तों को पुनः पटरी पर लाने के लिए बहुत ही सकारात्मक माहौल में बात हुई। 

इससे पहले कनाडा के प्रधानमंत्री कार्नी ने मोदी के साथ मुलाकात को ‘आधारभूत’ बताया था। इसका मतलब है कि दोनों देश पिछली बातों को भूलकर आगे बढ़ना चाहते हैं हालांकि, भारत पिछली बातों को भूलने वाला नहीं है। यही वजह है कि दोनों देशों के बीच में कई रणनीतिक करार भी किये गए हैं ताकि आपसी भरोसा और कारोबार दोनों बढ़े। इस हेतु राजदूतों की भी नियुक्ति कर दी गई है।

उल्लेखनीय है कि भारत लंबे समय से कनाडा पर खालिस्तानी अलगाववादियों को लेकर नरम रवैया अपनाने का आरोप लगाता रहा है लेकिन अब कनाडा सरकार की इस आधिकारिक रिपोर्ट ने भारत की शिकायत को सही ठहराया है। बहरहाल, सीएसआईएस ने भी यह मान लिया है कि पाकिस्तान, कनाडा की धरती से भारत के खिलाफ जारी गतिविधियों को बढ़ावा देने में लगा हुआ है। बता दें कि पीएम मोदी की कनाडा यात्रा के दौरान खालिस्तानी समूहों ने उनको लेकर धमकियां देने तक की हिमाकत की थी। 

ऐसे में सीधा सवाल उठता है कि क्या बिना कनाडा में उनसे सहानुभूति रखने वालों के शह और पाकिस्तान की बैकिंग के वह इतनी हिम्मत कभी जुटा पाते? इसलिए पूरक प्रश्न यही है कि जब कनाडा ने मान लिया कि पाकिस्तान-खालिस्तानियों की जुगलबंदी से उसकी धरती से भारत के खिलाफ हिंसक साजिशों को अंजाम दिया जा रहा है तो फिर उससे भारत क्या उम्मीदें कर सकता है? यही न कि कनाडा आतंकवादियों को भारत के हवाले करे, खालिस्तानी नेटवर्क को पूरी तरह से खत्म करे और अलगाववाद को आतंकवाद माने।

वहीं, इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि, “भारतीय अधिकारी जिनमें उनके कनाडा स्थित प्रॉक्सी एजेंट भी शामिल हैं, वे कई तरह की गतिविधियों में शामिल हैं। उनका उद्देश्य कनाडाई समुदायों और राजनेताओं को प्रभावित करना है। इसमें दावा किया गया है कि जब ये गतिविधियां भ्रामक, गुप्त या धमकी देने वाली होती हैं तो उन्हें विदेशी हस्तक्षेप माना जाता है। हालांकि, भारत पहले से ही कनाडाई अधिकारियों की ओर से लगाए जाने वाले इस तरह के आरोपों को खारिज करता रहा है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कनाडा के लिए सबसे बड़ा खुफिया खतरा चीन है। रिपोर्ट में इसके अलावा पाकिस्तान, रूस और ईरान का भी नाम लिया गया है।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हरदीप सिंह निज्जर मामले से भारत सरकार और आपराधिक नेटवर्क के बीच संबंधों का पता चला है। इसमें कहा गया कि खालिस्तानी उग्रवाद कनाडा में भारतीय विदेशी हस्तक्षेप गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है। भारत ने निज्जर की मौत में अपनी संलिप्तता से साफ इनकार किया है और कनाडा की ओर से लगाए गए हस्तक्षेप के आरोपों को भी खारिज किया है।

बता दें कि साल 2023 में ब्रिटिश कोलंबिया में खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद दोनों देशों के संबंधों में तीखी तनातनी देखी गई थी। कनाडाई अधिकारियों ने इस हत्या को भारतीय सरकार के हस्तक्षेप से जोड़ा, जिसका भारत ने खंडन करते हुए इन आरोपों को बेतुका और निराधार बताया था। भारत ने इसके जवाब में कनाडा पर खालिस्तानी चरमपंथियों को पनाह देने और उनकी गतिविधियों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया।

यक्ष प्रश्न है कि अब पाकिस्तान के साथ खालिस्तानियों की जुगलबंदी का क्या होगा, क्योंकि आतंकवाद पर कनाडा के कबूलनामे को भारत की एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है। चूंकि भारत और कनाडा के रिश्तों में बदलाव आया है, इससे खालिस्तानियों की बेचैनी बढ़ जाएगी क्योंकि भारत ने कनाडा से साफ कहा है कि वह आतंकवादियों को सौंपे और खालिस्तानी नेटवर्क को खत्म करे। भारत ने 26 आतंकवादियों को सौंपने के लिए कहा है, जिनमें से सिर्फ 5 पर ही कार्रवाई हुई है। 

उम्मीद है कि इस मामले में कनाडा अब कार्रवाई करके दिखाएगा। इनमें अर्श डल्ला का मामला भी शामिल है जिस पर भारत में 50 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं। डल्ला को कनाडा की अदालत ने जमानत भी दे दी थी। भारत ने कनाडा से यह भी कहा है कि वह भगोड़ों को गिरफ्तार करे और रेड कॉर्नर नोटिस पर कार्रवाई करे लेकिन कई मामलों में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इससे भारत नाराज है।

हालांकि, कार्नी के लिए यह मुश्किल है कि वह कनाडा में खालिस्तान समर्थक सिखों को नाराज किए बगैर आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करें। कारण कि वर्ल्ड सिख ऑर्गनाइजेशन (WSO) जैसे संगठन कनाडा में काफी प्रभावशाली हैं। इसलिए, कनाडा के लिए आतंकवादियों पर कार्रवाई करना उतना आसान भी नहीं है। जस्टिन ट्रुडो की सरकार में तो इसीलिए ऐसे भारत-विरोधी संगठन पूरी तरह से हावी हो चुके थे। हालांकि, राजनीतिक रूप से कार्नी उनको लेकर इतने मोहताज भी नहीं हैं लेकिन यह भी उतना ही सच है कि भारतीय मूल के कनाडाई अलगाववादी वहां बहुत बड़े वोट बैंक बन चुके हैं। फिर भी, उम्मीद की किरण बची हुई है क्योंकि दोनों देश आतंकवाद और संगठित अपराध से निपटने के लिए एक संयुक्त कार्य समूह बनाने पर बात कर रहे हैं। 

दरअसल, बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत का संदेश साफ है, ‘अब और ज्यादा दोहरा रवैया किसी भी देश का नहीं चलेगा।’ भले ही कनाडा उदारवाद और बोलने की आजादी की बात करता है, लेकिन भारत के खिलाफ हिंसा करने वालों पर आंखें भी मूंदे नहीं रह सकता। यही वजह है कि कार्नी ने मोदी के साथ मुलाकात खत्म होते ही कहा, ‘अभी बहुत काम करना बाकी है।’ भारत के लिए यह एक बड़ी जीत है कि दोनों नेताओं की सीधी मुलाकात के बाद ही कनाडा की खुफिया एजेंसी भी अब भारत के दावों को स्वीकारने लगी है। एक तरह से यह कहा जा सकता है कि यह खालिस्तान समस्या का अंत तो नहीं है, लेकिन कनाडा की धरती पर इसकी शुरुआत हो चुकी है।

स्पष्ट है कि यदि आप अमेरिका को कमजोर करना चाहते हैं तो कनाडा में आपकी स्थिति स्वाभाविक रूप से मजबूत होनी चाहिए। इससे आप अमेरिका की विभिन्न गतिविधियों पर नजर रख सकेंगे, लेकिन ऐसा आप खुल्लमखुल्ला नहीं कर सकते! बल्कि छिपे रुस्तम के तौर पर ही कर सकते हैं। प्रायः ऐसी घाती-प्रतिघाती रणनीति दुनिया के परस्पर प्रतिस्पर्धी देश अपने जासूसों और उनके नेटवर्क में शामिल लोगों के मार्फ़त बनाते-बनवाते ही रहते हैं। कुछ यही वजह है कि अमेरिका के प्रबल प्रतिद्वंद्वी देशों यथा- चीन, रूस, भारत, ईरान आदि देशों की अभिरुचि कनाडा में बढ़ चुकी है। हालांकि, कनाडा सरकार इससे सावधान भी है। 

स्पष्ट है कि भारत और कनाडा के बीच बदलते रिश्तों से निम्नलिखित पांच बातें स्पष्ट होती दिखाई दे रही हैं, जिनके अपने वैश्विक मायने हैं। पहला, कनाडा की खुफिया एजेंसी (CSIS) ने माना है कि खालिस्तानी चरमपंथी कनाडा की धरती का इस्तेमाल भारत के खिलाफ हिंसा फैलाने के लिए कर रहे हैं। दूसरा, सिख अलगाववादी समूहों की धमकियों के बावजूद, पीएम नरेंद्र मोदी की कनाडा यात्रा शांतिपूर्वक संपन्न हो गई, जो धमकियों पर कूटनीति की जीत करार दी जा सकती है। तीसरा, कनाडा की खुफिया रिपोर्ट में पाकिस्तान पर भी भारत-विरोधी एजेंडे में शामिल होने का आरोप लगाया गया है, जिससे पाकिस्तान एक बार फिर बेनकाब हुआ है। चतुर्थ, मोदी (भारत) और कार्नी (कनाडा) की मुलाकात को रिश्तों में सुधार के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन भारत को सिर्फ बातों से नहीं बल्कि ठोस कार्रवाई से मतलब है। इससे साफ है कि दोनों देशों के रिश्ते में एक नई शुरुआत हुई है लेकिन अनुभवजन्य शर्तों के साथ, यह बहुत बड़ी बात है।

कमलेश पांडेय

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress