खण्डहर लगता पुराना मकान

सदैव अपने बच्चों के भविष्य के लिए
हर पिता बनाता है एक सुंदर सा मकान
जिसमें वह अधिष्ठित करता है
अपने इष्टदेव अपने कुलदेवता को ।
साल दिन महीने वर्ष के साथ
बदलती है ऋतुए, सर्दी गर्मी ओर बरसात
हर साल वह देवों को सुलाता है
होली दीवाली नवरात्रि मनाता है
गणेश चतुर्थी, शिवरात्रि, जन्माष्टमी
रामनवमी ,ईद ओर क्रिसमिस को
धूमधाम से मनाता झूमता गाता है ।
बच्चों के जन्मदिन,शादी विवाह पर
उसकी खुशिया परवान चढ़ जाती है
वह देवों को सुलाता है ओर विधिविधान से
देवों को उठाकर उनकी अगवानी करता है
मकानों की दीवालों पर पंक्तिवद्ध लगाता है
अपने मन मे बसे आराध्य ओर पूर्वजों की तस्वीरे ॥
बच्चों को बचपन जिस मक़ाम में
लोरिया सुनकर बीता, उस मकान में
बच्चों के जीते हुये कप, मेडल्स
ओर तमगों व प्रशस्ति पत्रो से सजाता है ॥
पिता का बनाया वह मकान,
बच्चों के लिए माँ की गोद से बढ़कर होता है,
जहा उनका खेलना कूदना, मस्ती करना पढ़ना लिखना
सोना जागना ओर बहुत सी मधुर यादों में
घर का वह कौना भी होता है जहा वे जन्मे है ॥

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