रामस्वरूप रावतसरे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 सितंबर को गुजरात का दौरे पर थे। इस दौरान उन्होंने अहमदाबाद जिले के लोथल में बन रहे नेशनल मैरीटाइम हेरिटेज कॉम्प्लेक्स (एनएमएचसी ) का जायजा लिया। पीएम मोदी ने निर्माण कार्य की प्रगति की समीक्षा की और परियोजना से जुड़ी बैठक भी की।
गुजरात के लोथल में बन रहा नेशनल मैरीटाइम हेरिटेज कॉम्प्लेक्स (एनएमएचसी ) मोदी सरकार की एक पहल बताया जा रहा है। इसका उद्देश्य सिंधु-सरस्वती सभ्यता यानी इंडस वैली सिविलाइज़ेशन की समुद्री और इंजीनियरिंग उपलब्धियों को सम्मान देना है। करीब 2400 ईसा पूर्व लोथल इस सभ्यता का एक अहम बंदरगाह शहर था। गुजरात सरकार द्वारा आवंटित 400 एकड़ जमीन पर 4,500 कोड़ रुपए की लागत से तैयार हो रहा यह प्रोजेक्ट लोथल की ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने, पर्यटन को बढ़ावा देने और आने वाली पीढ़ियों के लिए शिक्षा का केंद्र बनाने की दिशा में काम करेगा।
जानकारी के अनुसार अक्टूबर 2024 में केंद्र सरकार ने सागरमाला कार्यक्रम के तहत नेशनल मैरीटाइम हेरिटेज कॉम्प्लेक्स (एनएमएचसी) को मंज़ूरी दी थी। इसका मकसद प्राचीन समुद्री इंजीनियरिंग की इस अनोखी धरोहर को दुनिया के सामने लाना है। यह परियोजना विकास और विरासत संरक्षण के बीच संतुलन बनाने के साथ-साथ भारत के प्राचीन समुद्री व्यापार को नई पहचान देने पर भी जोर देती है।
यह कॉम्प्लेक्स दो चरणों में विकसित किया जा रहा है और इसमें नेशनल मैरीटाइम हेरिटेज म्यूज़ियम शामिल है जिसमें भारत के समुद्री इतिहास को इंडस वैली सिविलाइज़ेशन से आधुनिक समय तक दिखाने वाली 14 गैलरी होंगी। फेज 1ए का काम 60 प्रतिषत से अधिक पूरा हो चुका है और यह साल के अंत तक खुलने के लिए तैयार है। इसमें छह गैलरी शामिल हैं, जिनमें इंडियन नेवी और कोस्ट गार्ड की प्रदर्शनी भी है, जिसमें आइ्रएनएस निशंक मिसाइल बोट, सी हैरियर विमान और यूएच-3 हेलिकॉप्टर जैसे ऐतिहासिक वस्त्र और मॉडल दिखाए जाएँगे। इसके अलावा इसमें लोथल का पुनर्निर्मित टाउनशिप और जेट्टी वॉकवे भी मौजूद हैं।
फेज 1बी में आठ और गैलरी जोड़ी जाएँगी, साथ ही 77 मीटर ऊँचा लाइटहाउस म्यूजियम बनेगा, जो दुनिया का सबसे ऊँचा म्यूज़ियम होने की योजना में है। इसमें 5डी डोम थिएटर और बागीचा कॉम्प्लेक्स भी शामिल होगा, जिसमें 1500 वाहनों के लिए पार्किंग, फ़ूड कॉर्ट और मेडिकल सुविधाएँ होना बताया जा रहा है।
फेज 2, जिसे पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के माध्यम से आर्थिक साहियोग किया जाएगा जिसमें तटीय राज्यों के पवेलियन, ईको-रिज़ॉर्ट्स, लोथल शहर का पूरी तरह से पुनर्निर्मित मॉडल, एक मैरीटाइम इंस्टिट्यूट और चार थीम पार्क शामिल होंगे। ये थीम पार्क समुद्री इतिहास, जलवायु परिवर्तन, स्मारक और एडवेंचर पर केंद्रित होंगे।
जानकारी के अनुसार इस परियोजना को बंदरगाह, शिपिंग और वाटरवे मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय का समर्थन प्राप्त है। इसके लिए फंडिंग मुख्य बंदरगाहों, रक्षा मंत्रालय, नेशनल कल्चर फंड और 3,000 करोड़ रुपए के निजी निवेश से की जा रही है। वहीं, लाइटहाउस म्यूज़ियम का वित्तपोषण डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ लाइटहाउस और लाइटशिप्स (डीजीएलएल) करेगा। आर्थिक दृष्टि से, नेशनल मैरीटाइम हेरिटेज कॉम्प्लेक्स (एनएमएचसी) रोज़ाना 25,000 पर्यटकों को आकर्षित करने की उम्मीद बताई जा रही है। इससे सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से 22,000 नौकरियाँ पैदा होंगी और क्षेत्र की स्थानीय उद्योगों को भी बढ़ावा मिलेगा। इसका उद्देश्य लोथल को भारत के प्रमुख हेरिटेज पर्यटन स्थलों के बराबर एक बड़ा पर्यटन केंद्र बनाना है।
लोथल सिंधु-सरस्वती सभ्यता का एक प्रमुख स्थल रहा है। यह दिखाता है कि प्राचीन भारतीय सभ्यता कैसे सिंधु नदी से फैलकर सरस्वती के किनारे फली-फूली और उत्तर-पश्चिम भारत तक विकसित हुई। इस सभ्यता ने व्यापार, शिल्पकला, नगर योजना और संस्कृति में अपनी विरासत की निरंतरता को बनाए रखा। लोथल, गुजरात के भाल क्षेत्र में खंभात की खाड़ी के पास स्थित है और यहाँ दुनिया का सबसे पुराना मानव निर्मित डॉकयार्ड है। इसमें 214 मीटर लंबा और 36 मीटर चौड़ा ट्रैपेज़ॉइडल बेसिन है, जिसकी लंबवत ईंट की दीवारें हैं और यह साबरमती नदी से इनलेट और आउटलेट चौनलों के जरिए जुड़ा हुआ है। सिंधु-सरस्वती सभ्यता के लोग जल प्रबंधन और योजना बनाने में अत्यंत कुशल थे। लोथल का डॉकयार्ड क्षेत्र में उच्च ज्वार-भाटा को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया था और इसमें सिल्ट जमाव को रोकने के लिए स्पिल चैनल भी बनाया गया था।
लोथल में प्रारंभिक उत्खनन 1955 से 1962 के बीच किए गए थे। इस उत्खनन परियोजना का नेतृत्व एस आर राव ने किया था जिन्हें अपने जीवन में 30 हड़प्पा स्थलों की खोज करने का श्रेय दिया जाता है। राव ने लोथल के महत्व को बताते हुए इसे पेन म्यूज़ीअम एक्स्पिडिशन मैगजीन में लिखा था। हड़प्पावासियों द्वारा निर्मित पकी हुई ईंटों की अब तक की सबसे बड़ी संरचना लोथल में रखी गई थी, जिसका उपयोग जहाजों को खड़ा करने और माल को संभालने के लिए बर्थ के रूप में किया जाता था.. मूल रूप से, गोदी को 18 मीटर से 20 मीटर लंबे और 4 से 6 मीटर चौड़े जहाजों को जलद्वार में डालने के लिए डिज़ाइन किया गया था.. कम से कम दो जहाज एक साथ प्रवेश द्वार से गुजर सकते थे।
आईआईटी गाँधी नगर के अध्ययन, प्रोफेसर वी एन प्रभाकर, प्रोफेसर विक्रांत जैन और एकता गुप्ता द्वारा किया गया, राव की लिखी बातों की पुष्टि करता है। साबरमती की पुरानी नहरों का प्रवाह लोथल को भूगोलिक दृष्टि से सुविधाजनक स्थान प्रदान करता था जो सक्रिय व्यापार नेटवर्क के केंद्र में था। यह नेटवर्क अरब सागर के भारतीय बंदरगाहों, खासकर खंभात की खाड़ी, से शुरू होकर प्राचीन मेसोपोटामिया तक फैला हुआ था।
इस थ्योरी को लोथल और आसपास के क्षेत्र से मिले प्राचीन मुहरों की संख्या भी समर्थन देती है। रिपोर्ट के अनुसार, यह संख्या सौराष्ट्र के किसी भी अन्य स्थल से अधिक है। इन मुहरों का इस्तेमाल माल ढोने के पैकेज, व्यापार दस्तावेज और पत्रों पर चिह्न लगाने के लिए किया जाता था। लोथल में कई चरणों में आबादी और पुनर्स्थापनाएँ हुईं। इस क्षेत्र का धीरे-धीरे पतन मुख्य रूप से साबरमती नदी के विनाशकारी बाढ़ और नदी के मार्ग बदलने के कारण हुआ, जिससे डॉकयार्ड सूख गया। एस आर राव के अनुसार लगभग 2000 ईसा पूर्व की एक बड़ी बाढ़ के बाद यह फलता-फूलता शहर तबाह हो गया था और बचे रह गए केवल कुछ लोग और असंगठित गाँव। फिर 1900 ईसा पूर्व एक और बड़ी बाढ़ ने इस स्थल को स्थायी रूप से नष्ट कर दिया।
जानकारों के अनुसार नेशनल मैरीटाइम हेरिटेज कॉम्प्लेक्स इंडस वैली सभ्यता की समुद्री और इंजीनियरिंग क्षमताओं की विरासत को संरक्षित करेगा, साथ ही आर्थिक विकास और सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ावा देगा। उन लोगों के लिए, जो अपनी समुद्री विरासत से दूर हो गए हैं, एनएमएचसी हमारी शिपबिल्डिंग और समुद्री व्यापार की समृद्ध परंपरा तक पहुँच का माध्यम बनेगा। उन्नत तकनीक और सोच-समझकर डिजाइन के जरिए एनएमएचसी सुनिश्चित करेगा कि लोथल का ऐतिहासिक महत्व भविष्य की पीढ़ियों तक सुलभ और जीवंत रहे।
रामस्वरूप रावतसरे