महात्मा गांधी की दृष्टि में गौ रक्षा का महत्व

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SDC10544गाय भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। हमारे देश का संपूर्ण राष्टजीवन गाय पर आश्रित है। गौमाता सुखी होने से राष्ट सुखी होगा और गौ माता दुखी होने से राष्ट के प्रति विपत्तियां आयेंगी, ऐसा माना जा सकता है।

गाय को आज व्यावहारिक उपयोगिता के पैमाने पर मापा जा रहा है किंतु यह ध्यान रखना आवश्यक है कि आधुनिक विज्ञान की सीमाएं हैं। आज का विज्ञान गाय की सूक्ष्म व परमोत्कृष्ट उपयोगिता के विषय में सोच भी नहीं सकता। भारतीय साधु, संत तथा मनीषियों को अपनी साधना के बल पर गाय की इन सूक्ष्म उपयोगिताओं के बारे में ज्ञान प्राप्त किया था। इसलिए ही उन्होंने गाय को गौमाता कहा था। भारतीय शास्त्रों में गौ महात्म्य के विषय में अनेक कथाएं मिलती हैं।

गाय का सांस्कृतिक व आर्थिक महत्व है। संक्षेप में कहा जाए तो भारतीय ग्रामीण अर्थ व्यवस्था का आधार गाय ही है। गाय के बिना भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की कल्पना तक नहीं की जा सकती।

महात्मा गांधी एक मनीषी थे। वह भारतीयता के प्रबल पक्षधर थे। उनका स्पष्ट मत था कि भारत को पश्चिम का अनुकरण नहीं करना चाहिए। भारत को अपनी संस्कृति. विरासत व मूल्यों के आधार पर विकास की राह पर आगे बढना चाहिए। गांधी जी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक हिन्द स्वराज में लिखा है – अंग्रेजों के विकास माडल को अपनाने से भारत, भारत नहीं रह जाएगा और भारत सच्चा इंगलिस्तान बन जाएगा।

गांधी जी का यह स्पष्ट मानना था कि देश में ग्राम आधारित विकास होने की आवश्यकता है। ग्राम आधारित विकास के लिए भारत जैसे देश में गाय का कितना महत्व है, उनको इस बात का अंदाजा था। गांधी जी ने गौ रक्षा को हिन्दू धर्म का केन्द्रीय तत्व कहा है। गांधी जी कहते थे कि जो हिन्दू गौ रक्षा के लिए जितना अधिक तत्पर है वह उतना ही श्रेष्ठ हिन्दू है। गौरक्षा के लिए गांधी जी किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार थे।

महात्मा गांधी ने गाय को अवमानवीय सृष्टि का पवित्रतम रुप बताया है। उनका मानना था कि गौ रक्षा का वास्तविक अर्थ है ईश्वर की समस्त मूक सृष्टि की रक्षा। उन्होंने 1921 में यंग इंडिया पत्रिका में लिखा “ गाय करुणा का काव्य है। यह सौम्य पशु मूर्तिमान करुणा है। वह करोड़ों भारतीयों की मां है। गौ रक्षा का अर्थ है ईश्वर की समस्त मूक सृष्टि की रक्षा। प्राचीन ऋषि ने, वह जो भी रहा हो, आरंभ गाय से किया। सृष्टि के निम्नतम प्राणियों की रक्षा का प्रश्न और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ईश्वर ने उन्हें वाणी नहीं दी है। ” ( यंग इंडिया, 6-11-1921)

गांधी जी ने अत्यंत मार्मिक शब्दों में लिखा – “ गाय अवमानवीय सृष्टि का पवित्रतम रुप है। वह प्राणियों में सबसे समर्थ अर्थात मनुष्यों के हाथों न्याय पाने के वास्ते सभी अवमानवीय जीवों की ओर से हमें गुहार करती है। वह अपनी आंखों की भाषा में हमसे यह कहती प्रतीत होती है : ईश्वर ने तुम्हें हमारा स्वामी इसलिए नहीं बनाया है कि तुम हमें मार डालो, हमारा मांस खाओ अथवा किसी अन्य प्रकार से हमारे साथ दुर्वव्यहार करो, बल्कि इसलिए बनाया है कि तुम हमारे मित्र तथा संरक्षक बन कर रहो।” ( यंग इंडिया, 26.06.1924)

महात्मा गांधी गौ माता को जन्मदात्री मां से भी श्रेष्ठ मानते थे। गौ माता निस्वार्थ भाव से पूरे विश्व की सेवा करती है। इसके बदले में वह कुछ भी नहीं मांगती। केवल जिंदा रहने तक ही नहीं बल्कि मरने के बाद भी वह हमारे काम में आती है। अगर निस्वार्थ भाव से सेवा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण कहीं देखने को मिलता है तो वह गौ माता है।

गांधी जी लिखते हैं – “ गोमाता जन्म देने वाली माता से श्रेष्ठ है। हमारी माता हमें दो वर्ष दुग्धपान कराती है और यह आशा करती है कि हम बडे होकर उसकी सेवा करेंगे। गाय हमसे चारे और दाने के अलावा किसी और चीज की आशा नहीं करती। हमारी मां प्राय: रुग्ण हो जाती है और हमसे सेवा करने की अपेक्षा करती है। गोमाता शायद ही कभी बीमार पडती है। गोमाता हमारी सेवा आजीवन ही नहीं करती, अपितु अपनी मृत्यु के उपरांत भी करती है। अपनी मां की मृत्यु होने पर हमें दफनाने या उसका दाह संस्कार करने पर भी धनराशि व्यय करनी पडती है। गोमाता मर जाने पर भी उतनी ही उपयोगी सिद्ध होती है जितनी अपने जीवन काल में थी। हम उसके शरीर के हर अंग – मांस, अस्थियां. आंतें, सींग और चर्म का इस्तमाल कर सकते हैं। ये बात हमें जन्म देने वाली मां की निंदा के विचार से नहीं कह रहा हूं बल्कि यह दिखाने के लिए कह रहा हूं कि मैं गाय की पूजा क्यों करता हूं। ”( हरिजन , 15.09-1940)

गांधीजी गौ रक्षा के लिए संपूर्ण विश्व का मुकाबला करने के लिए तैयार थे। 1925 में यंग इंडिया में उन्होंने इस बात का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है – “ मैं गाय की पूजा करता हूं और उसकी पूजा का समर्थन करने के लिए दुनिया का मुकाबला करने को तैयार हूं। ” – (यंग इंडिया, 1-1-1925)

गांधीजी का मानना था कि गौ हत्या का कलंक सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि पूरे देश से बंद होना चाहिए। इसके लिए भारत से यह कार्य शुरु हो, यह वह चाहते थे। उन्होंने लिखा है – “ मेरी आकांक्षा है कि गौ रक्षा के सिद्धांत की मान्यता संपूर्ण विश्व में हो। पर इसके लिए यह आवश्यक है पहले भारत में गौवंश की दुर्गति समाप्त हो और उसे उचित स्थान मिले ” – (यंग इंडिया, 29-1-1925)

आर्थिक दृष्टि से लाभदायक न होने वाले पशुओं की हत्या की जो परंपरा पश्चिम में विकसित हुई है गांधी जी उसकी निंदा करते थे। गांधीजी उसे ‘हृदयहीन व्यवस्था’ कहते थे। उन्होंने बार-बार कहा कि ऐसी व्यवस्था का भारत में कोई स्थान नहीं है। इस बारे में उन्होंने एक बार हरिजन पत्रिका में लिखा। गांधीजी की शब्दों में – “ जहां तक गौरक्षा की शुद्ध आर्थिक आवश्यकता का प्रश्न है, यदि इस पर केवल इसी दृष्टि से विचार किया जाए तो इसका हल आसान है। तब तो बिना कोई विचार किये उन सभी पशुओं को मार देना चाहिए जिनका दूध सूख गया है या जिन पर आने वाले खर्च की तुलना में उनसे मिलने वाले दूध की कीमत कम है या जो बूढे और नाकारा हो गए हैं। लेकिन इस हृदयहीन व्यवस्था के लिए भारत में कोई स्थान नहीं है , यद्यपि विरोधाभासों की इस भूमि के निवासी वस्तुत: अनेक हृदयहीन कृत्यों के दोषी हैं। ” (हरिजन ,31.08. 1947)

महात्मा गांधी ने गौ रक्षा को हिन्दू धर्म का केन्द्रीय तत्व कहा है। गौ के महात्म्य के बारे में उन्होंने लिखा है – हिन्दू धर्म का केन्द्रीय तत्व गोरक्षा है। मैं गोरक्षा को मानव विकास की सबसे अदभुत घटना मानता हूं। यह मानव का उदात्तीकरण करती है। मेरी दृष्टि में गाय का अर्थ समस्त अवमानवीय जगत है। गाय के माध्यम से मनुष्य समस्त जीवजगत के साथ अपना तादात्म्य स्थापित करता है। गाय को इसके लिए क्यों चुना गया, इसका कारण स्पष्ट है। भारत में गाय मनुष्य की सबसे अच्छी साथिन थी। उसे कामधेनु कहा गया। वह केवल दूध ही नहीं देती थी, बल्कि उसी के बदौलत कृषि संभव हो पाई। ” – (यंग इंड़िया, 6.10.1921)

महात्मा गांधी ने गौ रक्षा को हिन्दू धर्म के संरक्षण के साथ जोडा है। उनके शब्दों में – गो रक्षा विश्व को हिन्दू धर्म की देन है। हिन्दू धर्म तब तक जीवित रहेगा जब तक गोरक्षक हिन्दू मौजूद है। ”- (यंग इंड़िया, 6.10.1921)

अच्छे हिन्दुओं को हम कैसे परखेंगे। क्या उनके मस्तक से, तिलक से या मंत्रोच्चार से। गांधी जी का स्पष्ट मानना था कि गौ रक्षा की योग्यता ही हिन्दू होने का आधार है। गांधी जी के शब्दों में – “ हिन्दुओं की परख उनके तिलक, मंत्रों के शुद्ध उच्चारण, तीर्थयात्राओं तथा जात -पात के नियमों के अत्यौपचारिक पालन से नहीं की जाएगी, बल्कि गाय की रक्षा करने की उनकी योग्यता के आधार पर की जाएगी। ” (यंग इंडिया . 6.10.1921)

गांधी जी के उपरोक्त विचारों से स्पष्ट है कि बापू गौ रक्षा को कितना महत्वपूर्ण मानते थे। लेकिन इसे त्रासदी ही कहना चाहिए कि गांधी के देश में गौ हत्या धडल्ले से चल रही है। महात्मा गांधी के विचारों की हत्या कर दी गई है। आवश्यकता इस बात की है कि गांधी जी के विचारों के आधार पर, भारतीय शाश्वत संस्कृति व परंपराओं के आधार पर भारतीय व्यवस्था को स्थापित किया जाए और गौ माता की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं, तभी गांधीजी के सपनों का राम राज्य स्थापित हो पाएगा।

-समन्वय नंद

19 COMMENTS

  1. माननीय समन्वय जी और डा. राजेश जी,

    इन महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

    गो-वंश के संरक्षण पर राष्ट्रीय या प्रान्तीय स्तर पर क्या (सर्वकारी या गैर-सर्वकारी) कोई कार्य (या कोई कार्ययोजना / गोष्ठी) चल रहा है? यदि हाँ, तो कृपया मुझे अवगत कराएँ ।

    इस विषय पर मेरे कुछ विचार प्रवक्ता पर ही, “क्यूँ करें गोरक्षा” नामक लेख में प्रकाशित हैं । वह लेख यहाँ पढा जा सकता है –

    https://www.pravakta.com/why-the-gorksha?utm_source=feedburner&utm_medium=email&utm_campaign=Feed%3A+pravakta+%28PRAVAKTA+%E0%A5%A4+%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%95%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%29

    भवदीय मानव ।

  2. डा.मधुसुदन जी, एक बड़ी काम की सूचना यह है कि ‘योग सन्देश’ (पताजली योगपीठ-बाबा रामदेव जी की पत्रिका) में स्वदेशी-विदेशी गो दुग्ध के बारे में बड़ी प्रमाणिक और उपयोगी जानकारी पृष्ठ ४६,४७,४८ पर छापी है. हम पढ़ें और प्रचारित करें तो अच्छा रहेगा.
    आप द्वारा प्राप्त प्रोत्साहन एवं त्वरित कार्यवाही हेतु साधुवाद एवं धन्यवाद !

  3. डा. मधुसुदन जी ! भारतीय और विदेशी गो में मूलभूत अंतर पायागया है. केवल भारतीय गौएँ हैं जिनमें निम्न गुण हैं, विदेशी में नहीं.
    १.रचना में अंतर: *भारतीय गोवंश के चर्म में १५००से १६०० छिद्र प्रति वर्ग सेंटीमीटर होते हैं जबकि विदेशी में ४००-५०० होते हैं. इसके कारण हमारी गौएँ भारी गर्मी भी आसानी से सह जाती हैं. उनका शारीर अधिक पसीना निकालता है, अधिक ऊर्जा तथा औक्सिज़न ग्रहण करता है जिस से भीतर -बाहर शुधि-सफाई रहती है. *हमारी गौओं की पीठ गोल होती है, बाल मोटे होते हैं ,कुत्ते जैसे बारीक नहीं; आँखें बहुत सुन्दर होती हैं, गले में झालर होने के बारे में हम सब जानते हैं.
    *इसके इलावा हमारी गो अत्यंत संवेदनशील, करुणा पूर्ण, ममता से भरी और अत्यंत बुद्धिमान होती है. स्मरण शक्ति भी असामान्य होती है. संपर्क में रहे बिना इसे समझना ज़रा कठिन है. शायद विश्वसनीय न लगे, पर कहे से कहीं अधिक गुण हमारी गौओं में हैं. ईश्वरीय और अलोकिक गुणों की चर्चा अभी हम नहीं कर रहे.
    गो के बारे में कुछ वैज्ञानिक तथ्यों को जानना रोचक रहेगा. भारतीय गोवंश के दूध में बीटा-केसिन ए-2 नामक प्रोटीन पाया जाता है जिस से अनेक रोग ठीक होते हैं जबकि अधिकांश विदेशी गोवंश में बीटा-केसिन ए-1 प्रोटीन मिला है जिस से अनेक असाध्य रोग पैदा होते हैं. (कृपया प्रमाण और विस्तार के लिए ” स्वास्थ्य ” स्तम्भ में ‘हार्मोन दूध के विरोध वाला लेख देखें)
    हमारे गो-घृत से कोलेस्ट्राल (LDL) नहीं बढ़ता. अतः ह्रदय रोगी भी इस घी का भरपूर सेवन कर सकते हैं .ध्यान यह रहे कि घी केवल दही जमाकर बनाया जाय.
    योग और आयुर्वेद शास्त्रों के अनुसार भारतीय गो के शारीर में सुर्यकेतु नाडी (पीठ में) होती है जिस के कारण सूर्य की किरणों से गो के दूध में स्वर्ण अंश पैदा होता है. स्वर्ण अनेकों असाध्य रोगों का नाशक है. दूध में पायागया केरोटिन केंसर रोधक है . सेरिब्रोसाईट नामक पदार्थ से बुधि तीव्र होती है. इस दूध से पौरुष बल तथा शुक्राणुओं की वृद्धि होने के प्रमाण आधुनिक वैज्ञानिकों ने ढूंढे हैं.(प्रमाणों के लिए डा. जानी, जामनगर, रीडर-पंचकर्म, आयुर्वेद महा विद्यालय से संपर्क कर सकते हैं)
    अंत में इतना कहना है कि हमारा गोवंश इश्वर कि अद्भुत देन है जिसकी तुलना संसार के किसी पदार्थ से नहीं कि जा सकती. उसकी ऐसी दुर्दशा,ऐसी उपेक्षा ?
    नहीं जानते तो जान लेना चाहिए कि अमेरिका, यूरोपीय देशों के फूलों में सुगंध नहीं होती, भारतीय फूलों कि कोई तुलना नहीं. अब कोई पूछे कि भारत पर ही ईश्वर कि ऐसी कृपा क्यों ? तो यह मुझ अल्पज्ञ की समझ से बाहर है. पर इतना हम भारतीय जानते हैं कि ईश्वर बार बार केवल भारत में जन्म लेता है-अवतरित होताहै, गंगा जैसी अद्भुत नदी हमें सौपता है, ६ ऋतुएँ और सुगन्धित पुष्प हमें देता है,गोमाता जैसा वरदान हम भारतियों को देता है ,और ऐसे अद्भुत -पवित्र देश में मुझको जन्म देता है तोयह मेरा सौभाग्य है. उन भग्य हीनों में मैं अपना नाम नहीं लिखवाना चाहता जो यहाँ जन्म लेकर भी इसके प्रति कृतज्ञता भाव से वंचि हैं.
    वन्दे मातरम् !

    • डॉ. राजेशजी। हमारी गौओं की रक्षा,पालन,संवर्धन इत्यादि निश्चित ही होना चाहिए। कृतज्ञता सहित आभार।मुझे फूलोंकी सुगंध के विषयमें भी, प्रश्न था–आपने उत्तर दे ही दिया, सही समाधानके लिए धन्यवाद।

  4. बहुत ही ज्ञानवर्धन लेख. बिलकुल सत्य कहा है. सरकार गोधन को जानबूझकर नजर अंदाज कर रही है. अरबो रुपए रासायनिक खाद पर खर्च कर रही है. पर्याप्त गोधन होगा तो गोबर गैस से खरबों बचाया जा सकेगा. सभी को धन्यवाद तो प्रत्यक्ष और परोक्च रूप से गोवंश का समर्थन करते है.

  5. भारतीय-गौवंश के बारे में कुछ ख़ास बातें जानने योग्य हैं. एक चिकित्सक के रूप में मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि संसार के लगभग सभी रोगों का इलाज भारतीय गौवंश के पञ्च-गव्य, स्पर्श तथा उनकी (गौवंश) की सेवा से संभव है. ऐलोपथिक दवाइयां बनाना-बेचना संसार का सबसे बड़ा व्यापार(हथियारों के बाद)बनचुका है या यूँ कहें की बनादिया गया है. ऐसे में अपने व्यापार को बढाने के लिए हर प्रकार के अनैतिक ,अमानवीय हथकंडे अपनानेवाली बहुराष्ट्रीय-कम्पनियां गौवंश के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकती हैं, इस सच को समझना ज़रूरी है.
    भारतीय गौधन को समाप्त करने के हर प्रयास के पीछे इन पश्चिमी कम्पनियों का हाथ होना सुनिश्चित होता है, हमारी सरकार तो केवल उनकी कठपुतली है.इन विदेशी ताकतों की हर विनाश योजना की एक खासियत होती है कि वह योजना हमारे विकास के मुखौटे में हमपर थोंपी जाती है. गोउवंश विनाश की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. वह कैसे ——?
    १.दूध बढाने के नाम पर विदेशी गौवंश को बढ़ावा दिया गयाऔर इसके लिए अरबों रूपये के अनुदान दिए गए. भारतीय गौवंश की समाप्ति चुपके से होती चलीगयी. जबकि अमेरिकी और यूरोपीय वैज्ञानिक सन 1986-88 में ही जान चुके थे कि हालिसटीन , फ्रीजियन, जर्सी तथा रेड-डेनिश नामक अमेरिकन-यूरोपियन गौओं के दूध में ‘बीटाकेसिन ए-१’ नामक प्रोटीन पाया गया है जिससे मधुमेह , मानसिक रोग, ऑटिज्म तथा कई प्रकार के कैंसर यथा स्तन, प्रोस्टेट, अमाशय, आँतों, फेफड़ों तक का कैंसर होने के प्रमाण मिले हैं. यह महत्वपूर्ण खोज ऑकलैंड ‘ए-२ कारपोरेशन’ के साहित्य में उपलब्ध है. तभी तो ब्राज़ील ने ४० लाख से अधिक भारतीय गौएँ तेयार की हैं और आज वह संसार का सबसे बड़ा भारतीय गौ वंश का निर्यातक देश है. यह अकारण तो नहीं होसकता. उसने अमेरिकी गोवंश क्यों तैयार नहीं करलिया ? वह अच्छा होता तो करता न. और हम क्या कर रहे हैं ? अपने गो-धन का यानी अपना विनाश अपने हाथों कर रहे हैं न ?
    २.दूध बढाने का झांसा देकर हमारी गौओं को समाप्त करने का दूसरा प्रयास तथाकथित दुग्ध-वर्धक हारमोनो के द्वारा किया जा रहा है. बोविन- ग्रोथ (ऑक्सीटोसिन आदि) हारमोनों से २-३ बार दूध बढ़ कर फिर गौ सदा के लिए बाँझ होजाती है. ऐसी गौओं के कारण सड़कों पर लाखों सुखी गौएँ भटकती नजर आती हैं. इस सच को हम सामने होने पर भी नहीं देख पा रहे तो यह बिके हुए सशक्त प्रचारतंत्र के कारण.
    ३.गोवंश के बाँझ होने या बनाये जाने का तीसरा तरीका कृत्रिम गर्भाधान है. आजमाकर देख लें कि स्वदेशी बैल के संसर्ग में गौएँ अधिक स्वस्थ, प्रसन्न और सरलता से नए दूध होने वाली बनती हैं. है ना कमाल कि दूध बढाने के नाम पर हमारे ही हाथों हमारे गो-धन कि समाप्ति करवाई जारही है और हमें आभास तक नहीं.
    हमारे स्वदेशी गो-धन क़ी कुछ अद्भुत विशेषताएं स्मरण करलें—————–

    *इसके गोबर-गोमूत्र के प्रयोग से कैंसर जैसे असाध्य रोग भी सरलता से चन्द रोज़ में ठीक होजाते हैं.

    *जिस खेत में एक बार घुमा दिया जाए उसकी उपज आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है जबकि विदेशी के प्रभाव से उपज नष्ट हो जायेगी. चाहें तो आजमालें.
    इसके गोबर, गोमूत्र,दूध, घी,दही लस्सी के प्रयोग से भी तो फसलें और हमारे शरीर रोगी बन रहे हैं, इसे समझना चाहिए. विश्वास न हो तो आजमाना चाहिए.
    *हमने अपने अनेक रोगियों पर अजमाया है क़ी हमारी गौओं के गोबर से बने सूखे उप्क्प्लों पर कुछ दिन तक नंगे पैर रखने से उच्च या निम्न रक्तचाप ठीक होजाता है. सर से पूंछ क़ी और १५ दिन तक रोज़ कुछ मिनेट तक हाथ फेरने से भी पुराना रक्तचाप ठीक हो जाएगा.

    **एक बड़ी कीमती और प्रमाणिक जानकारी यह है कि हमारे गो- बैल के गोबर का टुकडा प्रातः-सायं जलाने से संसार के हर रोग के कीटाणु कुछ ही देर (आधे घंटे) में मर जाते हैं. यदि गोबर के इस टुकड़े पर थोडासा गोघृत लगादेंगे तो असर और बढ़ जाएगा. इस जलते उपले के ऊपर २-४ दाने मुनक्का, दाख, किशमिश या देसी गुड के रख कर जलाने से सोने पर सुहागा सिद्ध होगा. प्लेग, हेजा, तपेदिक तक के रोगाणु नष्ट होना सुनिश्चित है. नियमित दोनों समय २ -३ इंच का गोबर का टुकड़ा इसी प्रकार जलाएं तो असाध्य कीटाणु जन्य रोग ठीक होते नज़र आयेगे, नए रोग पैदा ही नहीं होंगे. हमने ॐ और गोबर के इस प्रयोग से ऐल्ज़िमर के ३ रोगियों का इलाज करने में सफलता प्राप्त क़ी है, आप भी अपनी गोमाता पर विश्वास करके ये कमाल कर सकते हैं.

    अब ऐसे में संसार क़ी दवानिर्माता कम्पनियां आपकी गो के अस्तित्वा को कैसे सहन कर सकती हैं. इनकी समाप्ति के लिए वे कुछ भी करेंगी,कितना भी धन खर्च करेंगी, कर रही हैं. विडम्बना यह है कि जिस सच को गो- वंश नाशक कम्पनियां अच्छी तरह जानती हैं उसे आप नहीं जानते. अपने अस्तित्व क़ी रक्षा के लिए, प्राणिमात्र की रक्षा के लिए और सारे निसर्ग क़ी रक्षा के लिए भारतीय गोवंश क़ी रक्षा ज़रूरी है, इस सच को जितनी जल्दी हम जान समझ लें उतना अछा है,हमारे हित में है.

    • डॉ. राजेशजी
      जानकारीके लिए विशेष धन्यवाद। परदेशी गौएं और भारतीय गौओं में अंतर किसी विशेष कारणसे आता होगा।
      कुछ प्रकाश डाल पाएं, तो स्पष्ट होगा।

  6. VEry well written article by samnvay.I really pity for US that we are still obsessed by everything western….so called phoren thing….Looking ahead for some more articles by you.

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