Home राजनीति गोविन्दाचार्य के गांव की डायरी : मिशन तिरहुतीपुर डायरी-1

गोविन्दाचार्य के गांव की डायरी : मिशन तिरहुतीपुर डायरी-1

भाजपा के पूर्व संगठन मंत्री और प्रख्यात चिंतक-विचारक के.एन. गोविन्दाचार्य ने अब उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ जिले के तिरहुतीपुर गांव को अपना स्थायी निवास बना लिया है। वहां वे अपने कई कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर ग्राम विकास के विविध पहलुओं पर मिशन तिरहुतीपुर के नाम से अभियान चला रहे हैं। पिछले एक वर्ष में यह अभियान जिन-जिन पड़ावों से गुजरते हुए आगे बढ़ा है, उससे जुड़ी तमाम घटनाओं, तथ्यों और अनुभवों को विस्तार से बताते हुए मिशन तिरहुतीपुर के संयोजक विमल कुमार सिंह एक डायरी लिख रहे हैं। इस डायरी की सामग्री प्रवक्ता के पाठकों को प्रति सप्ताह उपलब्ध कराई जाएगी ताकि वे भी गोविन्दाचार्य के प्रयोग को जान और समझ सकें।

मिशन तिरहुतीपुर डायरी-1

दुनिया में कोई भी चीज शायद शून्य से शुरू नहीं होती। उसके पीछे उसका अतीत, उसकी पृष्ठभूमि जरूर होती है। मिशन तिरहुतीपुर इसका अपवाद नहीं है। इसके पीछे गोविन्दाचार्य जी का 50 से अधिक वर्षों का सार्वजनिक जीवन है। लेकिन अभी हम उस पर चर्चा करने की बजाए बात करेंगे कि-

कैसे शुरू हुआ मिशन तिरहुतीपुर और खास तिरहुतीपुर गांव को ही चुनने का क्या कारण था?

अप्रैल, 2020 में जब पूरा देश कोरोना की पहली लहर से जूझ रहा था और बड़े शहरों में फंसे मजदूर अपार कष्ट सहते हुए अपने-अपने गांव पहुंचने की जद्दोजहद में लगे हुए थे, उसी समय गोविन्दाचार्य जी ने अपने फेसबुक वाल पर एक पोस्ट किया। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से पूछा कि उन्हें इस समय क्या करना चाहिए। अधिकतर कार्यकर्ताओं ने इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर पहल करने का सुझाव दिया। इसी संबंध में मैंने भी गोविन्दजी को एक पोस्ट लिखा जिसे मैं यहां शब्दशः प्रस्तुत कर रहा हूं।

“सादर प्रणाम।
कोरोना महामारी से निपटने के लिए आपने जो पहल की है, उसके लिए साधुवाद। हम एक साथ पूरे देश में काम कर सकें तो बहुत अच्छा होगा लेकिन इसके लिए संसाधन (आर्थिक और मानवीय दोनों) जुटाना अपने आप में बहुत दुरूह और समयसाध्य कार्य है। इसलिए इस दिशा में आवश्यक प्रयास जारी रखते हुए हमें एक तात्कालिक रणनीति पर भी काम करना चाहिए जिसका सूत्र मुझे आपके दिए दो नारों में दिखाई देता है। ये नारे हैं – ‘’थिंक ग्लोबली एक्ट लोकली’’ और ‘’मेरा गांव मेरा देश’’।

मेरा सुझाव है कि आप एक गांव को गोद लीजिए। वैसे भी मदद की जरूरत शहरों से ज्यादा गांवों को है। यदि देश की सभी सज्जन शक्तियां मिलकर एक गांव के समग्र विकास की युगानुकूल तस्वीर खींच दें तो सारी समस्याओं के समाधान का रास्ता निकल सकता है। यह रास्ता आस-पास के गांवों से होते हुए पूरे देश में सहज ही फैल जाएगा और हो सकता है कि यह सकारात्मक परिवर्तन धीरे-धीरे पूरे विश्व को एक नई राह दिखा दे।

गांव में क्या करना, इसके लिए किसी चिंतन की जरूरत नहीं है। इसके लिए एक छोटा सा कदम उठाने की जरूरत है। आप जैसे मनीषी यदि एक गांव को गोद लेकर वहां कुछ दिन रहना शुरू कर दें तो सारा काम अपने आप हो जाएगा। आपके आह्वान पर देश की सज्जन शक्तियां अपनी-अपनी विशेषज्ञता के आधार पर उस गांव को संवारने की मुहिम में लग जाएंगी। वहां के प्रयोगों से ऐसे कई सूत्र निकलेंगे, जिन्हें लोग अपने-अपने गांव के स्तर पर कर सकेंगे। एक-दूसरे के प्रयोगों से सीखते हुए हम इस मुहिम को आपके नेतृत्व में मजबूत बनाते चलेंगे।

इस दिशा में मैं एक कदम आगे बढ़ाते हुए आपसे निवेदन कर रहा हूं कि आप आजमगढ़ स्थित हमारे गांव को गोद लें। मैं अपनी पूरी ताकत लगाकर आपके साथ काम करने के लिए तैयार हूं।

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