नई दिल्ली : हर सरकार का अपना काम करने का एक तरीका होता है ज्यादातर सरकारे नए नियम बनाने में आगे रहती है,
नौकरशाही में लेटरल एंट्री का पहला प्रस्ताव 2005 में आया था, जब प्रशासनिक सुधार पर पहली रिपोर्ट आई थी, लेकिन तब इसे माना नहीं गया। फिर 2010 में दूसरी प्रशासनिक सुधार रिपोर्ट में भी इसकी अनुशंसा की गई। इस दिशा में पहली गंभीर पहल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद हुई। मोदी सरकार ने 2016 में इसकी संभावना तलाशने के लिए एक कमेटी बनाई, जिसने अपनी रिपोर्ट में इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ने की सिफारिश की। सिफारिश के बावजूद सरकारी स्तर पर कुछ दुविधाएं और सवाल बने रहे। आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप के बाद मूल प्रस्ताव में आंशिक बदलाव कर इसे लागू कर दिया गया। हालांकि पहले प्रस्ताव के अनुसार सचिव स्तर के पद पर भी लेटरल एंट्री की अनुशंसा की गई थी, लेकिन वरिष्ठ नौकरशाहों के विरोध के कारण फिलहाल संयुक्त सचिव के पद पर ही इसकी पहल की गई है। इस तरह देखें तो प्रशासनिक सुधारों की जिन सिफारिशों को मनमोहन सरकार ने मंजूरी नहीं दी, उन्हें मोदी सरकार ने मंजूरी दे दी है।