
उच्चतम न्यायालय ने बैंकों और डाकघरों के बाहर लंबी कतारों को आज एक ‘गंभीर मसला’ बताया और पांच सौ तथा एक हजार रूपये की मुद्रा बंद करने की आठ नवंबर को अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार नहीं करने का देश की अन्य अदालतों को निर्देश देने की केन्द्र की अर्जी पर अपनी असहमति व्यक्त की।
प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर और अनिल आर दवे की पीठ ने संबंधित पक्षों से सभी आंकड़ों और दूसरे बिन्दुओं के बारे में लिखित में तैयार करने का निर्देश देते हुये कहा, ‘‘यह गंभीर विषय है जिस पर विचार की आवश्यकता है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘कुछ उपाय करने की जरूरत है। देखिये जनता किस तरह की समस्याओं से रूबरू हो रही है। लोगों को उच्च न्यायालय जाना ही पड़ेगा। यदि हम उच्च न्यायालय जाने का उनका विकल्प बंद कर दहेंगे तो हमें समस्या की गंभीरता का कैसे पता चलेगा। लोगों के विभिन्न अदालतों में जाने से ही समस्या की गंभीरता का पता चलता है।’’ पीठ ने यह टिप्पणियां उस वक्त की जब अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि पांच सौ और एक हजार रूपए के नोटों के विमुद्रीकरण को चुनौती देने वाले किसी भी मामले पर सिर्फ देश की शीर्ष अदालत को ही विचार करना चाहिए।
हालांकि, पीठ ने कहा, ‘‘जनता प्रभावित है । जनता व्यग्र है। जनता को अदालतों में जाने का अधिकार है। समस्यायें हैं और क्या आप :केन्द्र: इसका प्रतिवाद कर सकते हैं।’’ अटार्नी जनरल ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है परंतु ये कतारें अब छोटी हो रही हैं। उन्होंने तो यह भी सुझाव दिया कि प्रधान न्यायाधीश भी भोजनावकाश के दौरान बाहर जाकर स्वंय इन कतारों को देख सकते हैं।
मुकुल रोहतगी ने पीठ से कहा, ‘‘कृप्या भोजनावकाश के दौरान जाइये।’’ इसके साथ ही उन्होंने स्थिति को कथित रूप से बढ़ा चढ़ाकर पेश करने पर एक निजी पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के कथन पर आपत्ति व्यक्त की।
( Source – PTI )