
उच्चतम न्यायालय ने मथुरा में पिछले दिनों हुई हिंसा की सीबीआई जांच कराने के लिए आदेश देने से आज इंकार कर दिया। इस हिंसा में दो पुलिस अधिकारियों सहित 29 लोग मारे गए थे।
न्यायमूर्ति पीसी घोष और न्यायमूर्ति अमिताव रॉय की अवकाश पीठ ने कहा कि उसका इरादा कोई आदेश पारित करने का नहीं है और उसने याचिकाकर्ता से कहा कि वह इसके लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रूख करें।
याचिका दायर करने वाले वकील एवं दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से उपस्थित वरिष्ठ वकील गीता लूथरा ने कहा कि मथुरा में बड़े पैमाने पर हिंसा की खबर आई है और सबूतों के साथ छेड़छाड़ की जा रही है।
उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार सीबीआई जांच की शुरूआत नहीं कर रही है और राज्य की जांच एजेंसियां ‘‘अपना काम सही ढंग से नहीं कर रही हैं।’’ इस पीठ ने कहा, ‘‘आपकी याचिका से ऐसा कोई सबूत नहीं मिलता जिससे पता चले कि राज्य जांच एजेंसी की ओर से कोई कोताही है। बिना किसी सबूत के अदालत दखल नहीं दे सकती।’’ पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वे याचिका वापस लें और इसे वापस लिया हुआ करार दिया।
देश की सबसे बड़ी अदालत ने याचिका पर तत्काल सुनवाई के लिए कल सहमति जताई थी।
बीते दो जून को मथुरा के जवाहरबाग में अतिक्रमणरोधी अभियान के दौरान भड़की हिंसा में पुलिस अधीक्षक मुकुल द्विवेदी और धानाध्यक्ष संतोष कुमार यादव सहित 29 लोग मारे गए थे। माना जाता है कि यह अतिक्रमण ‘आजाद भारत विधिक वैचारिक क्रांति सत्याग्रही’ नामक संगठन की ओर से कर लिया गया था।
उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा था कि न्यायालय इस मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए सीबीआई जांच का आदेश दे सकती है क्योंकि ‘सच्चाई, घटना के असली कारण तथा कार्यपालिका, विधायिका एवं कथित समूह के बीच सांठगांठ का पता लगाना जरूरी है।’
( Source – पीटीआई-भाषा )