अव्यवस्था की शिकार होती हमारी न्याय व्यवस्था

शादाब जफर ‘शादाब’

कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने आखिर 19 दिसंबर 2011 को संसद भवन में डा. ज्ञान प्रकाश पिलानिया के पूछे गये एक प्रश्न के दौरान ये मान ही लिया की देश की कानून व्यवस्था पूरी तरह से पटरी पर नही है। देश मैं न्यायाधीशो व अदालतो मैं स्टाफ की कमी के अलावा, ढांचा सुविधाओ का अभाव, पुराने लंबित मामलो को प्राथमिकता न दिया जाना, अत्यधिक स्थगनो को मंजूरी देना, और वकीलो द्वारा मुक्कदमो के दौरान लंबी बहस किये जाने से लोगो को न्याय मिलने मैं देर हो रही है। इस के अलावा कानून मंत्री ने यह भी साफ किया कि इस वर्ष 31 अक्तूबर तक केवल सुप्रीम कोर्ट मैं करीब 56,383 मामले लंबित थें। उन्होने ये कह कर संसद को चौका दिया की इन मैं से 20,334 मामले इस एक साल से भी कम समय के है। इस के अलावा देशभर के हाईकोर्ट में लंबित मामलो की संख्या 30 सितंबर 2010 तक 42,17,903 थी। भारत की न्याय व्यवस्था आज समय पर न्याय नही कर पा रही है। नई अर्थव्यवस्था और नई तकनीके कैसी है। आज अदालतो का रूख ऐसा हो चला है मानो वे सरकार की नीतियो के अनुरूप अपने आप को बदल लेना चाहती है। न्याय जब तक होता है तब तक न्याय पाने वाला भगवान को प्यारा हो जाता है या न्याय के प्रति उस की आस पूरी तरह टूट जाती है। तब कही जाकर उस के हक में अदालत का फैसला आ पाता है। आखिर अदालतो को न्यायालयो में विचाराधीन मुकदमो का फैसला देने में इतनी देर क्यो हो रही है।

दरअसल इस की वजह बिल्कुल साफ है आज की हर एक अदालत में मुकदमो का अम्बार लगा हुआ है। कोर्ट कचहरी में वादी और प्रतिवादी की उम्र मुकदमे की तारीखो पर आते जाते ही बीत जाती है। तारीख पर तारीख लगते लगते कई लोग जवान से बूढे और बूढे परलोक सिधार जाते है। किन्तु अदालत का फैसला आना तब भी बाकी रहता है। कुछ लोग दीवानी का मुकदमा लडते लडते दीवाने हो जाते है। कुछ के मुकदमो में इतनी तारीखे लगी की वादी और प्रतिवादी की दूसरी जायदाद इन मुकदमो की पैरवी करते करते बिक गई पर अदालत का फैसला नही आया। सरकारी आंकडो और विधि मंत्रालय के पास ताजा मौजूद आंकडो के मुताबिक देश भर के विभिन्न उच्च न्यायालय में करीब 265 न्यायाधीशों की आज भी कमी है। और इस कमी के चलते लंबित मुकदमो की संख्या लगभग 39 लाख हो गई है वही देश की विभिन्न अदालतो में तकरीबन 3.128 करोड लंबित मामले चल रहे है। एक अनुमान के अनुसार यदि इसी प्रकार से अदालतो में न्याय प्रक्रिया चलती रही तो इन्हे निपटाने में लगभग 320 साल लगेगे। आज इन्सान की उम्र औसतन 60 से 65 साल के बीच हो रही है ऐसे में जब इन मुकदमो में अदालत का फैसला आने में 320 साल का वक्त लगेगा तो आखिर कितनी पीढी एक मुकदमे को लडेगी कितनी तारीखे लगेगी। कब फैसला होगा किस के हक में होगा कौन बचेगा कौन मरेगा भगवान जाने।

आखिर हमारी सरकार इस ओर ध्यान क्यो नही दे रही। आज देश भर में कॉईम तेजी से बढता जा रहा है। जिस की सब से बडी वजह समय पर मुकदमो का न निपटना, लोगो को इन्साफ मिलने में देरी होना भी है।ऐसे में लंबित मामलो की संख्या और बढेगी। जजो की भारी कमी को देखते हुए लखनऊ अवध बार एसोसिएषन ने पिछले दिनो सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश से जल्द जजो की नियुक्ति की अपील की थी किन्तु अभी तक इस ओर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश के द्वारा कोई ठोस कदम नही उठाया गया है जिस कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित मामलो की संख्या दिन प्रतिदिन बढने से एक ओर जहॅा लोगो को इन्साफ मिलने में देरी हो रही है वही दूसरी ओर आज देश की हर एक अदालत में मुकदमो का अम्बार लगा हुआ है। सरकार को कानून व्यवस्था चुस्तदुस्त बनाने में बडी परेशानी का सामना करना पड रहा है।

आज गॉव कस्बो में लगभग 60 प्रतिशत लोग किसी न किसी तरह मुकदमेबाजी में फॅसे है। खास कर हमारे गॉवो का तो बुरा हाल है। कोई ऐसा घर होगा जिस घर में मुकदमेबाजी न हो। खेतो की डोल पर झगडा, आने जाने के रास्ते पर झगडा,पानी की निकासी और नहर के पानी पर मुकदमा, जरा जरा सी बात को गॉव के लोग अपनी मूंछ का सवाल बना लेते है। और सीधे चले आते है कोर्ट कचहरी। आज किसी भी कोर्ट कचहरी में माननीय वकीलो की संख्या इतनी ज्यादा है कि ये गॉव के लोग ही इन वकीलो की खूब सेवा कर रहे है। दूसरी ओर भला हो उत्तर प्रदेश पुलिस का जो बडी से बडी डकैती को छोटी मोटी चोरी दिखाती है लूट, चोरी, बालात्कार, राहजनी, हत्या जैसी तमाम घटनाओ की रिपोर्ट ही दर्ज नही करती और यदि ऊपर से दबाव पडता है केस किसी रसूख वाले व्यक्ति का होता है तब मजबूरी के तहत पुलिस रिपोर्ट दर्ज करती है। पर यहॅा भी हमारी पुलिस डंडी मार लेती है और बडी घटना को छोटी छोटी धाराओ में दर्ज कर ऊपरी अदालतो तक पहुॅचने ही नही देती है। यदि हमारी पुलिस सही तरीके से केस दर्ज कर आईपीसी की धाराओ के अर्न्तगत सही सही कार्यवाही करे तो देश भर की अदालतो सहित उत्तर प्रदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित मामलो की संख्या कई गुना तक बढ सकती है। जजो की कमी और मुकदमो का अंबार सरकार के लिये कोढ में खाज वाला काम कर सकता है।

हालाकि कानून मंत्री ने खुद माना कि मुक्कदमो की संख्या में कमी आये और रोज रोज अदालतो में बढते इन मुक्कदमो का निबटारा जल्द से जल्द हो इस के प्रयास किये जा रहे है, वही जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया तेज करने के लिये राज्य सरकारो से सुझाव मांगे गये है। साथ ही 935 करोड़ रूपये की लागत से देश के विभिन्न हाईकोर्ट में आईसीटी बुनियादी सुविधाओ का उन्न्यन किया जा रहा है। यदि कानून मंत्री की माने तो 31 मार्च 2012 तक देश की 12000 अदालतो को कंप्यूटरीकृत करने और मार्च 2014 तक 14,249 अदालतो को कंप्यूटरीकृत करने का लक्ष्य रखा गया है। इस सब के बावजूद क्या सरकार ये भी गारंटी दे सकती है कि गरीब को समय पर इंसाफ मिल पायेगा या ये भी सरकार के बस वादे भर है।

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