‘अक्षय’ संकल्प लें बाल विवाह के खिलाफ

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मनोज कुमार
समय बदल रहा है लेकिन हमारी सोच आज भी वही पुरातन है. आधुनिक बनने का भले ही ढोंग करें लेकिन भीतर से हम रूढि़वादी हैं. यदि ऐसा नहीं होता तो भारतीय समाज से बाल विवाह जैसी कुप्रथा कब की खत्म हो चुकी होती लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. अनेक प्रयासों के बाद भी हर वर्ष बड़ी संख्या में बाल विवाह की खबरें हमें डराती हैं. सरकारों के प्रयासों से बाल विवाह में कुछ कमी आयी है लेकिन जरूरी है कि इस बार हम अक्षय तृतीया पर ‘अक्षय संकल्प’ लेेें कि हर स्तर पर बाल विवाह को हत्सोसाहित करेंगे.
भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है. अक्षय का अर्थ होता है जिसका कभी क्षय ना हो और इस दिन किए गए हर कार्य शुभ माने जाते हैं. वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाये जाने के कारण इसे अक्षय तृतीया का संबोधन मिला. अक्षय तृतीया का महत्व कई कारणों से है जिसमें परशुराम का जन्म, वेदव्यास का महाभारत लेखन का आरंभ होने के साथ ही माँ अन्नपूर्णा का जन्मदिन मनाया जाता है. इसी शुभ दिन स्वर्ग से पृथ्वी पर माता गंगा अवतरित हुई थी. माता गंगा को पृथ्वी पर अवतरित कराने के लिए राजा भागीरथ में हजारों वर्ष तक तपस्या की थी. मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया पर गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं.
अक्षय तृतीया के दिन बिना किसी मुर्हूत के विवाह का मंगल कार्य पूरा किया जा सकता है इसलिए इस अवसर पर भारतीय समाज में विवाह को शुभ माना गया है. कुछ रूढि़वादी सोच ने व्यस्क के स्थान पर इस दिन बाल विवाह को शुभ मानकर उन्हें विवाह के पवित्र बंधन में बांध देते हैं. यह अनुचित है. कानून भी इसकी इजाजत नहीं देता है और यह स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह खतरनाक है. विवाह की कानूनी आयु लड़कियों के लिए 18 वर्ष और लडक़ों के लिए 21 वर्ष है, उन लोगों की एक बड़ी संख्या के लिए अप्रासंगिक और महत्वहीन हो जाता है जो सदियों पुरानी परंपराओं और हठधर्मिता के कारण अंधे और भटके हुए हैं, जिन्हें वे अनुष्ठान कहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी बाल विवाह जैसी कुप्रथा पर टिप्पणी की थी. उनका कहना था कि देश में हजारों नाबालिग लड़कियों की शादी कर दी जाती है और उनके स्वास्थ्य, गर्भ धारण करने की क्षमता तथा इसके प्रतिकूल, आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रभावों की परवाह नहीं करते हुए उनसे शारीरिक संबंध बनाए जाते हैं. निश्चित रूप से यह भारत जैसे विकसित देश के लिए एक धब्बा था जिसे केन्द्र और राज्य सरकार के प्रयासों से दूर किया जा सका है.
समय के साथ स्थितियों में परिवर्तन आने लगा है. बाल विवाह पर नियंत्रण पाने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकार ने ना केवल कानून सख्त किया बल्कि बच्चों, खासतौर पर बेटियों के हक में अनेक योजनाएं आरंभ की है. इसका परिणाम यह हुआ है कि समाज में बाल विवाह की कुप्रथा पर ना केवल रोक  लगी है बल्कि समाज का मन भी बदलने लगा है. सामाजिक रूढिय़ों के चलते उनका बचपन में ब्याह कर दिया जाता था. लेकिन पीछे कुछ वर्षों के आंकड़ें इस बात के लिए आश्वस्त कराते हैं कि समाज का मन बदलने लगा है.
तकरीबन डेढ बरस पहले मध्यप्रदेश में लिंगानुपात की जो हालत थी, उसमें सुधार आने लगा है. एक दशक पहले एक हजार की तादात पर 932 का रेसियो था लेकिन गिरते गिरते स्थिति बिगड़ गई थी. हाल ही में जारी आंकड़े इस बात की आश्वस्ति देते हैं कि हालात सुधरे भले ना हो लेकिन सुधार के रास्ते पर है. आज की तारीख में 1000 पर 930 का आंकड़ा बताया गया है. एक तरह से झुलसा देने वाली स्थितियों में कतिपय पानी के ठंडे छींटे पड़ रहे हैं. लगातार प्रयासों का सुपरिणाम है कि उनकी बेटियां मुस्कराती रहें और कामयाबी के आसमां को छुये लेकिन इसके लिए जरूरी होता है समाज का साथ और जो स्थितियां बदल रही है, वह समाज का मन भी बदल रही है.
यह कहना भी फिजूल की बात होगी कि पूर्ववर्ती सराकरों ने बिटिया बचाने पर ध्यान नहीं दिया लेकिन यह कहना भी अनुचित होगा कि सारी कामयाब कोशिशें इसी दौर में हो रही है. इन दोनों के बीच फकत अंतर यह है कि पूर्ववर्ती सरकारों की योजनाओं की जमीन कहीं कच्ची रह गयी थी तो वर्तमान सरकार ने इसे ठोस बना दिया. जिनके लिए योजनायें गढ़ी गई, लाभ उन तक पहुंचता रहा और योजनाओंं का प्रतिफल दिखने लगा. महिला एवं बाल विकास विभाग का गठन बच्चों और महिलाओं के हक के लिए बनाया गया था. इस विभाग की जिम्मेदारी थी कि वह नयी योजनओं का निर्माण करें और महिलाओं को विसंगति से बचा कर उन्हें विकास के रास्ते पर सरपट दौड़ाये. योजनाएं बनी और बजट भी भारी-भरकम मिलता रहा लेकिन नीति और नियत साफ नहीं होने से कारगर परिणाम हासिल नहीं हो पाया. मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता की बागडोर सम्हालने के बाद डॉ. मोहन यादव ने बेटियों की ना केवल चिंता की बल्कि समय-समय पर उनकी खोज-खबर लेते रहे. जब मुखिया सक्रिय और सजग हो जाए तो विभाग का चौंकन्ना होना लाजिमी था. मुख्यमंत्री की निगहबानी में परिणामदायी योजनाओं का निर्माण हुआ और परिणाम के रूप में दस वर्ष में गिरते लिंगानुपात को रोकने में मदद मिली. एक मानस पहले से तैयार था कि बिटिया बोझ होती है और कतिपय सामाजिक रूढिय़ों के चलते उनका बचपन में ब्याह कर दिया जाता था. लेकिन पीछे कुछ वर्षों के आंकड़ें इस बात के लिए आश्वस्त कराते हैं कि समाज का मन बदलने लगा है.
बेटियों को रूढिय़ों से मुक्त कराने की दिशा में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं के साथ ही अनेक योजनाओं का श्रीगणेश किया गया था जिसका प्रतिफल मिला कि बाल विवाह जैसी कुरीतियों पर कुठाराघात होने लगा. प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की प्रेरणा से बीते वर्ष 2024 को ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ का शुभारंभ किया गया था. बाल विवाह मुक्त भारत अभियान देश को बाल विवाह मुक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करेगा. यह अभियान बाल विवाह को खत्म करने और देश भर में युवा लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए सरकार के चल रहे प्रयासों का एक प्रमाण है, जो एक प्रगतिशील और समतापूर्ण समाज सुनिश्चित करता है जहां हर बच्चे की क्षमता को पूरी तरह से साकार किया जा सके। जो विकसित भारत के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए लड़कियों और महिलाओं के बीच शिक्षा, कौशल, उद्यम और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए अनिवार्य है। उल्लेखनीय है कि बाल विवाह मुक्त भारत प्रधानमंत्री के वर्ष 2047 तक ‘विकसित भारत’ के सपने से प्रेरित है। इस सपने को तब तक हासिल करना संभव नहीं है जब तक महिलाओं और लड़कियों को जीवन के सभी क्षेत्रों में पूर्ण, समान और सार्थक भागीदारी न मिले।
सनातन धर्म बहुमुखी है और वह समय के साथ अपनी सोच एवं दृष्टि में परिवर्तन करता है. अक्षय तृतीया पर अक्षय सोच के साथ समाज के सभी वर्ग मिलकर बाल विवाह जैसी कुप्रथा को समाप्त करने के लिए कृतसंकल्पित है. कानून अपना कार्य करेगा लेकिन समाज का हर वर्ग ‘अक्षय संकल्प’ ले ले कि वह इस कुप्रथा के खिलाफ खड़े हो जाएंगे

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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