लोहड़ी का महत्त्व

0
333

डा.ए.डी. खत्री

लोहड़ी पंजाब ,हरयाणा ,दिल्ली और हिमाचल प्रदेश का प्रमुख त्यौहार है .भारत तथा विश्व में जहां भी पंजाबी रहते हैं ,लोहड़ी मनाते हैं . इस त्यौहार का सम्बन्ध फसल से तो है ही ,नव जीवन ,नव युग और नवीन ऊर्जा से भी है .प्रत्येक वर्ष १३ जनवरी को त्यौहार रात्रि में अग्नि जला कर मनाया जाता है . यह अग्नि सर्दी के कम होने और नवीन ऊर्जा के संचारित होने की प्रतीक है . गीत गाने , भांगड़ा करने , के साथ उस समय मुख्य रूप से मूंगफली, रेवड़ी ,मकई के भुजे दाने (पापकोर्न),गजक बांटने की परम्परा है .

इस त्यौहार पर बच्चे सामूहिक या व्यक्तिगत स्तर पर घर- घर जाकर गीत गाते हुए लोहड़ी (पैसे) मांगते थे तथा इकठ्ठा हुए पैसे आपस में बाँट लेते थे.परन्तु अब मुद्रा स्फीति होने और सबके पास बहुत पैसे होने से यह परम्परा समाप्त सी हो गई है .अब सब लोग मिलकर लोहड़ी जलाते हैं तथा उक्त वस्तुएं प्रसाद के रूप में बाँटते हैं. यह समाज का सामूहिक त्यौहार तो है ही ,परन्तु जिनके घर में लड़का हुआ हो या लड़के की शादी हुई हो ,उनके लिए यह विशेष महत्त्व पूर्ण होता है .उसे परिचितों -रिश्तेदारों को अपने घर लोहड़ी मनाने के लिए बुलाना ही नहीं होता ,लोग भी पूरी आशा रखते हैं कि उनके घर लोहड़ी होनी है और हमें बुलाया जायगा.

विवाह होना जीवन में नए अध्याय की शुरुवात है तथा बेटे का जन्म होना समाज में नवीन ऊर्जा का उत्पन्न होना है . किसी भी धर्म,जाति, भाषा या क्षेत्रीय समाज में इन से बढ़कर ख़ुशी शायद ही किसी अन्य अवसर पर आये . अतः यह सामाजिक खुशियों का त्यौहार है , बधाइयों का त्यौहार है , सबका त्यौहार है. पूर्व काल में एक घर में ८-१० क्या और भी अधिक बच्चे होते थे , ५० वर्ष पूर्व भी ४-५ बच्चे होते ही थे , बाद में २-३ और अब तो बड़ी प्लानिंग करके एक बच्चे का युग आ गया है . धन या खाने पीने की समस्या नहीं है , लोगों के पास समय ही नहीं है ,बच्चों के लिए . अतः आज घर में जो महत्त्व लड़के का है , बेटी का महत्त्व भी कहीं कम नहीं है . जिसकी एक या दो बेटियाँ ही हों ,उसे उनके जन्म और विवाह पर भी लड़कों के समान ही ख़ुशी होती है . पहले लड़कियां विवाह के कारण घर से चली जाती थीं आज लड़के नौकरी के लिए दूसरे शहर क्या ,विदेशों में जा ही नहीं रहे वहां बस भी रहें है .अतः आज लड़के – लड़की का भेद समाप्त हो गया है . सबके जन्म और विवाह की खुशिया समान हैं .इस दृष्टि से आज ख़ुशी के त्यौहर के रूप में लोहड़ी का महत्त्व पहले से भी बहुत अधिक हो गया है . समाज में स्त्री के घटते प्रतिशत को देखते हुए , समाज ही नहीं सरकारों को भी इस त्यौहार को धूम-धाम से मनाना चाहिए . सरकारी स्तर पर इसे मनाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन में रेवड़ी- मक्के बांटे जाँय तथा आंगनबाड़ी में जिन महिलाओं के बेटे या बेटी हुई हो ,उन्हें बुलाकर विशेष बधाईयाँ दी जांय . पंचायत स्तर पर संभव है कि लोहड़ी जलाकर अभी इसे प्रारम्भ करने में असुविधा हो तो इसे दिन के समय बिना लोहड़ी जलाए भी एक घंटे के लिए एकत्र होकर मनाया जा सकता है तथा सामाजिक रूचि के कार्यक्रम बालसभाओं में किये जा सकते हैं . इससे स्त्रियों का सम्मान बढ़ेगा , कन्याओं के लिए आदर बढ़ेगा और यह उनकी संख्या वृद्धि में भी सहायक सिद्ध होगा .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress