पश्चिम बंगाल में राजभवन में बरस रही ममता!

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(लिमटी खरे)

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को पार पाना बहुत ही टेड़ी खीर ही साबित होता रहा है। कांग्रेस हो या भाजपा कोई भी ममता बनर्जी को हराने में खुद को असहज ही पाता रहा है। पश्चिम बंगाल में ममता सरकार और राजभवन के बीच अघोषित तौर पर खिचीं तलवारें भी किसी से छिपी नहीं हैं। वर्तमान में ममता बनर्जी और राजभवन के बीच तल्खियां कम होती दिख रहीं हैं, जो भाजपा के आला नेताओं की पेशानी पर पसीने की बूंदे लाती दिख रही है।

ममता बनर्जी के करीबी सूत्रों ने बताया कि दरअसल, ममता बनर्जी के सलाहकारों ने उन्हें यह मशविरा दिया है कि राज्यपाल से दुश्मनी मोल लेने से एक नया फ्रंट ही खुलता है, इसलिए बेहतर होगा कि राजभवन से दोस्ताना रवैया ही रखा जाए। ममता बनर्जी को अपने सलाहकारों की बात जम गई दिख रही है। इसके पहले पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल और वर्तमान उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ और ममता बनर्जी के बीच की तल्खियां मीडिया की सुर्खियां बनती आई हैं।

जगदीप धनकड़ के उपराष्ट्रपति बनने के बाद मणिपुर के राज्यपाल ला गणेशन को पश्चिम बंगाल का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। पिछले दिनों ममता बनर्जी ने ला गणेशन को काली पूजा के लिए अपने अवास पर आमंत्रित कर सभी को चौंका दिया। ममता बनर्जी का आवास कोलकता के मशहूर काली मंदिर के पास कालीघाटी क्षेत्र में है। वे अपने परिवार के साथ वहां निवास करती हैं, उनका आवास अपेक्षाकृत छोटा ही माना जा सकता है।

सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को आगे बताया कि ममता बनर्जी ने काली पूजा के दौरान प्रभारी राज्यपाल ला गणेशन को वह प्रसाद भी परोसा जो पारंपरिक तौर पर वे खुद ही बनाती हैं। बस फिर क्या था, ला गणेशन ममता बनर्जी की सादगी से प्रभावित हुए बिना नहीं रहे। उन्होंने ममता बनर्जी से पूछ ही लिया कि आखिर इतने छोटे से आवास में वे कैसे रहत पाती हैं। ममता बनर्जी ने बहुत ही सादगी से हंसकर इस बात को टाल दिया।

सूत्रों की मानें तो ला गणेशन ने भी ममता बनर्जी की इस उदारता के बदले इसी माह चेन्नई में रहने वाले उनके अग्रज के 80वें जन्म दिवस पर आमंत्रित कर लिया। ममता बनर्जी यह मौका कैसे चूक सकती थीं, उन्होंने भी इसके लिए हामी भर दी।

सियासी बियावान में दिलचस्पी लेने वाले जानकारों का कहना है कि ममता बनर्जी चेन्नई जाकर एक तीर से कई शिकार कर सकती हैं। वे चेन्नई में तमिलनाडू के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन से मुलाकात तय करवा रहीं हैं, ताकि संयुक्त विपक्ष के एजेंडे के तहत वे 2024 में नरेंद्र मोदी को चुनौति देने की रणनीति पर आगे काम कर सकें। जाने अनजाने भाजपा के राज में उनके ही राज्यपाल संयुक्त विपक्ष के लिए रेड कारपेट बिछाते नजर आने लगे हैं .

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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