संदर्भः- असम में घुसपैठ और बदलती जनसांख्यिकी पर प्रधानमंत्री मोदी का बयान-
प्रमोद भार्गव
अनुत्तरित सवालों को नए ढंग से राजनीतिक मुद्दों में बदलना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विलक्षण षैली रही है। इस परिप्रेक्ष्य में जम्मू-कश्मीर को विशेश दर्जा देने वाली धारा-370, 35-ए, तीन तलाक और राम मंदिर जैसे आजादी के बाद से अनुत्तरित चले आ रहे प्रश्नों के समाधान के बाद मोदी ने असम की धरती से घुसपैठ करने और कराने वालों को कड़ा संदेश दिया है। उन्होंने दरांग में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘सीमावर्ती इलाकों में घुसपैठियों की मदद से जनसांख्यिकीय घनत्व बदलने की साजिश चल रही है, जो राश्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है। हमारी सरकार घुसपैठियों को देश के साधन-संसाधन पर कब्जा नहीं करने देगी।‘ घुसपैठियों को मदद देने वालों को सीधी चुनौती देते हुए मोदी ने कहा, ‘घुसपैठियों को हटाने में हम अपना जीवन लगा देंगे। घुसपैठियों को पनाह देने वालों को देश कभी माफ नहीं करेगा। कांग्रेस जब सत्ता में थी, तब इन्हें संरक्षण देती रही, जिससे घुसपैठिए हमेशा भारत में बस जाएं और भारत का राजनीतिक भविश्य तय करें। कांग्रेस के लिए देशहित से बड़ा, अपने वोट-बैंक का हित रहा है। किंतु अब यह नहीं चलेगा।‘
बंगाल, असम और पूर्वोत्तर राज्यों में स्थानीय बनाम विदेशी नागरिकों का मसला एक बड़ी समस्या बन गया है। जो यहां के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन को लंबे समय से झकझोर रहा है। असम के लोगों की शिकायत है कि बांग्लादेश म्यांमार से बड़ी संख्या में घुसपैठ करके आए मुस्लिमों ने उनके न केवल आजीविका के संसाधनों को हथिया लिया है, बल्कि कृषि भूमि पर भी काबिज हो गए हैं। इस कारण राज्य का जनसंख्यात्मक घनत्व बिगड़ रहा है। लिहाजा यहां के मूल निवासी बोडो आदिवासी और घुसपैठियों के बीच जानलेवा हिंसक झड़पें भी होती रहती हैं। नतीजतन अवैध और स्थाई नागरिकों की पहचान के लिए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता पत्रक बनाने की पहल हुई। इस निर्देश के मुताबिक 1971 से पहले असम में रह रहे लोगों को मूल नागरिक माना गया है। इसके बाद के लोगों को अवैध नागरिकों की सूची में दर्ज किया गया है। इस सूची के अनुसार 3.29 करोड़ नागरिकों में से 2.89 करोड़ लोगों के पास नागरिकता के वैध दस्तावेज हैं। शेष रह गए 40 लाख लोग फिलहाल अवैध नागरिकों की श्रेणी में रखे गए हैं। इस तरह के संवेदनशील मामलों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। दरअसल घुसपैठिए अपनी नागरिकता सिद्ध नहीं कर पाते हैं, तो यह उन राजनीतिक दलों को वजूद बचाए रखने की दृष्टि से खतरे की घंटी है, जो मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करते हुए घुसपैठ को बढ़ावा देकर अवैध नागरिकता को वैधता देने के उपाय करते रहे हैं।
असम में अवैध घुसपैठ का मामला नया नहीं है। 1951 से 1971 के बीच राज्य में मतदाताओं की संख्या अचानक 51 प्रतिशत बढ़ गई। 1971 से 1991 के बीच यह संख्या बढ़कर 89 फीसदी हो गई। 1991 से 2011 के बीच मतदाताओं की तादात 53 प्रतिशत बढ़ी। 2001 की जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से यह भी देखने में आया कि असम में हिंदू आबादी तेजी से घटी है और मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी है। 2011 की जनगणना में मुस्लिमों की आबादी और तेजी से बढ़ी। 2001 में जहां यह बढ़ोत्तरी 30.9 प्रतिशत थी, वहीं 2011 में बढ़कर 34.2 प्रतिशत हो गई। जबकि देश के अन्य हिस्सों में मुस्लिमों की आबादी में बढ़ोत्तरी 13.4 प्रतिशत से 14.2 फीसदी तक ही हुई। असम में 35 प्रतिशत से अधिक मुस्लिमों वाली 2001 में विधानसभा सीटें 36 थी, जो 2011 में बढ़कर 39 हो गईं। गौरतलब है कि 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्र होने के बाद से 1991 तक हिंदुओं की जनसंख्या में 41.89 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि इसी दौरान मुस्लिमों की जनसंख्या में 77.42 फीसदी की बेलगाम वृद्धि दर्ज की गई। इसी तरह 1991 से 2001 के बीच असम में हिंदुओं की जनसंख्या 14.95 प्रतिशत बढ़ी, जबकि मुस्लिमों की 29.3 फीसदी बढ़ी। इस घुसपैठ के कारण असम में जनसंख्यात्मक घनत्व गड़बड़ा गया और सांप्रदायिक दंगों का सिलसिला षुरू हो गया। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा बोडो आदिवासियों ने भुगता। इसी के दुष्फल स्वरूप कई बोडो उग्रवादी संगठन अस्तित्व में आ गए।
बांग्लादेशी घुसपैठियों की तादाद बक्सा, चिरांग, धुबरी और कोकराझार जिलों में सबसे ज्यादा है। इन्हीं जिलों में बोडो आदिवासी हजारों साल से रहते चले आ रहे हैं। लिहाजा बोडो और मुस्लिमों के बीच रह-रहकर हिंसक वारदातें होती रही हैं। पिछले 18 साल में ही हिंसा की 15 बड़ी घटनाएं घटी हैं। जिनमें 600 से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। घटनाएं घटने के बावजूद इस हिंसा का संतोशजनक पहलू यह रहा है कि हिंसा के मूल में हिंदू, ईसाई, बोडो आदिवासी और आजादी के पहले से रह रहे पुश्तैनी मुसलमान नहीं हैं। विवाद की जड़ में स्थानीय आदिवासी और घुसपैठी मुसलमान हैं।
इन धुसपैठियों को भारतीय नागरिकता देने के काम में असम राज्य कांग्रेस की राश्ट्र विरोधी भूमिका रही है। घुसपैठियों को अपना वोट बैंक बनाने के लिए कांग्रेसियों ने इन्हें बड़ी संख्या में मतदाता पहचान पत्र एवं राशन कार्ड तक हासिल कराए। नागरिकता दिलाने की इसी पहल के चलते घुसपैठिए कांग्रेस को झोली भर-भर के वोट देते रहे हैं। कांग्रेस की तरूण गोगाई सरकार इसी बूते 15 साल सत्ता में रही। लेकिन लगातार घुसपैठ ने कांग्रेस की हालत पतली कर दी थी। फलस्वरूप भाजपा सत्ता में आ गई। इस अवैध घुसपैठ के दुश्प्रभाव पहले अलगाववाद के रूप में देखने में आ रहे थे, लेकिन बाद में राजनीति में प्रभावी हस्तक्षेप के रूप में बदल गए। इन दुश्प्रभावो को पूर्व में सत्तारूढ़ रहा कांग्रेस का केंद्रीय व प्रांतीय नेतृत्व जानबूझकर वोट बैंक बनाए रखने की दृश्टि से अनदेखा करता रहा है। लिहाजा धुबरी जिले से सटी बांग्लादेश की जो 134 किलोमीटर लंबी सीमा-रेखा है उस पर कोई चौकसी नहीं है। नतीजतन घुसपैठ आसानी से जारी है। असम को बांग्लादेश से अलग ब्रह्मपुत्र नदी करती है। इस नदी का पाट इतना चौड़ा और दलदली है कि इस पर बाड़ लगाना या दीवार बनाना नामुमकिन है। केवल नावों पर सशस्त्र पहरेदारी के जरिए घुसपैठ को रोका जाता है। लेकिन अब नरेंद्र मोदी और असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व सरमा के घुसपैठियों के विरुद्ध कड़े रुख के चलते इनकी वापसी भी षुरू हुई है।
दरअसल 1971 से ही एक सुनियोजित योजना के तहत पूर्वोत्तर भारत, बंगाल, बिहार और दूसरे प्रांतों में घुसपैठ का सिलसिला जारी है। म्यांमार से आए 60,000 घुसपैठिए रोहिंग्या मुस्लिम भी कश्मीर, बेंगलुरु और हैदराबाद में गलत तरीकों से भारतीय नागरिक बनते जा रहे हैं। जबकि कश्मीर से हिंदू, सिख और बौद्धों को धकिया कर पिछले 3 दशक से शरणार्थी बने रहने को विवश कर दिया है। प्रधानमंत्री राजीव गांधी सरकार ने तत्कालीन असम सरकार के साथ मिलकर फैसला लिया था कि 1971 तक जो भी बांग्लादेशी असम में घुसे हैं, उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को भारत की जमीन से निर्वासित किया जाएगा। इस फैसले के तहत ही अब तक सात बार एनआरसी ने नागरिकों की वैध सूची जारी करने की कोशिश की, लेकिन मुस्लिम वोट-बैंक की राजनीति के चलते कांग्रेस, वामपंथी और तृणमूल एनआरसी का विरोध करते रहे हैं।
बांग्लादेश के साथ भारत की कुल 4097 किलोमीटर लंबी सीमा-पट्टी है, जिस पर जरूरत के मुताबिक सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं। इस कारण गरीबी और भुखमरी के मारे बांग्लादेशी असम में घुसे चले आते हैं। क्योंकि यहां इन्हें कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल अपने-अपने वोट बैंक बनाने के लालच में भारतीय नागरिकता का सुगम आधार उपलब्ध करा देते हैं। मतदाता पहचान पत्र जहां इन्हें भारतीय नागरिकता का सम्मान हासिल करा देता है, वहीं राशन कार्ड की उपलब्धता इन्हें बीपीएल के दायरे में होने के कारण मुफ्त अनाज की सुविधा दिला देती हैं। आसानी से बन जाने वाले बहुउद्देश्यीय पहचान वाले आधार कार्ड भी इन घुसपैठियों ने बड़ी मात्रा में हासिल कर लिए हैं। इन सुविधाओं की आसान उपलब्धता के चलते देश में घुसपैठियों की तादाद चार करोड़ से भी ज्यादा बताई जा रही है।
दरअसल बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठीये शरणार्थी बने रहते, तब तक तो ठीक था, अलबत्ता भारतीय गुप्तचर संस्थाओं को जो जानकारियां मिल रही हैं, उनके मुताबिक, पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था इन्हें प्रोत्साहित कर भारत के विरुद्ध उकसा रही है। सऊदी अरब से धन की आमद इन्हें धार्मिक कट्टरपंथ का पाठ पढ़ाकर आत्मघाती जिहादियों की नस्ल बनाने में लगी है। बांग्लादेश इन्हें हथियारों का जखीरा उपलब्ध करा रहा है। जाहिर है, ये जिहादी उपाय भारत के लिए किसी भी दृष्टि से शुभ नहीं हैं। लिहाजा समय आ गया है कि जो आतंकवादी देश की एकता अखंडता और संप्रभुता को सांगठनिक चुनौती के रूप में पेश आ रहे हैं, उन्हें देश से बेदखल किया जाए।
प्रमोद भार्गव