चिटठी की चपेट में चिदंबरम

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प्रमोद भार्गव

बहुमूल्य तरंगों ;2 जी स्पेक्टमद्ध के आवंटन से जुड़ी चिटठी की चपेट में पी चिदंबरम भी आ गए हैं। चिटठी के जरिए होने वाले रहस्योदघाटन से यह कहावत चरितार्थ हुर्इ है कि कभी-कभी हाथी पर बैठे होने के बावजूद कुत्ता काट खाता है। हालांकि सोनिया और मनमोहन समेत लगभग पूरी कांग्रेस चिंदबरम के बचाव में खड़ी हो गर्इ है। क्योंकि स्पेक्टम घोटाले को लेकर कांग्रेस लगातार असितत्व के संकट की ओर बढ़ती जा रही है। ऐसे बुरे वक्त में प्रणव दा की चिटठी ने तो भूचाल ही ला दिया। इधर जनता पार्टी के अध्यक्ष और जाने-माने अधिवक्ता सुब्रामण्यम स्वामी तो इस घोटाले का पर्दाफाश करने के समय से ही चिदंबरम को दोषी ठहरा रहे थे। अदालत भी आशंका जता रही थी। अब इस चिटठी को सबूत के रुप में अदालत में पेश करके उनके मत को मजबूती मिल गर्इ है। यह पत्र 25 मार्च 2011 को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की इजाजत से वित्त मंत्रालय के उप निदेशक ने सर्वोच्च न्यायालय को भेजा था। पत्र में स्पष्ट उल्लेख है कि जब ए. राजा ‘पहले आओ, पहले पाओ की 2001 नीति के नाम पर 2008 में पुरानी दरों पर 2 जी स्पेक्टम का आवंटन कर रहे थे, तब तत्कालीन वित्त मंत्री ;पी. चिदंबरमद्ध चाहते तो इस नीति को बदलकर नीलामी की कार्रवार्इ कर सकते थे। इस सियासी लड़ार्इ को परदे के पीछे प्रणव – चिदंबरम के बीच जारी द्वंद्व के रुप में भी देखा जा रहा है।

कभी-कभी चिटिठयां वह काम कर जाती हैं, जो शूरवीर नहीं कर पाते। सूचना के अधिकार के मार्फत हासिल हुर्इ चिटठी ने कुछ ऐसा ही करिश्मा कर दिखया है। इससे हाहिर होता है यह अधिकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का एक महत्वपूर्ण औजार बनकर स्थापित हो रहा है है। बाकर्इ आज कर्इ गोपनीय व सनसनी खेज खबरें आरटीआर्इ के जरिये ही मिल पा रही है। इसी कानून की बाध्यता के चलते शासन-प्रशासन को पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए विवश होना पड़ रहा है।

कहते हैं गबन तो एक रेखीय होता है किंतु भ्रष्टाचार एक रेखीय नहीं होता। वह वक्रीय और वर्तुलाकार होता है। इसीलिए नियंत्रक एवं महा लेखा परिक्षक की रिपोर्ट ने जब स्पेक्टम आवंटन से जुड़े 1.76 लाख करोड़ के राजस्व घाटे से परदा उठाया तो कांग्रेस के न, न करने के बावजूद जैसे-जैसे सुप्रीम कोर्ट की फटकार और सीबीआर्इ की जांच से सच सामने आता गया वैसे-वैसे दिग्गज नेता और नौकरशाहों को सींखचों के पीछे पहुंचाने का सिलसिलाभी तेज होता गया। पहले संप्रग सरकार के पूर्व दूरसंचार मंत्री ए.राजा फिर सचिव एस. बोहरा, फिर करुणा निधि की बेटी कनिमोझी और कर्इ निजी टेलीकाम कंपनियों के अधिकारी तिहाड़ की रोटियां तोड़ रहे हैं।

सुब्रामण्यम स्वामी द्वारा-द्वारा बार-बार चिदंबरम को घोटाले में आरोपी होने का दबाव डालने के बावजूद सीबीआर्इ ने अपनी जांच पूरी करके उन्हें ‘पाक-दामन होने का प्रमाण-पत्र दे दिया। जाहिर है सीबीआर्इ सरकार के दबाव में काम कर रही थी। वैसे भी सीबीआर्इ गृहमंत्री के अधीन होती है ऐसे में वह कैसे अपने मंत्री के विरुद्ध जांच कर सकती है। इसलिए जनलोकपाल में सीबीआर्इ को लोकपाल के दायरे में लाने की बात कही जा हरी है तो उसमें गलत क्या हैं ? चिटठी के रुपमें सामने आए इस नए दस्तावेज ने सीबीआर्इ पर भी संदेह की उंगलियां उठा दी हैं। स्वामी ने इस चिटठी के साथ अदालत में दो और दस्तावेज भी प्रस्तुत किए हैं। बताते हैं इनमें एं राजा और चिदंबरम के बीच स्पेक्टम लाइसेंस आवंटन के दौरान हुर्इ बातचीत का जस का तस ब्यौरा है। यह ब्यौरा और चिटठी ऐसे ठोस साक्ष्य हैं कि यदि चिदंबरम इनकी आंच के दायरे में आ जाते हैं तो इस स्पेक्टम घोटाले की आग की लपटें प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंचना तय है। लिहाजा कांग्रेस की मजबूरी हो गर्इ है कि चिदंबरम इस आग की आंच से किसी तरह बच जाएं। लेकिन बच पांएगें ऐसा अब नहीं लगता। बलिक इसकी लपटें सोनिया और मनमोहन सिंह को भी झुलसाऐंगीं।

कांग्रेस पर अब अपने बचाव के लिए एक ही रास्ता बचता है कि वह शीर्ष न्यायालय पर न्यायायिक सकि्रयता का हवाला देकर दोषारोपण करे न्यायालय को हतोत्साहित कर लोकतंत्र और न्यायपालिका के लिए यह लक्षण शुभ नहीं है, लेकिन लाचार कांग्रेस के पास अपने बचाव में दूसरा कोर्इ मजबूत विकल्प भी नहीं है। कांग्रेस कह भी चुकी है कि स्वामी द्वारा नए दस्तावेजों के साथ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दर कर चिदंबरम के खिलाफ जांच की जो नर्इ पेशकस की गर्इ है वह कानूनी मापदण्डों के अनुरुप नहीं है। याचिका पर सुनवार्इ लक्ष्मण रेखा लांघना होगा।

इस सिथति से कांग्रेस का दोहरा चेहरा भी सामने आता है। जब ए. राजा और कलिंगर टीवी की अध्यक्ष कनिमोझी के खिलाफ जांच जायज थी तो चिदंबरम के खिलाफ मर्यादा का उल्लंघन कैसे हो सकती है ? ए. राजा तो लगातार कह रहे थे कि तबके वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को वे पल-पल की खबर देकर सहमति लेने के बाद ही स्पेक्टम आवंटन की प्रकि्रया को आगे बढ़ा रहे थे। वरना महज 45 मिनट के मामूली समय के भीतर स्पेक्टम का वितरण मुमकिन नहीं था। जिस जल्दबाजी में बतौर अमानत राशि डाफट समेत अन्य दस्तावेजी औपचारिकताएं पूरी की गर्इं, यह सिथति अचरज में डालने के साथ यह भी दर्शाता है कि संचार मंत्री ए. राजा की साठगांठ जिन कंपनियों से थी, उन्हें तैयार रहने की हिदायत पहले ही दे दी गर्इ थी। तभी आनन-फानन में कागजी खानापूर्ति संभव हुर्इ। और बाला-बाला 1.76 लाख करोड़ राजस्व हानि की पृष्ठभूमि में स्पेक्टम को भारी-भरकम मुनाफा कूटने का आसान जरिया बना लिया गया। इस वितरण से जुड़े अभिलेखों से रुबरु होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने भी इस बाबत संदेह जताते हुए साफ किया था कि ‘जो दिख रहा है, उससे ज्यादा भी कुछ होइस टिप्पणी की आशंका चिदंबरम के घेरे में आने के बाद चरितार्थ होती दिख रही है।

इस रहस्योदघाटन के बाद इस चिटठी को प्रणव मुखर्जी और चिदंबरम के बीच चली आ रही वैमन्स्यता के रुप में भी देखा जा रहा है। हालांकि अदालत में जो चिटठी पेश की गर्इ वह आरटीआर्इ कार्यकर्ता ने हासिल की थी, लेकिन इसके पहले प्रणव मुखर्जी भी पत्र लिखकर चिदंबरम की शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय को कर चुके हैं। इस कारण यह संशय बन रहा है कि दस्तावेज के रुप में यह चिटठी दो ताकतवर सियासी नेताओं की अंदरुनी लड़ार्इ का पर्याय है। इस घटनाक्रम को पार्टी के द्वंद्व के रुप में भी देखा जा रहा है। क्योंकि कुछ समय पहले प्रणव मुखर्जी के कार्यालय की जासूसी कराए जाने का मामला भी सामने आया था। इस जासूसी के पीछे चिदंबरम का हाथ बताया गया था। चूंकि वे गृहमंत्री है इसलिए किसी की भी जासूसी कराना उनके लिए चुटकियों का काम है। इन्ही वजहों से आश्ांका जतार्इ जा रही है कि परदे के पीछे जो सियासी दांवपेंच चल रहे हैं, उन्हें एकाएक थामना मुशिकल है। इस कशमकश से लाभ उठाने की गरज से द्रमुक ने भी हस्तक्षेप बढ़ा दिया है। द्रमुक प्रमुख करुणानिधि की बेटी कनिमोझी इस घोटाले में जेल में हैं। सोनिया गांधी का दखल इस विवाद को कितना थाम पाता है, यह तो वक्त तय करेगा, लेकिन चिदंबरम को मुशिकलों से पार करा पाना कांग्रेस को भी मुशिकल है

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