डा. शिवानी कटारा
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी भारतीय राजनीति और चिंतन के उन युगदृष्टा विचारकों में गिने जाते हैं जिन्होंने समाज और राष्ट्र को केवल आर्थिक नज़रिए से नहीं, बल्कि मानवीय गरिमा, सांस्कृतिक आत्मा और सामाजिक समरसता की दृष्टि से देखा। उनका दर्शन—एकात्म मानववाद—हमें यह सिखाता है कि जीवन को खंडों में बाँटकर नहीं, बल्कि एक समग्र इकाई के रूप में समझना चाहिए। इसी दृष्टि से उन्होंने विकास का सूत्र प्रस्तुत किया—अंत्योदय—अर्थात समाज के अंतिम व्यक्ति का उत्थान। उनका मानना था कि “भारतीय संस्कृति की मूल विशेषता यह है कि वह जीवन को एक समग्र इकाई के रूप में देखती है।” यह समग्र दृष्टि ही नारी उत्थान को अंत्योदय से जोड़ती है, क्योंकि जब हम अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुँचाने की बात करते हैं, तो समाज की सबसे वंचित और उपेक्षित महिला भी उसमें शामिल होती है।
एकात्म मानववाद: वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नारी उत्थान
एकात्म मानववाद का मूल संदेश यह है कि व्यक्ति और समाज दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। पुरुष और नारी को समान अवसर देकर ही हम इस संतुलन को बनाए रख सकते हैं। यदि समाज को संतुलित और उन्नत बनाना है तो नारी को उसके पूर्ण अधिकार और अवसर देना अनिवार्य है। यह विचार न केवल सिद्धांत है, बल्कि आज के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन में एक जीवंत मार्गदर्शक है।
सामाजिक दृष्टि से नारी उत्थान का अर्थ केवल महिलाओं को अवसर देना नहीं, बल्कि पूरे समाज की चेतना को बदलना है। आज भारतीय महिलाएँ शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय नेतृत्व कर रही हैं। बेटियाँ नए कीर्तिमान गढ़ रही हैं और समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला रही हैं। यदि हर परिवार और समुदाय महिला को समान सम्मान और सहयोग दे, तो अंत्योदय की रोशनी अंतिम महिला तक पहुँच सकती है।
आर्थिक दृष्टि से नारी सशक्तिकरण का अर्थ है महिला श्रमशक्ति को बराबरी का अवसर और संसाधन देना। आज महिलाएँ उद्योग, विज्ञान, तकनीक और उद्यमिता में अग्रणी हो रही हैं। ग्रामीण भारत की महिलाएँ स्वरोज़गार और स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से आत्मनिर्भरता का नया अध्याय लिख रही हैं। यह अंत्योदय का सजीव रूप है—जब आर्थिक अवसर अंतिम पंक्ति में खड़ी महिला तक पहुँचते हैं और वह स्वयं सशक्त होकर समाज को दिशा देती है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की दृष्टि हमें यह विश्वास दिलाती है कि आर्थिक विकास तभी सार्थक है जब उसमें महिला की बराबरी की भागीदारी हो।
सांस्कृतिक दृष्टि से भारतीय परंपरा नारी को ‘शक्ति’ और ‘सृजन’ का प्रतीक मानती रही है। यह दृष्टि तभी सार्थक होगी जब नारी को स्वतंत्रता और रचनात्मक नेतृत्व का अवसर मिले। कला, साहित्य और विज्ञान में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी यह दर्शाती है कि हमारी सांस्कृतिक चेतना और अधिक समावेशी हो रही है। एकात्म मानववाद इस बात को पुष्ट करता है कि संस्कृति तभी जीवंत है जब उसमें नारी की रचनात्मकता और आत्मसम्मान को स्थान मिले।
राजनीतिक दृष्टि से नारी की समान भागीदारी लोकतंत्र की गुणवत्ता को और मज़बूत बनाती है। आज महिलाएँ पंचायतों से लेकर संसद तक सक्रिय हैं। महिला आरक्षण जैसे प्रयास इसी दिशा का प्रमाण हैं। लोकतंत्र तब परिपूर्ण होता है जब नारी की दृष्टि, संवेदनशीलता और निर्णय-क्षमता भी नीति-निर्माण का हिस्सा बने। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का स्पष्ट मत था कि राजनीति केवल सत्ता की खोज नहीं, बल्कि सेवा और समरसता का माध्यम है—और इस सेवा में नारी की भूमिका सबसे प्रेरक हो सकती है।
अंत्योदय और नारी सशक्तिकरण का संगम
अंत्योदय का मर्म यह है कि समाज की प्रगति तभी पूर्ण होती है जब वह व्यक्ति या वर्ग, जो राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक या सांस्कृतिक रूप से सबसे अधिक पिछड़ा है, उसे समान अवसर, गरिमा और आत्मनिर्भरता मिले। भारत में महिलाओं का एक बड़ा वर्ग आज भी इस श्रेणी में आता है—ग्रामीण महिलाएँ, अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाएँ, दलित और गरीब महिलाएँ। अतः अंत्योदय की संकल्पना सीधे-सीधे नारी सशक्तिकरण की आधारशिला है।
जब महिला शिक्षा प्राप्त करती है, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच बनाती है और निर्णय लेने की स्वतंत्रता प्राप्त करती है, तो यह केवल उसकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं होती, बल्कि पूरा परिवार और समाज भी सशक्त होता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का अंत्योदय हमें यह सिखाता है कि नीति-निर्माण और योजनाएँ इस दृष्टिकोण से बनें कि सबसे वंचित महिला भी पीछे न छूटे।
आज भारत की बेटियाँ शिक्षा में नई ऊँचाइयाँ छू रही हैं, खेलों और विज्ञान में वैश्विक पहचान बना रही हैं, और राजनीति में सक्रिय हो रही हैं। यह परिवर्तन तभी स्थायी होगा जब अंत्योदय की रोशनी अंतिम महिला तक पहुँचे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के शब्दों में, “जीवन की विविधताओं में भी हमने सदैव एकता की खोज करने का प्रयास किया है।” यही एकता पुरुष और नारी की साझेदारी को समान स्तर पर स्थापित करती है।
सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक—हर परिप्रेक्ष्य से अंत्योदय नारी उत्थान का मार्ग खोलता है। यह सुनिश्चित करता है कि महिला को शिक्षा, स्वास्थ्य और गरिमा मिले, कि वह स्वरोज़गार और वित्तीय सहयोग से आत्मनिर्भर बने, कि उसकी रचनात्मकता और स्वतंत्रता का सम्मान हो, और कि वह निर्णय-निर्माण में बराबरी की भागीदारी निभाए।
इस प्रकार, पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का अंत्योदय और एकात्म मानववाद यह स्पष्ट करते हैं कि नारी उत्थान कोई अलग प्रश्न नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का केंद्र है। जब नारी शिक्षा पाएगी, स्वास्थ्य पाएगी, आर्थिक स्वतंत्रता और राजनीतिक प्रतिनिधित्व पाएगी, तभी समाज की आत्मा संतुलित और सशक्त होगी।