शिक्षा का भगवा करण नहीं राष्ट्रीयकरण‏ ।

syllabus
राजस्थान सरकार द्वारा स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव का पूरे देश में राजनैतिकरण हो रहा है। राज नैतिक पार्टियाँ हैं राजनीति तो करेंगी ही लेकिन क्या राजनीति का स्तर इतना गिर चुका है कि देश से ऊपर स्वार्थ हो गए हैं ? आज सही और गलत कुछ नहीं है सब फायदा और नुकसान है! मुद्दे पर बात करने से पहले मुद्दे को समझ लें तो बेहतर होगा। तो जनाब दास्ताँ कुछ यूँ है कि राजस्थान के आने वाले सत्र में कक्षा 1-8 तक के पाठ्यक्रम में कुछ फेरबदल किया गया है मसलन कुछ विदेशी लेखक जैसे -जान कीट्स , थामस हार्डी, विलियम ब्लैक,टी एस इलियाँट और एडवर्ड लेअर की रचनाओं को हटाकर -“द ब्रेव लेडी ऑफ राजस्थान, चित्तौड़ और संगीता” जैसे भारतीय लेखकों की रचनाओं जैसे स्वामी विवेकानन्द की कविता “द साँग औफ द फ्री “तथा गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की विश्व प्रसिद्ध कविता “वेअर द माइन्ड इज़ विडाउट फीअर ” को शामिल किया गया है। पाठ्यक्रम बदलने का उद्देश्य उस आदेश का पालन करना था जिसमें कहा गया था कि देश और राज्य से जुड़ी गर्व वाली रचनाओं को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
अब कुछ सवाल उन बुद्धिजीवियों से जिन्हें इस पर आपत्ति है –आपको कीट्स और इलियाँट जैसे विदेशी लेखकों के हटाए जाने से कष्ट है आपका तर्क है कि ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में अंग्रेजी लेखकों को पढ़ाना हमारे बच्चों को बेहतर भविष्य के लिए तैयार करना है, तो फिर इतने सालों इन्हें पढ़ने के बावजूद हमारा देश अन्त राष्ट्रीय मंच पर अपनी ठोस मौजूदगी दर्ज कराने में नाकाम क्यों रहा ? क्यों आजादी के 69 सालों बाद भी हमारी गिनती विकसित देशों में न होकर विकासशील देशों में ही है? क्यों आज तक भारत को यू एन सेक्योरिटी काउंसिल में स्थान नहीं मिल पाया जबकि जापान और चीन जैसे देश वहाँ उपस्थित है? आपको विलियम ब्लैक और थोमस हार्डी जैसे विदेशी लेखकों को हटाए जाने का अफसोस है लेकिन सम्पूर्ण विश्व में भारत का मान बढ़ाने वाले स्वामी विवेकानन्द एवं गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर को शामिल किए जाने का गर्व नहीं है? हमारे बच्चे अगर विदेशी रचनाकारों की रचनाओं को पढ़ने के बजाए अपने ही देश के महापुरुषों के बारे में पढ़ें ,उन्हें जानें और याद करें यह तो हर भारतीय के लिए हर्ष का विषय होना चाहिए।
आज आप कह रहे हैं कि शिक्षा का भगवा करण हो रहा है,तो कुछ अनुत्तरित प्रश्न आज भी उत्तरों की अपेक्षा कर रहे हैं जैसे –आज तक इतिहास की पुस्तकों में अकबर, औरंगज़ेब, शहाजहाँ, टीपू सुल्तान आदि का महिमा मंडन किया जा रहा था तो क्यों इन पुस्तकों में हरा रंग आवश्यकता से अधिक नहीं कहा गया? वो अकबर महान कैसे हो सकता था और वो मुग़ल बहादुर कैसे हो सकते थे जिन्होंने हमारे देश पर आक्रमण कर के न सिर्फ लूट पाट की,मन्दिरों को तोड़ा ,महिलाओं का बलात्कार किया,हिन्दू राजाओं की हत्या की ?बल्कि हमारे वो हिन्दू राजा महान क्यों नहीं हुए जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा करने में अपने प्राणों की आहुति दे दी! शिवाजी वीर क्यों नहीं हुए महाराणा प्रताप महान क्यों नहीं हुए? क्यों हमारे बच्चों की इतिहास की पुस्तकों में इन जैसे अनको वीर योद्धाओं पर मात्र दो वाक्य हैं और मुग़लों के लिए दो दो पाठ ? दरअसल इतिहास उसी के द्वारा लिखा जाता है जो जीतता है क्योंकि हारने वाला इतिहास लिखने के लिए जीवित नहीं रहता यही इतिहास का इतिहास है और एक कटु सत्य भी!
आज तक शिवाजी महाराज,पृथ्वी राज चौहान, महाराणा प्रताप, विजय नगर साम्राज्य को पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया गया तो देश से कोई आवाज क्यों नहीं उठी? शायद पूरे विश्व में भारत ही वो एकमात्र राष्ट्र है जिसमें अंग्रेजों द्वारा लिखा गया उनकी सुविधानुसार तोड़ा मरोड़ा गया इतिहास पढ़ाना स्वीकार्य है किन्तु अपने देश के सही इतिहास जैसे ,महाराष्ट्र में शिवाजी और राजस्थान में महाराणा प्रताप को पढ़ाना शिक्षा का भगवाकरण कहलाता है ।यह विकृत मानसिकता के अलावा और क्या हो सकता है कि जिस बदलाव को शिक्षा का राष्ट्रीयकरण कहना चाहिए उसे भगवाकरण कहा जा रहा है। क्या सेक्युलर शब्द की व्याख्या इतनी सीमित है कि अपने ही देश के वीर योद्धाओं की बात करना हिन्दूइज्म या भगवाकरण कहलाता है? कतिपय यह स्वर उसी ओर से आ रहे हैं जहाँ से कुछ समय पहले असहिष्णुता नामक शब्द का उदय हुआ था और अवार्ड वापसी अभियान चलाया गया था। क्या यह बेहतर नहीं होता कि हमारे बच्चे इतिहास में अपने देश के वीर योद्धाओं की वीरता और उनके बलिदानों के बारे में पढ़कर स्वयं भी क्षत्रिय गुणों से युक्त वीर देशभक्त नौजवान बनकर निकलते ! क्या हमारी बच्चियों को रानी लक्ष्मी बाई ,चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी ,रावत चुण्डावत की रूपवती वीर हाडी रानी और ऐसी अनेकों वीर भारतीय नारियों के बारे में बताकर उनके व्यक्तित्व को और अधिक बलशाली नहीं बनाया जा सकता था? क्या हमारी आज की पीढ़ी को अपने पूर्वजों का सही इतिहास जानने का अधिकार नहीं है? हर देश में अपने इतिहास को एक विषय के रूप में पढ़ाए जाने के पीछे एक ही उद्देश्य होता है कि उसके नागरिकों में अपने देश के प्रति गर्व एवं सम्मान की भावनाओं का बीजारोपण हो सकें ।इतिहास किसी भी राष्ट्र के लिए गर्व का विषय होना चाहिए विवाद का नहीं। हम स्वयं अपना सम्मान नहीं करेंगे तो दुनिया हमारा सम्मान कैसे करेगी?
आज कुछ बुद्धिजीवियों को कष्ट है कि इतिहास की पुस्तकों में नेहरू नहीं और गोलवरकर क्यों तो जनाब आज से पहले जब गांधी और नेहरू के अलावा और कोई नहीं था तो तब यह आपके लिए मुद्दा क्यों नहीं हुआ? क्यों आज तक हम अपने बच्चों को अंग्रेजों द्वारा लिखे इतिहास को पढ़ाने के लिए बाध्य थे? इस बात का क्या जवाब है कि भगत सिंह को “इंडियास स्ट्रगल फौर फ्रीडम “नामक पुस्तक में एक क्रांतिकारी आतंकवादी बताया गया है? क्यों हमारे ग्रंथों “रामायण” और “महाभारत” को मायथोलोजी (पौराणिक कथाएँ) कहा जाता है और बाइबल एवं कुरान को सत्य घटनाएँ?
क्या यह बेहतर नहीं होता कि हम स्वयं एक एैसा इतिहास लिखते जिससे उस भारत का निर्माण होता जिसे पढ़ने के लिए दुनिया बाध्य होती।

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