आग बुझती जा रही है बस धुंआ सा रह गया

आग बुझती जा रही है बस धुंआ सा रह गया
राजनीती देख लगता, ये तमाशा रह गया,

 

जात में बंटते दिखे, धर्मों के ठेकेदार सब
आदमी उनकी जिरह में बस ठगा सा रह गया,

 

एक बदली ने गिराई चंद बूंदे आस की,
उस भरोसे की वजह से खेत प्यासा रह गया,

 

हर तरफ इक झूठ ने अपनी जड़ें फैलाई है,
नेकियाँ मिटने लगी हर ओर झाँसा रह गया,

 

छुप गया सूरज कहीं पर भय उसे है शीत का,
शीत तो आई नहीं मौसम कुहासा रह गया, (कुहासा-कोहरा)

 

नोट बदलो या बदल दो तुम सभी कानून भी,
बात में कुछ दम नहीं था सब हवा सा रह गया,

 

जानकर अंजान बनना मेरी’ फ़ितरत में नहीं,
सुन मेरी बातें मुझे वह देखता सा रह गया।

 

–कुलदीप विद्यार्थी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress