अटल जी

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सदा मनस्वी रहे अटल जी, सरल निष्कपट वर्चस्वी ।
दृढ़-संकल्प औ’ कर्मठता से,बने सदा वे परम यशस्वी।।
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आजीवन ब्रह्मचर्य था साधा, देश के हित संलग्न था जीवन।
मन में सेवा-भाव भरे थे, किया समर्पित तन, मन, धन ।।
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हँसकर संघर्षों को झेला, कभी लेखनी रुकी नहीं ।
साहसपूर्वक प्रेरणा भी दी, कविताएँ ऐसी थीं लिखीं ।।
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उच्चतम पद पर रहे थे लेकिन, नहीं अहं था छू पाया ।
विनम्र-भाव से रहे सदा ही, भारत को गौरव दिलवाया।।
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आज हमारे बीच नहीं हैं, वे पार्थिव शरीर से अपने ।
यादों में वे सदा रहेंगे, पूरे होंगे उनके सपने ।।
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– शकुन्तला बहादुर ,

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शकुन्तला बहादुर
भारत में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मी शकुन्तला बहादुर लखनऊ विश्वविद्यालय तथा उसके महिला परास्नातक महाविद्यालय में ३७वर्षों तक संस्कृतप्रवक्ता,विभागाध्यक्षा रहकर प्राचार्या पद से अवकाशप्राप्त । इसी बीच जर्मनी के ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फ़ेलोशिप पर जर्मनी में दो वर्षों तक शोधकार्य एवं वहीं हिन्दी,संस्कृत का शिक्षण भी। यूरोप एवं अमेरिका की साहित्यिक गोष्ठियों में प्रतिभागिता । अभी तक दो काव्य कृतियाँ, तीन गद्य की( ललित निबन्ध, संस्मरण)पुस्तकें प्रकाशित। भारत एवं अमेरिका की विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ एवं लेख प्रकाशित । दोनों देशों की प्रमुख हिन्दी एवं संस्कृत की संस्थाओं से सम्बद्ध । सम्प्रति विगत १८ वर्षों से कैलिफ़ोर्निया में निवास ।

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