अप्प दीपो भवः

बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष

सतेन्द्र सिंह

संसार में समय-समय पर ऐसे महापुरुष भी हुए हैं, जिन्होंने अपने ज्ञान के आलोक से मानव जाति को एक नई राह दिखाई है। भारतीय विरासत की ऐसी ही एक महान विभूति गौतम बुद्ध या महात्मा बुद्ध हैं। महात्मा बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में 563 ईसा पूर्व में वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था। युवावस्था में उन्होंने मानव जीवन के दुखों को देखा। रोगी व्यक्ति, वृद्धावस्था, मृत्यु की सच्चाई और एक प्रसन्नचित्त संन्यासी से प्रभावित होकर बुद्ध 29 वर्ष की अवस्था में सांसारिक जीवन को त्याग कर सत्य की खोज में निकल पड़े। महात्मा बुद्ध ने 528 ईसा पूर्व में वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में एक पीपल वृक्ष के नीचे आत्मबोध प्राप्त किया। वैशाख पूर्णिमा के दिन ही 483 ईसा पूर्व में कुशीनगर नामक स्थान पर महात्मा बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ। उन्होंने आजीवन संपूर्ण मानव सभ्यता को एक नयी राह दिखाई। दुनिया को अपने विचारों से नया मार्ग- मध्यम मार्ग दिखाने वाले महात्मा बुद्ध भारत के एक महान दार्शनिक, समाज सुधारक और बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। भारतीय वैदिक परंपरा में उस समय जो कुरीतियां पैदा हो चुकी थीं, उन्हें सबसे पहले ठोस चुनौती महात्मा बुद्ध ने ही दी थी। बुद्ध ने वैदिक परंपरा के कर्मकांडों पर कड़ी चोट के संग-संग वेदों और उपनिषदों में विद्यमान दार्शनिक सूक्ष्मताओं को किसी-न-किसी मात्रा में अपने दर्शन में स्थान दिया। भारतीय सांस्कृतिक विरासत को रूढ़िवादिता से हटाकर उसमें नवाचार का संचार किया।

बुद्ध का मध्यम मार्ग सिद्धांत आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना बुद्ध के समय था। बुद्ध के दर्शन का सबसे महत्त्वपूर्ण विचार ‘अप्प दीपो भवः’ अर्थात ‘अपने दीपक स्वयं बनो’ है। मसलन, व्यक्ति को अपने जीवन का उद्देश्य या नैतिक-अनैतिक का निर्णय स्वयं करना चाहिए। यह विचार इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह ज्ञान और नैतिकता के क्षेत्र में हर व्यक्ति को उसमें प्रविष्ट होने का अवसर प्रदान करता है। बुद्ध दर्शन के ‘मध्यम मार्ग’ का अभिप्राय सिर्फ इतना है कि किसी भी प्रकार के अतिवादी व्यवहार से बचना चाहिए। बुद्ध परलोकवाद की बजाए इहलोकवाद पर अधिक बल देते रहे। बुद्ध के समय प्रचलित दर्शनों में चार्वाक के अलावा लगभग सभी दर्शन परलोक पर अधिक ध्यान दे रहे थे। उनके विचारों का सार यह था कि इहलोक मिथ्या है और परलोक ही वास्तविक सत्य है। इससे निरर्थक कर्मकांडों और अनुष्ठानों को बढ़ावा मिलता है। बुद्ध ने जानबूझकर अधिकांश पारलौकिक धारणाओं को खारिज किया। महात्मा बुद्ध के विचारों की पुष्टि इस कथन से होती है कि वीणा के तार को उतना नहीं खींचना चाहिए कि वह टूट ही जाए या फिर उतना भी उसे ढीला नहीं छोड़ा जाना चाहिए कि उससे स्वर ध्वनि ही न निकले।

गौतम बुद्ध ने तत्कालीन रुढ़ियों और अन्धविश्वासों का खंडन कर एक सहज मानवधर्म की स्थापना की। उन्होंने कहा, मनुष्य को संयम, सत्य और अहिंसा का पालन करते हुए पवित्र और सरल जीवन व्यतीत करना चाहिए। उन्होंने कर्म, भाव और ज्ञान के साथ ‘सम्यक‘ की साधना को जोड़ने पर बल दिया, क्योंकि कोई भी ‘अति’ शांति नहीं दे सकती। इसी तरह पीड़ाओं और मृत्यु भय से मुक्ति मिल सकती है। भयमुक्ति और शांति को ही उन्होंने निर्वाण कहा है। उन्होंने निर्वाण का जो मार्ग मानव मात्र को सुझाया था, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व था, मानवता की मुक्ति का मार्ग ढूंढने के लिए उन्होंने स्वयं राजसी भोग विलास त्याग दिया और अनेक प्रकार की शारीरिक यातनाएं झेली। महात्मा बुद्ध ने सांसारिक दुःखों का कारण अविधा को माना है। तत्कालीन समाज पर इस दर्शन का व्यापक प्रभाव पड़ा। बौद्ध दर्शन के सिद्धांतों और तत्वों का जनमानस पर व्यापक प्रभाव देखने को मिलता है। बुद्ध के अनुसार जन्म, मृत्यु, संयोग, वियोग आदि सभी दुःखमय हैं। तृष्णा या लालसा सभी दुःखों का कारण है। तृष्णा के निरोध से दुःख की निवृति होती है। बुद्ध ने चार आर्य सत्य बताए हैं- दुःख है, दुःख का कारण है, दुःख का निवारण है और दुःखों से मुक्ति संभव है। दुःख का निरोध करने के लिए गौतम बुद्ध ने आठ आर्य सत्य बताए हैं, जिसे अष्टांगिक मार्ग कहा जाता है। ये अष्टांगिक मार्ग सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाक्, सम्यक् कर्म, सम्यक आजीव, सम्यक् भाव, सम्यक् स्मृति, और सम्यक् समाधि हैं। इस अष्टांगिक मार्ग पर चलकर ही मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है। बुद्ध ने अपने विचारों को अति गूढ़ रहस्यों से दूर रखा है। वे न तो तत्व मीमांसा के विवेचना के भ्रम में पड़ते हैं और न आत्मा-परमात्मा के भ्रम में। वे जीवन के अमरत्व और नश्वरता को नहीं मानते हैं। उनका स्पष्ट मानना था, जिस तर्क के अकाट्य प्रमाण न हों, उनसे दूर ही रहना चाहिए। अप्रत्यक्ष और शंका से युक्त तथ्य और रहस्य सदैव निर्माण के मार्ग में बाधा बनते हैं।

दरअसल दुनिया में आज झगड़े ही झगड़े हैं जैसे- सांप्रदायिकता, आतंकवाद, नक्सलवाद, नस्लवाद, जातिवाद इत्यादि। इन सारे झगड़ों के मूल में बुनियादी दार्शनिक समस्या यही है कि कोई भी व्यक्ति, देश या संस्था अपने दृष्टिकोण से पीछे हटने को तैयार नहीं है। महात्मा बुद्ध के मध्यम मार्ग सिद्धांत को स्वीकार करते ही हमारा नैतिक दृष्टिकोण बेहतर हो जाता है। हम यह मानने लगते हैं कि कोई भी चीज का अति होना घातक होता है। यह विचार हमें विभिन्न दृष्टिकोणों के मेल-मिलाप और आम सहमति प्राप्त करने की ओर ले जाता है। महात्मा बुद्ध का यह विचार की दुःखों का मूल कारण इच्छाएँ हैं, आज के उपभोक्तावादी समाज के लिए प्रासंगिक प्रतीत होता है। दरअसल प्रत्येक इच्छाओं की संतुष्टि के लिए प्राकृतिक या सामाजिक संसधानों की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में अगर सभी व्यक्तियों के भीतर इच्छाओं की प्रबलता बढ़ जाए तो प्राकृतिक संसाधन नष्ट होने लगेंगे, साथ ही सामजिक संबंधों में तनाव उत्पन्न हो जाएगा। ऐसे में अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करना समाज और नैतिकता के लिये अनिवार्य हो जाता है। मध्यकाल में कबीरदास जैसे क्रांतिकारी विचारक पर महात्मा बुद्ध के विचारों का गहरा प्रभाव दिखता है। डॉ. भीमराव आंबेडकर ने भी वर्ष 1956 में अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले बौद्ध धर्म अपना लिया था और तर्कों के आधार पर स्पष्ट किया था कि क्यों उन्हें महात्मा बुद्ध शेष धर्म-प्रवर्तकों की तुलना में ज्यादा लोकतांत्रिक नज़र आते हैं। आधुनिक काल में महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन जैसे वामपंथी साहित्यकार ने भी बुद्ध से प्रभावित होकर जीवन का लंबा समय बुद्ध को पढ़ने में व्यतीत किया।

महात्मा गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों में कहा है कि मनुष्य को बीते कल के बारे में नहीं सोचना चाहिए। न ही भविष्य की चिंता करनी चाहिए, बल्कि मनुष्य को अपने आज यानि की वर्तमान को सुनहरा बनाने के लिए अपना बेस्ट देना चाहिए, तभी वे अपने जीवन में सुखी रह सकते हैं। महात्मा बुद्ध के मुताबिक क्रोध मनुष्य का सबसे बड़़ा शत्रु होता है, क्योंकि जिस इंसान को अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं होता, वह कई बार ऐसे फैसले ले लेता है, जिसका सबसे ज्यादा नुकसान उसको ही होता है, इसलिए मनुष्य को अपने क्रोध पर काबू करना चाहिए। शक और संदेह के चलते न जाने कितने रिश्ते टूट जाते हैं और परिवार बिखर जाते हैं। इसलिए महात्मा बुद्ध ने कहा है कि संदेह और शक की आदत सबसे ज्यादा खतरनाक और भयानक होती है, इससे बुरा कुछ और नहीं होता, क्योंकि अगर किसी के मन में शक पैदा हो जाए तो चाहकर भी इसे दूर नहीं किया जा सकता है और इसका सीधा असर रिश्तों पर पड़ता है, इसलिए मनुष्य को शक या संदेह नहीं करना चाहिए। महात्मा बुद्ध ने बताया कि मनुष्य चाहे हजारों लड़ाइयां ही क्यों न लड़ लें, लेकिन जब तक वह खुद पर जीत हासिल नहीं करता, तब तक उसकी सारी जीत बेकार हैं। इसलिए खुद पर विजय प्राप्त करना ही मनुष्य की असली जीत है। गौतम बुद्ध ने कहा कि सूर्य, चन्द्र और सच कभी नहीं छिप सकते हैं। मनुष्य को अपने मंजिल की प्राप्ति हो या न हो, लेकिन मंजिल के दौरान की जाने वाली यात्रा अच्छी होना चाहिए। बुराई को कभी बुराई से खत्म नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसे सिर्फ प्रेम से ही जीता जा सकता है। महात्मा बुद्ध के मुताबिक जिस तरह एक जलता हुआ दीपक हजारों दीपक जलाकर प्रकाश फैला सकता है, और उसकी रोशनी कम नहीं होती, उसी तरह खुशियां भी सबसे साथ बांटने से बढ़ती हैं।

(लेखक जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन में पीजी एवम् मास्टर इन एजुकेशन में अध्ययनरत हैं।)

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