क्योंकि बेटी कभी भी बालिग व वृद्धा नही होती

—विनय कुमार विनायक
बेटी जीवन का सबसे बड़ा उपहार है
मानो या ना मानो बेटी सिर्फ प्यार है!

प्रेम का अगर कोई रुप होता होगा
तो वो बिल्कुल बेटी जैसा ही होगा!

बेटी मां पिता की कोमल भावनाओं से निकली
मानो या ना मानो बेटी ईश्वर के दिल की कली!

बेटी मानव जाति का सुन्दर संसार है
मानो या ना मानो बेटी जिंदगी का आधार है!

बेटी मां पिता की कठिन साधना का फल है
अगर एक भी बेटी ना हो तो जीवन असफल है!

बेटी के मन में नही बहुत कुछ कहना
बेटी चाहती है मां पिता के साथ रहना!

हर मां पिता की सोच है कि बेटी समझदार होती
बेटी बहुत कुछ बिना समझाए ही समझ गई होती!
बेटी को समझ है किससे कितनी बातें करनी है
बेटी जानती है किससे कितनी दूरी बनाए रखनी है!

हां बेटी जानती है संतोष करना व मन मसोस लेना
हां बेटी जानती है रूठना और अपने आप को मनाना!

बेटी अक्षराभ्यास के पूर्व से अक्षर पहचानती है
मां की कोख में आने के पूर्व से डर को जानती है!

बेटी चाहती है बेटा की तरह जीवन जीना
बेटी ख्वाब देखती है बेटा की तरह बनना!

बेटी हमेशा दिमाग से नहीं, दिल से काम लेती
बेटी खुद से बातें करती खुद निर्णय लेना चाहती!

मगर बेटी को मालूम नही दोस्त दुश्मन में फर्क
इसलिए बेटी अक्सर चुन लिया करती है एक नर्क!

वैसे तो बेटी को बेटे की तरह जीने का होता हक
मगर बेटी की चयन पर हमेशा से है पिता को शक!

बेटी जाति नही जानती, धर्म को नही पहचानती
बेटी ब्युटी और बिष्ट में अंतर करना नही जानती!

जाति का मतलब जन्म गोत्र गंगोत्री की शुद्धता
धर्म का मतलब जीवन को धारण करने की क्षमता!

ये दोनों चीजें बहुत जरुरी है मानव जीवन में
इन दो चीजों की परख के लिए जरूरी है
हर बेटी को अपने माता पिता पर निर्भरता!

क्योंकि बेटी हमेशा से हिफाजत करने योग्य होती
क्योंकि बेटी को चाहिए पिता, फिर पति, फिर पुत्र
क्योंकि बेटी आजीवन होती देव मुर्गियों जैसी युवा
क्योंकि बेटी कभी भी बालिग व वृद्धा नही होती!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here