जन्मदिन 9 जुलाई पर विशेष : ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो ……

 गुरूदत्त का नाम जुबा पर आते ही नजर के सामने एक भोला भाला बच्चे जैसी प्यारी मुस्कान लिये चेहरा सामने आ जाता है। अपनी फिल्मो और फिल्मी किरदारो में जिन्दगी डालने वाले दुनिया के महान गिने चुने अभिनेता, निर्माता, निर्देशको में शुमार आखिर गुरूदत्त को कौन नही जानता, भला कौन भूला सकता है इस कलात्मक फिल्मो के जनक फिल्मी दिवाने को। 1950 और 1960 के दशको के सब से प्रसिद्व कलाकारो में एक गुरूदत्त का जन्म बैंगलोर में 9 जुलाई 1925 को हुआ था। इन्होने अपनी प्रारंभिक पाई कलकत्ता में प्राप्त की और फिर उदय शंकर के अल्मोडा स्थित इंडियन कल्चर सेंटर में डॉस की टेर्निग ली। पर जिन्दगी जीने के लिये रोटी की जरूरत पडती है डॉस से पेट नही भरता ये ही वजह थी की गुरूदत्त को मजबूरन अल्मोडा से फिर लौट कर कलकत्ता आना पडा। कलकत्ता आकर गुरूदत्त ने टेलीफोन आपरेटर की नौकरी कर ली। पर इस महान कलाकार का मन इस नौकरी में कहा लगने वाला था। क्यो कि कुदरत ने तो गुरूदत्त को फिल्मी जगत में हलचल मचाने के लिये पैदा किया था। टेलीफोन आपरेटर की नौकरी करने के कुछ दिनो बाद सन 1944 में गुरूदत्त पुणे चले आये और प्रभात स्टूडियो से जुड गये। यही से शुरू हुआ फिल्मो में कलात्मकता और जान डालने वाले इस कलाकार का फिल्मी सफर। प्रभात स्टूडियो से जुडने के बाद फिल्म ॔लाखरानी’ में गुरूदत्त ने एक छोटे से किरदार को निभाया।

उदय शंकर के अल्मोडा स्थित इंडियन कल्चर सेंटर में डॉस की ली गई टेर्निग गुरूदत्त के 1946 में फिल्म “हम एक है’’ में काम आई और बतौर कोरियोग्राफर गुरूदत्त ने इस फिल्म में काम किया। डारेक्टर के रूप में इन की पहली फिल्म “बाजी’’ थी जो गुरूदत्त के दोस्त और उस वक्त के मशहूर अभिनेता देव आन्नद के बैनर नवकेतन के तले बनी थी। इस फिल्म में बतौर सिंगर गीता राय को भी पहली बार गीत गाने का गुरूदत्त ने मौका दिया फिल्म बाजी के गीतो में अपनी मादक आवाज का जादू जगाकर जल्द ही गीता राय संगीत जगत पर छा गई। वह उस जमाने की पहली पसन्द बनकर उभरी। बाजी के बाद गुरूदत्त ने फिल्म जाल बनाई जो की एक सफल फिल्म साबित हुई फिल्म जाल की सफलता के बाद गुरूदत्त ने अपना खुद का प्रोडक्शन हाऊस खोल लिया जिस मे बनी पहली फिल्म ” बाज ” थी जिसे गुरूदत्त ने निर्देशित किया और उस में मुख्य भूमिका निभाई। बाज फिल्म के बाद मानो सफलता गुरूदत्त के कदम चूमने लगी। वही गुरूदत्त के साथ साथ ही गीता राय भी सफलता की सीयि चने लगी इन के गाये हुए गाने बहुत पसंद किये जाने लगे गीता राय जल्द ही 1950 के दशक की शीर्ष गायिकाओ शमशाद बेगम और लता मंगेशकर के टक्कर की गायिकाओ में शुमार होने लगी।

इधर गुरूदत्त एक के बाद सफलतम फिल्मे बनाये चले जा रहे थे “प्यासा॔”कागज के फूल’’ और “चौदवी का चॉद’’ जैसी सुपर हिट फिल्मो का निर्देशन करने के साथ ही गुरूदत्त ने इन में जोरदार अभिनय भी किया। गीता राय और गुरूदत्त दोनो शादी के बन्धन में बँध गये। शादी के बाद के शुरूआती सफर में गुरूदत्त और गीता दत्त को काफी परेशानी का सामना करना पडा। प्रेम विवाह होने के कारण दोनो के परिवार इस विवाह के खिलाफ रहे। किन्तु शादी के बाद गीता राय से गीतादत्त बनी गीता ने गुरूदत्त की फिल्मो के लिये बेहतरीन गीत गाये वर्ष 1947 से 1959 तक का सफर गीतादत्त के लिये सब से सुनहरा दौर साबित हुआ। इस दौरान गीतादत्त ने हिन्दी संगीत फिल्म जगत को अनेक लोकप्रिय गीत दिये जिन में “बाबू जी धीरे चलना’’ ,”जा जा बेवफा’’,हॅू अभी में जवॉ’’,और “ए लो में हारी पिया’’ जैसे मकबूल नगमे शामिल है।

फिल्म साहिब बीवी और गुलाम को सर्वश्रेष्ट फिल्म के लिये “फिल्म फेयर’’ अवार्ड हासिल हुआ इस फिल्म को “पे्रसीडेन्टस’’ सिल्वर मेडल द्वारा भी सम्मानित किया गया। फिल्म “चौहदवी का चॉद’’ के गाये गीत “चौहदवी का चॉद हो या आफताब हो ’’के लिये गायक मौहम्मद रफी को फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया। गुरूदत्त की फिल्म के एक गाने ” जिन्हे नाज है हिन्द पर वो कहा है को सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू बहुत रोये थे। जानी वाकर को फिल्मो में पहला चॉस देने वाले गुरूदत्त ही थे। फिल्म साहिब बीवी और गुलाम में मदमस्त मीना कुमारी को पेश कर गुरूदत्त ने फिल्म जगत में तूफान मचा दिया इस फिल्म के एक गाने ” ना जाओ सय्या छुडा के बय्या कसम तुम्हारी में रो पडूॅगी ’’ ने आपार सफलता पाई।

फिल्म “प्यासा’’ से शुरू हुई गुरूदत्त वहीदा रहमान की मौहब्बत लोगो ने फिल्म “चौहदवी का चॉद’’ में महसूस की और इस मौहब्बत को मीडिया ने खूब उछाला। वही फिल्म “कागज के फूल’’ में गुरूदत्त वहीदा रहमान की मौहब्बत लोगो ने पर्द पर महसूस कि फिल्मी पंडितो का कहना था कि इस फिल्म की कहानी गुरूदत्त की अपनी जाती जिन्दगी की कहानी थी गीतादत्त की मासूम मौहब्बत गुरूदत्त वहीदा रहमान के प्यार के आडे आ रही थी। गुरूदत्त बहुत ज्यादा टेन्शन में रहने लगे। अन्दर ही अन्दर गुरूदत्त को न जाने क्या चीज थी जो चैन से नही बैठने दे रही थी। शायद वो सही फैसला नही कर पा रहे थे। क्यो कि एक ओर वहीदा रहमान की मौहब्बत थी तो दूसरी ओर गीता दत्त से बेवफाई गुरूदत्त के अन्दर तूफान मचा था।

तबीयत से जरूरत से ज्यादा शर्मिले और हस्सास गुरूदत्त 10 अक्तूबर 1964 की सुबह अपने बिस्तर पर मृत पाये गये। गुरूदत्त विश्व और एशिया सिनेमा के महानतम अभिनेताओ में शुमार किये जाते है। ॔प्यासा’ व ॔कागज के फूल’ फिल्मो को गुरूदत्त की सर्वकालिक श्रेष्ट फिल्मो में गिना जाता है। पिछले वर्ष इन्हे ऐिशया के 25 महानतम अभिनेताओ में रखा गया था। गुरूदत्त की आत्मीय अदाकारी ने सिनेमा संसार को जिस प्रकार समृद्व किया उस की तुलना आज फिल्मी दुनिया के इतिहासकार ऑर्सन वेलेस से करते है। गुरूदत्त द्वारा निर्देशित फिल्मो में बाज (1953) आर पार (1954) मि0 और मिसेज 55 (1955) कागज के फूल (1959) व अभिनीत फिल्मे टूवैल्स ओ क्लाक, लाखरानी, चौहदवी का चॉद, साहब बीवी और गुलाम, सौतेला भाई, बहू रानी, भरोसा, सांभा और सवेरा, सुहाग आदि रही।

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