चन्द्रवंशी आर्य ययाति थे आर्य, द्रविड़,तुर्क,भोज,म्लेच्छ जाति के पिता

—विनय कुमार विनायक
आर्य, द्रविड़, तुर्क, भोज, म्लेच्छ के पिता थे,
आत्रेय चन्द्रपुत्र बुध-इला के प्रपौत्र ययाति!
बुध-इलापुत्र पुरुरवा से आयु, आयु से नहुष,
इन्द्रपदाभिषिक्त नहुष पिता थे ययाति के!

ययाति पति थे दानव गुरु शुक्राचार्य कन्या
देवयानी और दानव वृषपर्वापुत्री शर्मिष्ठा के,
देवयानी ने शिकायत की ब्राह्मण पिता से,
पति ययाति की शर्मिष्ठा में एकनिष्ठा की!

शुक्र अन्य नाम काव्या उसना से जाने जाते,
शुक्राचार्य ही और्व थे, जिनसे बसा अरब देश,
जिनके काव्य नाम से काव्या शिव मंदिर है,
शुक्र दैत्य-दानव के गुरु भृगुवंशी ब्राह्मण थे!

असुर याजक शुक्र ने स्वजमाता ययाति को,
बिना सोचे विचारे वृद्ध होने का श्राप दिया,
इस शाप से प्रभावित हो गई उनकी पुत्री भी,
पति सानिध्य से वंचित हो गई थी देवयानी!

जब शुक्राचार्य को अहसास हुआ इस भूल की,
उन्होंने श्राप में कुछ ढील दे जमाता से कहा,
चाहे तो आप अपने बुढ़ापे को किसी को देके,
ले सकते उनकी जवानी,वो पुत्र भी हो सकते!

ययाति ने बड़े पुत्र यदु से यौवन दान मांगा,
पर यदु ने इंकार किया, पिता ने शाप दिया,
युवराज पद से वंचित कृषक-वणिक कर्म दिया,
देवयानी के दूजे पुत्र तुरु ने भी इंकार किया!

तीसरे द्रहयु व चौथे अनु ने भी इंकार किया,
शर्मिष्ठा पुत्र पुरु ने पिता को सम्मान दिया,
उनका वार्धक्य लेकर उन्हें यौवन दान दिया,
बदले में पिता ने पुरु को राज्याधिकार दिया!

तुरु को तुर्कवंश प्रवर्तक कह तुर्किस्तान दिया,
द्रहयु बनाए गए, द्रविड़ जाति के जन्मदाता,
अनु आनव भोज, म्लेच्छ,यवन के बने पिता,
ऐसे में है आर्य,द्रविड़,तुर्क,यवन एक वंश के!

अस्तु आर्य नहीं कोई बाह्य जाति, विदेशी आक्रांता,
यह अंत:साक्ष्य है, सुन लो वाम पंथी इतिहास वेत्ता,
आर्य है आर्य, तुर्क, द्रविड़ भोज, यवन,आनव और
दानव, असुर जाति के मूल पूर्वज कश्यप के जैसा,
भारत-आर्यावर्त-हिन्दुस्तान से आर्य का रहा वास्ता!

आर्य नहीं कोई जाति,वर्ण,वंश,आर्य एक समाज है,
जैसा कि स्वामी दयानन्द का आर्य समाज आज है,
एक मां-पिता की संतान आर्य होता भी या नहीं भी,
जैसे पंजाब में ज्येष्ठ पुत्र सिख बांकी रहते हिन्दू ही!

आर्य नहीं कोई जाति वंश परिवार,ये एक समाज है,
जैसे अनुज विभीषण आर्य, अग्रज रावण अनार्य थे,
जैसे भांजे कृष्ण-बलराम आर्य मामा कंस अनार्य थे,
आर्य उपाधि श्रेष्ठजन की,सब मनुज आर्य हो सकते!
—विनय कुमार विनायक

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