दुनिया भर में आर्कटिक और अंटार्कटिक की बर्फ़ तेज़ी से पिघल रही है। इस संकट को रोकने के लिए कई “जुगाड़ू आइडिया” सामने आए हैं—कहीं समुद्र के नीचे पर्दे (sea curtains) लगाने की बात हो रही है ताकि गर्म पानी बर्फ़ तक न पहुँचे, कहीं बर्फ़ मोटी करने के लिए समुद्र का पानी पंप करने का ख्याल है, तो कहीं आसमान में कण (aerosols) छोड़कर सूरज की रोशनी को धरती तक कम पहुँचाने की योजना।
लेकिन इन तमाम आइडियाज़ पर किए गए अब तक के सबसे बड़े आकलन ने साफ़ कह दिया है: ये सब काम के नहीं, बल्कि नुकसानदेह साबित हो सकते हैं।
जर्नल Frontiers in Science में प्रकाशित इस अध्ययन में 42 बड़े क्लाइमेट और क्रायोस्फेयर एक्सपर्ट्स ने पाँच तरह के जियोइंजीनियरिंग कॉन्सेप्ट्स का आकलन किया। उन्होंने देखा कि ये तकनीकी तौर पर कितने मुमकिन हैं, इनकी लागत कितनी होगी, पर्यावरण और इंसानों पर क्या असर पड़ेगा, इन्हें कितने बड़े स्तर पर लागू किया जा सकता है, और इनसे जुड़े गवर्नेंस और एथिक्स के सवाल क्या हैं।
नतीजा साफ़ निकला-कोई भी आइडिया कसौटी पर खरा नहीं उतरता। उल्टा, ये प्रकृति को और नुकसान पहुँचा सकते हैं, लोगों पर असर डाल सकते हैं और सबसे बड़ी बात, असली काम यानी ग्रीनहाउस गैसों को कम करने की कोशिश से ध्यान भटका सकते हैं।
स्टडी के लीड लेखक प्रोफेसर मार्टिन सीगर्ट (यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सेटर) कहते हैं:
“ये आइडियाज़ अक्सर अच्छे इरादों से आते हैं, लेकिन इनमें खामियाँ हैं। हम वैज्ञानिक और इंजीनियर क्लाइमेट क्राइसिस के नुक़सान कम करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इन प्रोजेक्ट्स को लागू करना बर्फ़ीले इलाकों और पूरी धरती के खिलाफ़ जाएगा।”
इंटरनेशनल क्रायोस्फेयर क्लाइमेट इनिशिएटिव की डायरेक्टर और सह-लेखिका पैम पियर्सन जोड़ती हैं:
“समर्थक कहते हैं कि रिसर्च तो रिसर्च है, कर लेने में क्या हर्ज़ है। लेकिन हमें पहले से पता है कि इसके साइड इफेक्ट खतरनाक होंगे। असली ज़रूरत है कार्बन उत्सर्जन को तेज़ी से कम करने की—यानी बीमारी की जड़ को पकड़ने की, न कि जियोइंजीनियरिंग जैसे सिर्फ़ ‘पट्टी बाँधने’ वाले उपायों की।”
वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी स्कीमें न सिर्फ़ प्रकृति और इंसान दोनों के लिए रिस्क लेकर आती हैं, बल्कि कीमती समय और फंड भी बर्बाद करती हैं। इस समय सबसे बड़ा काम है ध्रुवीय इलाकों में बुनियादी रिसर्च और मॉनिटरिंग को मज़बूत करना-जैसे वेस्ट अंटार्कटिक आइस शीट (WAIS) पर निगरानी।
कहानी का निचोड़ यही है:
पिघलती बर्फ़ को रोकने के शॉर्टकट नहीं, असली इलाज चाहिए। और वो इलाज सिर्फ़ एक है-तेज़ी से और बड़े पैमाने पर ग्रीनहाउस गैसों को कम करना।