छठ पूजा की आस्था : सियांग से यमुना तक 

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                कई वर्षों बाद मैं भी इस बार छठ पूजा पर दिल्ली में हीं हूँ. दिल्ली के नज़ारे बहुत कुछ बदल गए है. फेसबुक पर ट्रेंड में छठ सबसे ऊपर चल रहा है. दिल्ली के उपराज्यपाल ने छठ पर एक दिवसीय अवकास की औपचारिक घोषणा की है. प्रधानमंत्री नें देशवासियों को छठ पूजा की शुभकामना दी है. दिल्ली के गली-मुहल्लों में छठ की शुभकामना सहित पोस्टर और होर्डिंग लगे हुए हैं. मुझे मेरे कई मित्रों ने छठ की बधाई दी है. इस सबमें काफी कुछ नया है. काफी कुछ बदला है बीते कुछ वर्षों में.
                    पिछले कुछ वर्षों में मैं भारत के विभिन्न स्थानों पर घूमता रहा हूँ. देश के अलग-अलग राज्यों में आस्था के अनेक रूप हैं. पर्व-त्यौहार, विवाह, जन्म-मरण को मनाने के भिन्न-भिन्न तरीके उस स्थान, जनजाति या समाज को अलग पहचान देते हैं. लेकिन जब किसी खास स्थान का कोई त्यौहार वहां से हजारों मील दूर मनाया जाता है, तो उसे एक नई पहचान मिलती है. जी हाँ ! मैं छठ पूजा की बात कर रहा हूँ. गत चार वर्षों में मुझे जिन चार स्थानों पर छठ देखने का मौका मिला, वह आज भी मेरे स्मृति पटल पर अंकित है |
       शायद आपकी कल्पना से परे हो वह स्थान. अक्टूबर के महीने में कड़ाके की ठंढ, कपकपाती हवा.कमर तक पानी में छठ के व्रती उगते हुए सूर्य की प्रतीक्षा कर रहे थे. यह अरुणाचल प्रदेश में बहने वाली सियांग नदी की तस्वीर है. यही नदी असम में ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है. स्थानीय निवासी शुरू में हैरान होते थे, कि इस प्रकार कि कठिन पूजा पद्धति का भला क्या औचित्य है. लेकिन आज छठ पूजा की तैयारी में स्थानीय जनजातीय समाज भी अपना सहयोग करता है. उन्हें अब लगता है कि आस्था में प्रश्न का कोई स्थान नहीं होता. और एक अच्छी बात यह भी है कि छठ पूजा के बहाने बारिश के मौसम के बाद यह पहला मौका होता है जब सामूहिक प्रयास से नदी तट की अच्छी सफाई हो जाती है.भारत में सूर्योदय का यह स्थान इस महान आस्था को संवर्धित करता है. कोई जातीय या सामाजिक विभेद नहीं है. बल्कि अरुणाचल प्रदेश के आदी,गालो और आपातानी जनजाति इस बात से प्रसन्न रहते हैं कि उनके भी आराध्या देव सूर्य ही तो हैं. स्थानीय शब्द डोनी-पोलो सूर्य और चन्द्रमा के लिय ही प्रयुक्त होता है.आस्था का केंद्र एक ही है, उसकी पूजा पद्धति और नाम अलग हो सकते है यह फिर से यहाँ सत्य साबित होता है.
     पूरब का का नद ब्रह्मपुत्र भी छठ के सूर्य अर्घ्य का साक्षी बनता है, माजुली से लेकर गुवाहाटी के पलटन बाजार घाट तक हजारों की संख्या में श्रद्धालु सूर्य षष्ठी को अस्ताचलगामी सूर्य और सप्तमी को उदयमान सूर्य को जल,दूध, गन्ना, नारियल सहित विशेष पकवान ठेकुआ का अर्घ्य देते हैं. छठ के परंपरागत गीत के साथ अब कुछ नयी धुन भी सुनाई देने लगी है. आप हैरान न हों अब छठ का गीत असमिया भाषा में भी गाया गुनगुनाया जाता है.
       असम से बंगाल होते हुए यह आस्था धारा गंगासागर तट तक दिखती हैं. इधर गंगा और उसकी सहायक नदियों का किनारा भी छठ पूजा के प्रसाद और फल-फूल के सुगंध से दिव्य हो उठता हैं. गीत के स्वर सुनाई देते हैं. घोड़वा चढ़ल आवे…” गीत सुनते हुए नज़ारे को देखते हुए मेरे ध्यान में आया कि राजनीति हर घोड़े पर सवार हो जाती है. नेताओं का आस्वासन, आशीर्वाद मांगने का अंदाज और अपनापन दिखाने की कला छठ के मौके पर भी सर्वत्र दिख जाती है. हाँ तो राजनीति से पटना की याद आ गई. यह निर्धारित तो नहीं है लेकिन आस्था के केंद्र की बात की जाय तो बिहार ही छठ पूजा का प्रमुख राज्य है. महीना भर पहले से दीवाली के साथ-साथ छठ की भी तैयारियां शुरू हो जाती है. बांस की नई टोकरी, पीतल या मिट्टी का कलश और चालीस प्रकार के प्रसाद का भोग भगवान दिनकर को अर्पित किया जाता है. छठ के दिनों में देश-विदेश में कमाने गए अपनों के घर आने का इंतजार हर देहरी और हर माँ को होता है. जमाना बदल गया है लेकिन भावना नहीं बदलती, आस्था और विश्वास में कोई बदलाव नहीं होता. शायद यही कारण है कि, अमेरिका में जा बसे लोग भी कोशिश करते हैं कि छठ के खरना का खीर और परना का प्रसाद अपने माँ के हाथों ही मिले.
           एक दशक के भीतर हीं दिल्ली में छठ पूजा के प्रति लोगों में जानकारी बढ़ी है.छठ के बहाने राजनीति करने वाले यह बखूबी समझते हैं कि,दिल्ली की राजनीति में आने वाले समय में यह संख्याबल काफी महत्वपूर्ण होने वाला है. दिल्ली में रहने वाले पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार के लोगों की संख्या लगभग चालीस प्रतिशत बताई जाती है. इनमें से अनेक लोगों नें यहीं घर बना लिया है या स्थाई रूप से रहने लगे हैं. लेकिन हजारों की संख्या में निम्न मध्यम वर्ग के मजदूर, कर्मचारी आज भी पर्व-त्यौहार अपने घरवालों के साथ ही मनाना चाहते हैं. सप्ताह भर पूर्व से प्रतिदिन दर्जनों विशेष ट्रेने होने के बावजूद भी भीड़ में कमी नहीं होती. कई लोग जा भी नहीं पाते हैं. जान है तो जहान है .मैं भी छठ के इस विस्तार होते स्वरूप का प्रत्यक्षदर्शी बन रहा हूँ.दिल्ली में कई पंजाबी और राजस्थानी परिवारों ने भी छठ पूजा प्रारम्भ कर दिया है. लोग बताते हैं कि उनके लिए किसी छठ व्रती ने मन्नत मांगी, जो पूरी हो गई तो इन्होने भी व्रत रखना शुरू कर दिया. अब कसार और ठेकुआ यहाँ भी मिलेगा,पके केले का सुगंध और गन्ना चूसने का आनंद भी.
                      यह आस्था है. इसे जबरन फ़ैलाने की आवश्यकता नहीं होती, आपके व्यव्हार से दूसरों के ह्रदय तक यह स्वतः उतर जाता है. इस प्रार्थना के साथ कि सूर्य हम सबको निरोगी काया और तेज प्रदान करें, मेरा भी दीनानाथ को प्रणाम.

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