पांच साला सरकार चुनें, फ्री स्कीम ठुकराएं 

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मनोज कुमार 

वरिष्ठ पत्रकार 

इस समय देश के कई राज्यों की सरकार अंगद के पैर तरह जम गई हैं। एक लंबे समय तक सत्ता में रहने से निरंकुशता आ जाती है, जो दिख रही है। भ्रष्टाचार की परते लगातार खुलती रही है लेकिन इस समय जिस व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार सामने आ रहा है, वह स्तब्ध कर देने वाला है। यह बीमारी किसी एक राज्य या किसी एक व्यक्ति तक नहीं है बल्कि सब शामिल हैं इसमें। कौन कितना किया या कर पाया, व्यक्ति की नैतिकता पर भी निर्भर करता है। नैतिकता की बात भी बेमानी हो गई है। एक शब्द राजनैतिक हुआ था जो आज राजनीति हो गया है। दोनों को गौर से देखेंगे तो राज के साथ नैतिक शब्द था, वह विलोपित हो गया और इसके स्थान पर नीति चलन में आ गया है। कहावत है युद्ध और प्रेम में सब जायज है और जब राज अर्थात सत्ता की बात करते हैं तब नीति, कुनीति को जायज मान लिया गया है। जब सत्ता सिर चढ़ कर बोलता है, तब स्वाभाविक रूप से सब जायज हो जाता है। बहरहाल, देश में वन इलेक्शन, वन नेशन की तैयारी है, तब इस बात पर भी मंथन किया जाना चाहिए कि संविधान के अनुरूप सरकार  पांच वर्ष के लिए निर्वाचित होती थी। किन्तु मुफ़्त योजनाओं ने सारे पैमाने ध्वस्त करते हुए अंगद के पांव की तरह जमे हुए। ऐसे में भ्रष्टचार की गंगा बह रही है। 

एक दौर था जब मतदाता पाँच साल होते ही सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया करते थे, आज वही मतदाता बीस बीस साल के लिए सरकारों की ताजपोशी कर रही है। मतदाताओ को भी जीवन की बुनियादी सुविधाओं से ज़्यादा मुफ़्त का आनंद चाहिए। सत्ता को यह रास्ता आसान लगा और उसके बाद सत्ता ने मुफ़्त की बंटाई शुरू कर दी। जहां तक याद पड़ता है कि मुफ्त चावल बांटने की शुरुवात दक्षिण से हुई थी। छत्तीसगढ़  के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को चाउर वाले बाबा के नाम से प्रसिद्धि मिली। फिर मध्य प्रदेश में तत्कालीन शिवराज सिंह सरकार ने मुफ़्त की ऐसी मोहक योजनाओं का श्रीगणेश किया कि उनकी विजय सुनिश्चित होती थी। शिवराज सिंह सरकार के इन योजनाओं को अनेक राज्यों ने जस का तस लागू कर दिया। शिवराज सरकार ने जब लाडली बेटी या किसान कल्याण की योजना शुरू तो उसका स्वागत किया गया। यह जरूरी था। बच्चियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था जो उनके लिए शिक्षा के नए द्वार खोलता है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार बेटियों को स्कूल नहीं भेजा करते थे, अब वह बच्चियां अपने पैरों पर खड़ी हो रहीं हैं। उन्हें गणवेश, पाठ्य पुस्तक, साइकिल देकर बेटियों को मुख्यधारा में लाने का सुंदर कार्य किया। इनमें किसान कल्याण योजना भी एक है। शासकीय सेवकों की जिम्मेदारी तय करने के लिए लोक सेवा गारंटी कानून लाया गया। यह कानून पहली बार बना था। अब कौन शासकीय सेवक, कितना जिम्मेदार है, इसके लिए विशद रूप से समीक्षा की जानी चाहिए। इसके बाद शिवराज सरकार ने मुफ़्त की इतनी योजना आरम्भ की कि वह उनकी सत्ता में वापसी की गारंटी हो गई। इसमें मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन और उनके कार्यकाल की अंतिम लोक लुभावन योजना लाडली बहना ने राज्य के बजट का पूरा समीकरण बिगाड़ दिया। अनेक राज्यों को इस योजना सत्ता में वापसी की गारंटी मिल गई। महाराष्ट्र और झारखंड में इसी आधार पर चुनाव जीतने की बात राजनीतिक गलियों में कही सुनी गई। 

अब खबर आ रही है कि वर्तमान डॉ. मोहन यादव सरकार लाडली बहना की समीक्षा कर उन नामों को हटा रही है जो योजना की शर्तें पूरी नहीं करते हैं। मीडिया इसे लेकर बवाल काट रही है और एक सही फैसले की तरह जाती सरकार को रोक रही है। जब सरकार इन खर्चों और प्रदेश की जरूरत के अनुरूप बाजार से ऋण लेती है, तब भी मीडिया हल्ला मचाता है कि प्रदेश का कर्ज़ बढ़ता जा रहा है। ऐसे में सरकार के खिलाफ़ मानसिकता बनती है। मीडिया को राज्य के प्रति जिम्मेदार होना चाहिए और समाज को सकारात्मक मैसेज दिया जाना चाहिए। प्रतिपक्ष भी ऐसे अनेक हवा हवाई ऐलान कर देता है क्योंकि उसे पता है सत्ता में वापस नहीं आ रहे है तो मतदाता के मन में आस तो पैदा कर दो और सत्ता के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दे। मीडिया की तरह प्रतिपक्ष भी सरकार को बाज़ार से कर्ज लेने पर कटघरे में खड़ी करती है। प्रतिपक्ष सरकार से सवाल करे,उसके कार्यों की समीक्षा करे, यह उसका राज्य के प्रति जिम्मेदारी है और प्रतिपक्ष होने के नाते भी। हिमाचल प्रदेश जिस खस्ताहाल आर्थिक स्थिति में है, उसका खुलासा हो चुका है लेकिन राजनीतिक समीक्षकों के संज्ञान में होगा कि और कितने राज्य हिमाचल के रास्ते पर हैं।

दिल्ली की आप सरकार ने तो मुफ़्त की योजनाओं की बाढ़ लगा दी। इसके बाद आप सरकार के जो कथित तौर पर गोलमाल खुला तो तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जेल की यात्रा करनी पड़ी। दिल्ली के दंगल में तो जैसे बंटाई का ऐलान हो रहा, वह हैरान कर देने वाला है। कांग्रेस दिल्ली की सत्ता से दूर है लेकिन उसका भी वायदा प्रति माह साढे आठ हज़ार रुपए देने का है। लोकपाल को लेकर देशव्यापी आंदोलन से उपजी आप पार्टी में सब एक दूसरे के कंधे पर सवार होने लगे। इस आंदोलन ने आप को सत्ता की चाबी सौंप दी। इसमें चतुर केजरीवाल ने धीरे धीरे सबको किनारे कर दिया। उनके विश्वस्त सहयोगी एवं कवि कुमार विश्वास को आप का साथ छोड़ना पड़ा। हालांकि कुमार को उम्मीद थी कि उनकी राज्यसभा की टिकट पक्की लेकिन कुछ नहीं मिला। केजरीवाल 

इतने घुटे हुए राजनेता हैं कि वे कभी कुमार के सवालों या आरोप का कोई जवाब नहीं दिया। इस समय आप पार्टी की फ्री स्कीम उन्हें सत्ता में वापसी करती है या बाहर का रास्ता दिखाती है। दिल्ली के मतदाता फ्री स्कीम को भूल जाते हैं और अपने विवेक से सरकार चुनते हैं तो इस बात की आश्वस्ति है कि अब समय बदलाव वाला आ गया है।

पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु और उड़ीसा में पटनायक सरकार लंबे समय तक सत्ता में रहती हैं तो अपने कार्यों से। उस दौर में तब इस तरह की योजना के बारे में सोचना भी कल्पना से बाहर है। परन्तु आज हालत वो नहीं हैं। आज दलों को सत्ता चाहिए और मतदाताओं को मुफ्त का माल। इस मुफ्तखोरी से ना केवल राज्य की आर्थिक स्थिति छिन्न भिन्न हो रही है बल्कि प्रदेश का नागरिक अब काम नहीं करना चाहते हैं। उन्हें पता है कि जरूरत के लायक सरकार तो दे रही है। इसी के चलते पांच साला सरकार की अवधारणा ध्वस्त हो रही है। इस मुफ्तखोरी में एक बड़ा कारण अशिक्षा के साथ जागरूकता का नहीं होना भी है। अगर समाज नहीं चेता तो कोई हमें हिमाचल बनने से नहीं रोक पाएगा। मुफ्त की जगह रोज़ी रोजगार मांगिए ताकि आने वाली पीढ़ी को आप जवाब दे सकें।

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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