कांग्रेस को विद्रोह नहीं, आत्ममंथन की ज़रूरत

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निर्मल रानी

पिछले दिनों एक लोकसभा तथा तीन विधानसभाओं के हुए उपचुनावों के परिणामों की विभिन्न राजनैतिक दलों व समीक्षकों द्वारा तरह-तरह से समीक्षा की जा रही है। इन चारों ही चुनाव क्षेत्रों में केवल एक विधानसभा की सीट गैऱ कांग्रेस शासित राज्य बिहार से थी जबकि दो विधानसभा सीटें कांग्रेस शासित राज्य महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश से थी। इसी प्रकार हिसार लोकसभा सीट भी कांग्रेस शासित राज्य हरियाणा से थी। इत्तेफाक से कांग्रेस पार्टी को इन चारों ही चुनाव क्षेत्रों में हार का मुंह देखना पड़ा। हिसार लोकसभा सीट पर तो कांगे्रस पार्टी लगभग 5 हज़ार मतों के अंतर से अपनी ज़मानत भी गंवा बैठी। चुनाव परिणाम आने के पश्चात जैसा कि हमेशा होता आया है यहां भी जीतने वाला पक्ष अपनी जीत को अपने अंदाज़ से परिभाषित कर रहा है जबकि हारने वाला पक्ष एक-दूसरे को हार का जि़म्मेदार ठहरा रहा है तथा पराजित पक्ष अर्थात् कांग्रेस पार्टी में आरोप व प्रत्यारोप का दौर देखा जा रहा है।

जहां तक हिसार लोकसभा सीट पर कांगेस पार्टी का हार का प्रश्र है तो इसे कुछ लोग अन्ना हज़ारे द्वारा कांगे्रस के पक्ष में वोट न देने की अपील किए जाने को बता रहे हैं। जबकि विजयी प्रत्याशी, जनहित कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी के संयुक्त उम्मीदवार तथा हिसार लोकसभा सीट से सांसद रहे प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भजन लाल के पुत्र कुलदीप बिशनोई अपनी जीत का श्रेय अन्ना हज़ारे फैक्टर को कतई नहीं देना चाह रहे हैं। कांग्रेस पार्टी का भी कुछ ऐसा ही मत है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोईली का तो यहां तक कहना है कि कांग्रेस पार्टी 130 वर्ष पुराना वह राजनैतिक संगठन है जिसने ब्रिटिश हुकूमत को अपने लिए कोई समस्या नहीं समझी। ऐसे में अन्ना हज़ारे अथवा अन्य किन्हीं चंद लोगों के ग्रूप को कांगेस पार्टी अपने लिए कोई समस्या नहीं समझती।

कांग्रेस पार्टी में स्वनिर्माण की वह क्षमता है जो बड़े से बड़े सुनामी या भूचाल का सामना कर सफलता से बाहर निकल आती है। मोईली का मत है कि यदि अन्ना फ़ै क्टर हिसार में काम करता तथा वहां ईमानदारी की जीत होती तो हिसार से कोई ईमानदार व्यक्ति ही चुनाव जीतता। यह और बात है कि अन्ना हज़ारे द्वारा कांगेस पार्टी के खिलाफ मतदान की अपील किए जाने पर कांगे्रस पार्टी पूरी तरह तिलमिला गई थी तथा अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी गैऱ राजनैतिक आंदोलन का स्वयं उनके अपने ही समूह में इतना प्रबल विरोध हुआ कि अन्ना की कोर क मेटी के सदस्य राजेंद्र सिंह व वी गोपाल ने तो अन्ना के इस फैसले के विरोधस्वरूप कोर ग्रुप से त्यागपत्र ही दे डाला। उधर कुलदीप बिश्राई भी चुनाव जीतने के बाद तो अपनी जीत को अन्ना हज़ारे फैक्टर की सफलता मानने से भले ही इंकार कर रहे हों परंतु चुनाव पूर्व उन्होंने भी अन्ना हज़ारे फैक्टर के चुनाव में काम न करने की बात से इंकार करने का साहस नहीं किया था।

बहरहाल, चौधरी भजनलाल की मृत्यु के पश्चात रिक्त हुई हिसार लोकसभा सीट उन्हीं के राजनैतिक उत्तराधिकारी कुलदीप बिश्रोई द्वारा जीती जा चुकी है। कुलदीप बिश्रोई भी स्वयं इसे हिसार के मतदाताओं द्वारा चौधरी भजनलाल के प्रति दर्शाया गया आदर स्वीकार कर रहे हैं तथा निष्पक्ष राजनैतिक विशेषक भी यही मान रहे हैं कि चौधरी भजनलाल के प्रति जनता की श्रद्धांजलि तथा कुलदीप के प्रति मतदातओं की सहानूभूति ने उन्हें लगभग 6हज़ार मतों से लोकसभा के लिए निर्वाचित कर लिया। परंतु अन्य विपक्षी दल इस चुनाव परिणाम को राष्ट्रीय राजनीति के परिपेक्ष्य में देख व प्रचारित कर रहे हैं। गौरतलब है कि इसके पूर्व भी जब चौधरी भजनलाल हिसार से सांसद निर्वाचित हुए थे उस समय भी यहां से कांग्रेस पार्टी तीसरे स्थान पर रही थी। और इस बार भी कांग्रेस पार्टी को तीसरा स्थान ही प्राप्त हुआ।

लिहाज़ा ऐसा कुछ नहीं है कि गत् डेढ़ वर्ष के अंतराल में कांग्रेस पार्टी के लिए कोई बहुत बड़ा मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा हो। जिस प्रकार का चुनाव परिणाम आया है विशेषकों को ऐसे ही चुनाव परिणाम की उम्मीद भी थी। परंतु विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी के सामने हिसार परिणाम को लेकर एक बवंडर खड़ा कर देश में कांग्रेस विरोधी माहौल बनाने में हिसार परिणाम का सहारा लेना चाह रहे हैं।

विपक्ष द्वारा अपनाए जाने वाले राजनैतिक हथकंडे तो अपनी जगह पर, यहां तो कांग्रेस पार्टी के भीतर ही हिसार परिणाम को लेकर घमासान छिड़ गया है। राजनैतिक गुटबाज़ी के शिकार नेतागण इस चुनाव में हार का जि़म्मा एक-दूसरे के सिर मढऩे लगे हैं। इत्तेफाक से राज्य में जितने भी धड़े हिसार परिणाम को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं वे सभी राज्य के मुख्यमंत्री पद के मज़बूत दावेदार हैं। इनके आपसी मतभेदों व आरोपों व प्रत्यारोपों के स्तर को देखकर सा$फतौर पर यह समझा जा सकता है कि इनकी दिलचस्पी पार्टी के हक में सोचने व काम करने की कम है जबकि अपने राजनैतिक भविष्य को लेकर इनकी चिंताएं कुछ अधिक हैं। वैसे कांग्रेस का इतिहास भी कुछ यही बताता है कि कांग्रेस पार्टी अपने सामने खड़े विरोधियों के हथकंडों या उनकी साजि़शों का शिकार कम होती रही है जबकि भीतरघाती व विभीषण सरीखे नेताओं ने कांग्रेस को कुछ ज्य़ादा ही नुकसान पहुंचाया है।

आज कद्दावर नेताओं का रूप धारण किए हुए यह लोग न जाने क्यों यह भूल जाते हें कि आज उनकी कद्दावरी का कारण उनका व्यक्तिगत् व्यक्तित्व उतना नहीं है जितना कि कांग्रेस पार्टी ने उन्हें प्रचारित व प्रतिष्ठित बनाया है। परंतु यह नेता यह नहीं सोचते कि एक सीट पर हार को लेकर कांग्रेस पार्टी में हो रही इस सिर फुटौवल की स्थिति का लाभ विपक्षी दलों को ही मिलेगा।

आज क्या देश का कोई भी व्यक्ति यहां तक कि कोई भी कांग्रेस कार्यकर्ता इन चंद सच्चाईयों से इंकार कर सकता है कि देश में आज जितनी मंहगाई है उतनी पहले कभी नहीं थी? मंहगाई का ग्रा$फ जिस तेज़ी से गत् दो वर्षों के भीतर बढ़ा है उतनी तेज़ी से मंहगाई क्या पहले कभी बढ़ी थी? खाद्य सामग्री,ईंधन,रसोई गैस, डीज़ल-पैट्रोल, फल-सब्जि़यां, तिलहन-दलहन आदि सभी रोज़मर्रा की ज़रूरत की वस्तुओं के दाम आसमान को छू रहे हैं। उस पर मरे को सौ दुर्रे वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए हमारे देश के मुख्य योजनाकार मोंटेक सिंह आहलूवालिया 32 रुपये प्रतिदिन कमाने वाले व्यक्ति को गरीब व्यक्ति मानने को ही तैयार नहीं हो रहे थे।

ज़ाहिर है मंहगाई की बुरी तरह मार झेल रहा व्यक्ति ऐसे में उनसे यह सवाल ज़रूर करेगा कि श्रीमान जी ज़रा आप ही 32 रुपये रोज़ में अपना गुज़ारा आज के दौर में चलाकर दिखाईए। केवल मंहगाई ही नहीं बल्कि मंहगाई के लिए जि़म्मेदार समझी जाने वाली राजनेताओं की एक बड़ी टोली भी देश के बड़े से बड़े भ्रष्टाचार में शामिल पाई जा रही है तथा उन्हें एक-एक कर जेल की सला$खों के पीछे जाते हुए देश की जनता देख रही है। इन हालात में अन्ना हज़ारे जैसे साधारण सामाजिक कार्यकर्ता के पीछे जनता का संगठित होना भी कोई आश्चर्यचकित करने वाली घटना नहीं समझी जानी चाहिए। और न ही उपचुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार को लेकर इधर-उधर की बातें कर सच्चाई से मुंह फेरने का प्रयास करना चाहिए।

ऐसे ही गुमराह करने वाले राजनैतिक हालात को देखते हुए शायर ने कहा है कि-

तू इधर-उधर की बात न कर,यह बता कि काफ़िला क्यों लुटा।

मुझे रहज़नों से गरज़ नहीं तेरी रहबरी का सवाल है। 

गोया कांग्रेस पार्टी यदि इन चुनाव परिणामों की ज़मीनी सच्चाईयों से आंख मूंदकर व्यक्तिगत् विद्वेषपूर्ण राजनीति में अब भी उलझी रही तथा मतदाताओं के मस्तक पर लिखी वास्तविक इबारत को पढऩे से इंकार किया तो 2014 कांग्रेस के लिए संकट का वर्ष भी साबित हो सकता है। कांग्रेस पार्टी के रणनीतिकारों को भारतीय जनता पार्टी, नरेंद्र मोदी अथवा लाल कृष्ण अडवाणी की जनचेतना यात्रा आदि में कमियां निकालने अथवा इन पर आरोपों की बौछार करने में समय गंवाने के बजाए बड़ी ईमानदारी से सिर्फ और सिर्फ आत्ममंथन करना चाहिए। भ्रष्टाचारियों को चाहे वह किसी भी ऊंचे से ऊंचे स्तर का क्यों न हों उन्हें इसी प्रकार जेल में डाल देना चाहिए, जिस प्रकार राजनीति पर बदनुमा दा$ग समझे जाने वाले दर्जनों लोग इस समय जेल में सड़ रहे हैं।

मंहगाई पर नियंत्रण के लिए एक उच्चस्तरीय कोर ग्रुप का गठन करना चाहिए तथा निचले स्तर पर मंहगाई बेवजह बढ़ाने के जि़म्मेदार लोगों विशेषकर जमाख़ोरों व मुना$फाखोरों के विरुद्ध राष्ट्रीय स्तर पर सख़्त अभियान चलाना चाहिए। कांग्रेस पार्टी को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसने अपने आप को आम आदमी की पार्टी के रूप में प्रचारित करते हुए यह नारा दिया था कि कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ। पार्टी को अपने दिए गए इस नारे पर अमल करते हुए भी नज़र आना चाहिए। उपचुनावों में हार के इन वास्तविक कारणों को यदि पार्टी आलाकमान ने ईमानदारी से समझ लिया तथा इन कैंसर रूपी समस्याओं का निवारण कर लिया तो निश्चित रूप से विपक्षी दल कांग्रेस के सामने कोई विकल्प पेश नहीं कर सकेंगे। लिहाज़ा बकौल शायर-

सवाल यह नहीं शीशा बचा कि टूट गया।

यह देखना है कि पत्थर कहां से आया है।

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  1. आत्म निरिक्षण कांग्रेस की परिपाटी नहीं है. लेकिन षड्यंत्रों के जरिये विरोधियों को लांछित करके अपना ग्राफ बढ़ाने का कम करने का प्रयास अवश्य हो रहा है. अब बाजी हाथ से जाती देखकर हताशा में मीरा कुमार को अथवा सुशिल कुमार शिंदे को प्रधान मंत्री बनाने का शिगूफा छोड़ा जा रहा है. लेकिन मीरा कुमार या शिन्देजी को पी एम् बनाये जाने का जोखिम कांग्रेस नहीं लेगी क्योंकि ऐसा होने पर उन्हें हटाना आसान नहीं होगा और ऐसा होने पर युवराज की ताजपोशी नहीं हो पायेगी. कांग्रेस ने देश के लोकतंत्र को हर कदम पर कुचला है. धरा ३५६ का दुरूपयोग, राज्यपाल पद का अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल, समाचार पत्रों की आज़ादी पर प्रहार, मौलिक अधिकारों का हनन,सर्वोच्च न्यायलय के अनेकों फेसलों की अनदेखी, अब एस एम् एस पर १०० की सीमा तथा देश को तोड़ने वाले काले कानून “सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारक बिल,२०११ को जबरदस्ती थोपने का प्रयास ऐसे उदहारण हैं जिनका जवाब कांग्रेसियों द्वारा नहीं दिया जा सकता. जनता को जागरूक रहना होगा.

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