भोगवाद का चक्रवात और मुक्ति – डॉ. रामजी सिंह

सत्ता, संपत्ति एवं ज्ञान के भोग के त्रिदोष हैं। जो आधुनिक सभ्यता के भी प्रतीक हैं। इसी के कारण असीम हिंसा, अखंड सत्ता और अनंत भोग के लिए ज्ञान और विज्ञान प्रकृति का अनुचित दोहन और फलस्वरूप भयानक प्रदूषण अपने चरम सीमा पर पहुंच चुका है। औद्योगिक सभ्यता के श्रीगणेश भोगवाद का यह चक्रवात 20वीं सदी में सत्ता-संघर्ष के लिए दो विश्वयुद्ध आयोजित किए और परमाणु बम के द्वारा नरसंहार की शताब्दी थी और 21वीं सदी तो आतंकवाद तथा मानव-बम की शताब्दी है। लेकिन इससे भी खतरनाक बात तो यह है कि इस शताब्दी में प्रकृति आतंकवाद का चक्रवात चलने लगा है। पृथ्वी गर्म हो रही है तो सागर का जल गरम होकर उबल रहा है। उधर आसमान से जहरीली वर्षा हो रही है तो आसमान के ओजोन छतरी में छेद से महाकाल झांक रहा है। हिमालय के हिमखंड पिघल रहे हैं। नदियां सूख रही हैं। मौसम में भयावाह परिवर्तन दिख रहा है। चाहे सत्ता का भोग है या संपत्ति का, चाहे काम का भोग हो या ज्ञान की तृष्णा हो, ये सब अवशेष और अनंत है। न तृणा, न जीर्णा व्यमेव जीर्णा। भोग का यह चक्र-व्यूह मानव-सृष्टी के लिए घातक है।

अतः यदि हमें जीवित रहना है तो चक्रव्यूह से निकलने की कला सीखनी होगी। प्रथम तो सत्ता, संपत्ति और भोग के ज्ञान विज्ञान पर संयम की साधना सीखनी होगी। क्या कारण था जब याज्ञयवल्क्य ने सन्यास पर जाने के पूर्व अपनी पत्नी मैत्रेयी को संपत्ति का उसका पूरा भाग देना चाहा तो वह एक छोटा-सा प्रश्न पूछ बैठी – ‘क्या इससे मुझे शांति और सच्चा सुख मिल पायेगा?’ फिर जब याज्ञ्वल्क्य ने उसका निषेधात्मक उत्तर दिया तो विनय भाव से मैत्रेयी कह उठी-ये नाहं नामृता स्यां किमहं तेन कुर्याम? जो लेकर मुझे शांति और सुख नहीं मिलेगा, वह लेकर मैंक्या करूंॅगी? क्या कारण था कि भगवान बुद्ध कपिलवस्तु का संपूर्ण राज्य, यशोधरा जैसी रूपवती, गुणवती और कलावती पत्नी और राहुल जैसा पुत्र छोड़कर संसाार-भोग का परित्याग किया और अंत में संबोधि प्राप्त की? आवश्यकताएँ असीम हैं। सभ्यता का मापदंड यदि आवश्यकताओं की वृध्दि में माना जायेगा तो उसका अंत अस्वस्थ प्रतिद्वंदिता, वर्चस्व और हिंसा में हो तो होगा ही, प्रकृ ति के साथ बलात्कार होकर सृष्टि का विनाश हो जायेगा। अतः आवश्यकताओं को संयमित करना मानव-सभ्यता के अभिरक्षणा के लिए आवश्यक है। यही कारण था कि पिछले हजारों वर्षों का इतिहास संयम और सादगी, अपरिग्रह एवं अनुशासन का था। जो सभ्यताएं असंयमपूर्ण और अनीतिपूर्ण थीं। उनका नामोनिशान मिट गया। रोम एवं बेबिलोन के विश्वविजयी जुलियस सीजर एवं यूनान के सिकंदर महान इतिहास की कब्र में विलीन हो गए लेकिन सुकरात मूसा, ईसा, मंसूर, मोहम्मद, महावीर, ईसा, बुद्ध एवं गांधी आज भी पूजनीय हैं। हिंसा का गर्व तो परमाणु बम ने नष्ट कर दिया। यहीं कारण है कि अमेरिका के पास लगभग 30 हजार अणुबम रहते हुए भी हिरोशिमा के बाद उसे प्रयोग करने का कहीं साहस नहीं हुआ। वियतमान युद्ध में उसके 55 हजार सैनिक मारे गये लेकिन अणु बम सुरक्षित कोषागार में पड़े रहे। युद्ध से यदि हम विमुख नहीं हुए तो मानव-अस्तित्व से ही विमुख होना पड़ेगा। आज विश्व की मात्र 6 प्रतिशत आबादी वाला अमेरिका यदि विश्व का 49 प्रतिशत साधनों के उपभोग पर संयम नहीं करेगा तो जहरीले गैस के उत्सर्जन से सारी विश्व मानवता मिट जायेगी जिसमें अमेरिका का क्रम प्रथम होगा। अणु बम का विकल्प अहिंसा और अतुलनीय सत्ता और संपत्ति की असीम चाह का विकल्प अपनी आवश्यकताओं पर ही संयम है। यह भले युग के प्रतिक ूल दिखेगा लेकिन दूसरा कोई विकल्प नहीं है। ‘न अन्य पन्थाः’।

-लेखक, वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी, पूर्व सांसद तथा पूर्व कुलपति हैं।

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