पूर्वी भारत को तोड़ने की साजिश में लगे बंग्लादेशी घुसपैठिये : मयंक चतुर्वेदी

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terrorist_183जब से भारत-पाक विभाजन हुआ है तभी से भारत में चोरी छिपे घुसपैठ करने की एक बड़ी और विकराल समस्या बनी हुई है किन्तु पाकिस्तान से बंग्लादेश एक स्वतंत्र देश बन जाने के बाद से पाक से ज्यादा बंग्लादेशियों की भारतीय सीमा में अवैध घुसपैठ सीमा से पार हो गई है। इन गंभीर हालातों को देखकर भी केंद्र सरकार कोई कार्यवाही न करे तो उसकी नीयत पर शक होता है। ऐसे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह क्या शक्तिशाली भारत का निर्माण कर पायेंगे ? कांग्रेसनीत संप्रग सरकार को लगता है कि यदि वह बंग्लादेशियों के खिलाफ कोई सख्त कदम उठाती है तो भारतीय मुसलमान उसके इस निर्णय से नाराज हो सकते हैं, क्योंकि लगभग 99.9 प्रतिशत बंग्लादेशी घुसपैठिए मुसलमान हैं। अत: इन्हें छेड़ने से उसके परंपरागत वोट बैंक पर भी असर पड़ सकता है, लेकिन क्या केंद्र सरकार को यह भी नहीं दिख रहा कि यदि वह इस काल्पनिक भय के कारण पूर्वांचल भारत में बंग्लादेशियों के प्रभाव को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाएगी, तो वह दिन दूर नहीं जब पूर्वांचल का एक बहुत बड़ा हिस्सा जो अभी बंग्लादेश की एक कॉलोनी के रूप में तब्दील हो गया है, या तो भारत से अलग होने की मांग करेगा या जनसंख्या के आधार पर बंग्लादेश में मिलने का प्रयास करेगा। वस्तुत: पूर्वी भारत की जो वर्तमान में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक स्थितियाँ है, वह इसी प्रकार का संकेत दे रही हैं।

 

पूर्वी भारत के प्राय: सभी राज्य असम, मेघालय, त्रिपुरा, नागालैण्ड, मणिपुर, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश हो या देश के अन्य राज्य खासकर बिहार, पश्चिम बंगाल उत्तरप्रदेश महाराष्ट्र, झारखण्ड, दिल्ली और गुजरात आज यहाँ बंग्लादेशी घुसपैठियों के कई मौहल्ले बस गये हैं। अधिकांश लोगों ने विधिवत भारतीय तंत्र का लाभ लेते हुए स्थानीय नेताओं की मदद से अपने वोटर कार्ड और राशन कार्ड तक बनवा लिए हैं। ऐसी अनेक घटनाएँ भी अब तक प्रकाश में आ चुकी हैं कि भारत में आतंकवादी मादक पदार्थों की तस्करी और अन्य अपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने में न केवल पाकिस्तानी बल्कि इन बंग्लादेशी घुसपैठियों का बहुत बड़ा योगदान है। कई लोगों ने भारतीय सरकारी तंत्र में सुनियोजित तरीके से घुसने की कोशिश भी की है। एक अनुमान के मुताबिक आज संपूर्ण भारत में 4 लाख से ज्यादा बंग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए हैं जो राशन, चिकित्सा से लेकर हर भारतीय नागरिक को प्रदत्त सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं। प्रतिदिन 100 से एक हजार रुपए तक कमाने वाले बंग्लादेशी घुसपैठिए हवाला के जरिए करोड़ों भारतीय मुद्रा बंग्लादेश भेजते हैं। इसके अलावा जो अंडरवर्ल्ड, फिरौती और हफ्ता वसूली में संलिप्त हैं उनकी आय का तो पता लगाना भी मुश्किल है।

बंग्लादेशी मुसलमान अब जिस षडयंत्र में लगे हुए हैं वह है पूर्वांचल हिस्से को किसी न किसी तरह भारत से अलग किया जा सके ताकि प्राकृतिक रूप से संपन्न इस क्षेत्र का शोषण करने का अवसर उन्हें मिल जाए और धर्म के आधार पर भारत को फिर एक बार विभाजित किया जाए, इसलिए बांग्लादेशी योजनाबध्दा पूर्वांचल के सक्रिय अलगाववादी संगठनों में भी घुस गए हैं।

भारतीय गुप्तचर संस्थाएँ भी मानती हैं कि पूर्वी भारत के उग्रवादी संगठनों में बंग्लादेशी मुसलमानों की बड़े स्तर पर भर्ती की जा रही है। भारत को कमजोर करने तथा उसे तोड़ने के लिए मिल रही विदेशी मदद से चलने वाले अलगाववादी व मुस्लिम संगठन चाहते हैं कि पूर्वांचल में भी जम्मू-कश्मीर जैसे हालत पैदा हो जाये। गत माह दिल्ली में हुई मुख्यमंत्रियों की बैठक में असम तथा नागालैण्ड के मुख्यमंत्रियों ने प्रभावपूर्ण तरीके से इस मुद्दे को उठाया भी था। असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई ने यहाँ तक माँग कर डाली थी कि विदेशी नागरिकों की पहचान के लिए बने न्यायाधिकरणों में कर्मचारियों की अत्यधिक कमी है, जिसके कारण घुसपैठियों पर नकेल कसना संभव नहीं हो रहा। जबकि पूर्वांचल के आम भारतीय नागरिकों का मानना है कि कुछ हद तक समस्याएँ इन टिन्ब्युनलों की कार्यप्रणाली के कारण भी बढ रहीं है।

इन बंग्लादेशी मुसलमानों का यहाँ प्रभाव इतना बढ गया है कि स्वयं गृह मंत्रालय भी यह जानता है कि असम में सक्रिय 38 उग्रवादी संगठनों में लगभग 17 गुटों पर बंग्लादेशी मुसलमानों का कब्जा है। केवल दिखावे के लिए मुखोटे अलग-अलग हैं। आज पूर्वांचल क्षेत्र में इस्लामिक युनाईटेड रिफॉर्मेशन प्रोटेस्ट ऑफ इंडिया, मुस्लिम युनाईटेड लिबरेशन टाइगर्स ऑॅफ असम, मुस्लिम लिबरेशन आमीर, युनाईटेड मुस्लिम लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम, हरकत-उल-मुजाहिद्दीन, रिवोल्यूशनरी मुस्लिम कमांडोज, इस्लामिक बॉलन्टियर फोर्स, मुस्लिम सिक्युरिटी काउंसिल फ्रंट ऑफ असम, हरकत-उल-जिहाद, उल्फा, युनाईटेड लिबरेशन मिलिशिया ऑफ असम, इस्लामिक सेवक संघ, मुस्लिम टाइगर फोर्स, मुस्लिम सिक्युरिटी फोर्स, आदम सेना, एनएससीएन ऐसे उग्रवादी संगठन हैं जो या तो बंग्लादेशी मुसलमानों द्वारा खड़े किये गये हैं, या अधिकांश संगठनों में बंग्लादेशी मुसलमानों की भरमार है। इन संगठनों का जाल तंत्र इतना मजबूत है कि सरकार के पहले कोई सूचना इन तक पहुंच जाती है । राज्य सरकारें चाह कर भी इन संगठनों का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहीं। यह संगठन जिनसे चाहे उससे वसूली करते हैं, कोई विरोध करता है तो हमेशा के लिए उसे मौत की नींद सुला देते हैं। भय के कारण लोग हफ्ता वसूली देने तथा राज्य के बड़े-बड़े आला अधिकारी अपनी तनख्वाह में से मासिक कमीशन देने को मजबूर हैं।

भारत की प्राय: सभी इंटेलिजेंस एजेंसियाँ आज यह मान रहीं हैं कि भारत में उग्रवाद फैलाने के लिए पूर्वांचल सबसे आसान स्थल है, क्योंकि अपराध कर यहाँ से बंग्लादेश की सीमा में भाग जाना सबसे सरल है। असला-बारूद- नकली करेंसी की खेप पूरे भारत में यहीं से होकर पहुँचाई जाती है। पड़ौसी देश चीन तो अरूणाचल प्रदेश पर अपने कब्जे की बात समय-समय पर अंतर्राष्ट्रीय मंचों से भी करता रहाहै, वह अपने नक्शे में भी उसे दिखा चुका है। वह चाहता है भारत चहूंओर से कमजोर रहे और कभी महाशक्ति के रूप में न उभर सके, वह भी इन उग्रवादी संगठनों को भरपूर आर्थिक व हथियारों की मदद दे रहा है।

इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए यदि पूर्वांचल को देश से दूर होने से बचाना है तो केंद्र को चाहिए कि यहाँ के लिए वह अलग से सशक्त खुफियातंत्र विकसित करे तथा वहाँ तैनात आर्मी व पुलिस को ओर अधिक अधिकार सम्पन्न बनाए ताकि मनावाधिकार वाले किसी मामले में उन्हें परेशान न कर सकें। इसके अलावा केंद्र सरकार को चाहिए कि वह भारतीय गुप्तचर विभाग की पूर्वांचल को लेकर जो अनुसंशाएं हैं उन पर शीघ्र अमल करे । भारत से बंग्लादेशी घुसपैठियों को भगाने के लिए आब्रजन कानून में सुधार करने के साथ जरूरी हो जाता है कि बंग्लादेश पर भारत यह दबाव बनाए कि अपने नागरिकों को हर-हाल में वह वापिस ले। इन बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें वापिस भेजने का कार्य सिर्फ फाइलों तथा किसी सरकारी आयोजन की तरह नहीं होना चाहिए बल्कि केंद्र की कांग्रेसनीत संप्रग सरकार को देशहित में मुस्लिम वोट की चिंता छोड़ बंग्लादेशी घुसपैठियों को भारत से बाहर खदेड़ने में सख्ती का परिचय देना चाहिए।

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

3 COMMENTS

  1. काफी सटीक विश्लेषण किया है आपने | पर अपनी सरकार तो बस वोट बैंक की राजनीति मैं ही मशगुल है | यदि भारत का विभाजन हो भी जाता है तो बहुसंख्यक भारतीय को कुछ खास फर्क नहीं पडेगा | हम बस गाली दे देंगे .. अरे ये भड़वों की सरकार ने ऐसा कर दिया .. फिर सारा कुछ भूल कर उसी भड़वों की सरकार को जिताएंगे ..

    बालसुब्रमण्यम जी जानकारी के लिए धन्यावाद की अगले ३०-४० वर्षों मैं बंगदेश जलमग्न हो सकता है | पर आपका बाकि विश्लेष त्रुटिपूर्ण है | ये बताईये की भारत ने बंगलादेश के प्रति क्या दुश्मनी राखी है अब तक ? जहाँ तक संभव हुआ है भारत उसे सहायता ही करता रहा है | फिर क्यों बंगादेशी मुसलमान भारत मैं आतंकवादी गतिविधियाँ जारी रखे हैं ? आप खुले तौर पे ये कह रहे हैं की बंगादेशी मुसलमान यदि देश्सत्गर्दी फैला रहा है तो हम चुप-चाप बैठे रहे और उनको भारत मैं मिला लें | और जब वो भारत मैं मिल जाए तो बाकी बचे भारत के लिए और और परेशानी का सबब बने | भारत अभी अपनी जनसँख्या को सम्हाल नहीं पा रहा है, बंगदेश जैसी घनी आबादी वाले को कैसे सम्हालेंगे हम ?

    आज के समय मैं बंगलादेश चीन से काफी नजदीक है | हमारे सारे पडोशी देश चीन के काफी निकट है और इसमें हमारी विदेश निति की ही गलती हैं | हमारे नेताओं को कभी वोट बैंक राजनीति से फुर्सत मिले तब तो देश के बारे मैं सोचेंगे !

  2. यह चिंताजनक खबर है। यह सब 1947 में देश के गलत विभाजन का नतीजा है और इसका सही समाधान इस गलती को पलटने में ही है। न पाकिस्तान न ही बंग्लादेश, टिक सकनेवाले सत्व हैं, विशेषकर बंग्लादेश। पूरा बंग्लादेश गंगा नदी की जलद्रोणि में स्थित है और समुद्र तल से उसका उठाव ज्यादा नहीं है। पृथ्वी के गरमाने से इस पूरे इलाके के अथवा उसके अधिकांश भाग के जलमग्न होने की संभावना है। ऐसा अगले 30-40 वर्षों में हो सकता है। ऐसे में बंग्लावदेश के लाखों-करोड़ों लोगों का भारत में आ जाना लाजिमी है। वैसे भी भोगौलिक दृष्टि से बंगलादेश किसी भी तरह से भारत के अन्य भागों से अलग नहीं है। कहने का मतलब यह कि बंग्लादेश के लोगों को यहां से आने से रोकनेवाली कोई प्राकृतिक बाधा नहीं है। सैनिक प्रयासों से बंग्लादेशियों को यहां आने से रोकने में बहुत अधिक खर्च होगा, और इसके अन्य दुष्परिणाम भी निकलेंगे, जैसे, बंग्लादेश का चीन की शरण में चला जाना।

    ऐसे में कूटनीति यही कहती है कि बंग्लादेश को समझा-बुझाकर भारत में विलीन कर लेना। यह पाकिस्तान को भारत में विलीन करने से अधिक आसान होना चाहिए। इसे अंजाम देने के लिए हमें बंग्लादेशियों के प्रति द्वेष भावना छोड़नी होगी। वे अभी 60 वर्ष पहले तक हजारों वर्षों से हमारे ही भाई थे। हमारे बहुत से प्रिय राष्ट्रीय नेता, जैसे, देवेंद्रनाथ टैगोर, रवींद्रनाथ टैगोर, आदि बंग्लादेशी थे (ढाका के रहनेवाले)। जिस तरह भारत का राष्ट्रीय गान रवींद्रनाथ टैगोर का लिखा हुआ है, वैसे ही बंग्लादेश के राष्टरीय गान के रचयिता भी रवींद्रनाथ टैगोर ही हैं।

    हमें अपनी राष्ट्रीयता के बारे में नए सिरे से सोचना होगा। 1947 के देश के विभाजन को अंतिम सत्य मानने से ही ये सब समस्याएं विकराल लग रही हैं। यदि 1947 के विभाजन को एक राजनीतिक भूल के रूप में स्वीकार किया जाए और उसे पलटने के प्रयास किए जाएं, तो कश्मीर, आतंकवाद, सांप्रदायिकता, विदेशी ताकतों का भारत में हस्तक्षेप, आदि अनेक वर्तमानकालीन समस्याओं का निराकरण हो सकता है।

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