लुकाछिपी सूरज-बादल की

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           प्रात: सूरज चमका नभ में , जग को भी चमकाया।
           विहँस  उठी ये  धरा तभी, जब फूलों को महकाया ।।
                                        *
       मन अपना तब हुआ प्रफुल्लित,कवि ने गीत सुनाया ।
       क्षण भर ही आनन्द लिया था,फिर बादल आ छाया।।
                                             *
                ढका सूर्य को बादल ने तब, अंधकार भी बढ़ आया 
               जल-धारा फिर लगी बरसने ,धरा  को  भी  नहलाया ।।
                                                   *    
        ऊष्मा बदली शीतलता में ,पवन झकोरा भी आया ।
        लगे  झूमने तरुवर  भी तो , मेरा  मन तब घबराया ।।
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               ओह !अरे! सूरज फिर चमका,तन-मन फिर जीवन्त हो गया।
               बादल छिपे कहीं पर जाकर , आसमान फिर स्वच्छ हो गया ।।
                                                     *
        कैलिफ़ोर्निया का मौसम ये ,हम सबको ही छलता है 
        पल में  सूरज, पल में  बादल, आता जाता रहता है ।।
                                               *
                   ज्यों उजास को अँधियारा है , आकर ढकता रहता ।
                   वैसे ही उजियारा आकर,अँधियारे पर है छा जाता ।।
                                                    *
       ये जग भी तो द्वन्द्वात्मक है, चक्र सदा सुख-दु:ख का चलता।
      दिन  के  बाद रात आती है , रात के  बाद  सदा  दिन आता ।।
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                  मन रे! मत हो तू उदास यों, आशा से ही जीवन चलता ।
                  जहाँ निराशा छाई मन पर, जीवन भी तो रुक सा जाता ।।
                                                     *
      आँख-मिचौनी सुख-दु:ख  की  भी ,ऐसे ही चलती है ।
      आशा  के  संग  सदा  निराशा , भी  आती  रहती  है  ।।
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                    इसी तरह  से  सूरज-बादल, छिपते सामने आते हैं ।
                    सदा उल्लसित रहकर ही हम,जीवन में सुख पाते हैं ।।
                                                         *
      मंथन हुआ था जब सागर का, विष-अमृत दोनों संग आए।
      विष पी,अमृत दिया सुरों को, शिव तब महादेव कहलाए ।।
                                   ०-०-०-०-०-०-०
                                                     - शकुन्तला बहादुर
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शकुन्तला बहादुर
भारत में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मी शकुन्तला बहादुर लखनऊ विश्वविद्यालय तथा उसके महिला परास्नातक महाविद्यालय में ३७वर्षों तक संस्कृतप्रवक्ता,विभागाध्यक्षा रहकर प्राचार्या पद से अवकाशप्राप्त । इसी बीच जर्मनी के ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फ़ेलोशिप पर जर्मनी में दो वर्षों तक शोधकार्य एवं वहीं हिन्दी,संस्कृत का शिक्षण भी। यूरोप एवं अमेरिका की साहित्यिक गोष्ठियों में प्रतिभागिता । अभी तक दो काव्य कृतियाँ, तीन गद्य की( ललित निबन्ध, संस्मरण)पुस्तकें प्रकाशित। भारत एवं अमेरिका की विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ एवं लेख प्रकाशित । दोनों देशों की प्रमुख हिन्दी एवं संस्कृत की संस्थाओं से सम्बद्ध । सम्प्रति विगत १८ वर्षों से कैलिफ़ोर्निया में निवास ।

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