मैं और मेरी जिंदगी..

0
216

sex-workerमैं और मेरी जिंदगी..
कोठे पे ताल पे ताल मिलाती..
2 बट्टे 4 के कमरे में दम तोड़ती..
ऐसी ही हैं मेरी जिंदगी..

दिखा कर हसीन सपनें बड़े बड़े..
बड़े शहर के कोठे पर, मेरे सपनों को तोड़ा..

कुँवारी भी ना हुई थी मैं ठीक से..
की तभी एक जालिम ने, मेरे कौमार्य को तोड़ा..

मुझ जैसी हैं हजार यहाँ..
तीन चार सौ रूपए में, लुटती हैं आबरू यहाँ..

स्वप्न देखना भी, स्वप्न जैसा हैं यहाँ..
ढूंढने पर भी नहीं मिलता हैं, कोई अपना यहाँ..

102 डिग्री बुखार में भी, मुस्कुराना यहाँ तहज़ीब हैं..
पापी पेट के वास्ते, इसी को माना अपना नसीब हैं..

दिल भी अब धड़कता हैं, सहमे अंदाज़ में..
आँखे भी अब थक चुकी, अपनों के इंतज़ार में..

साजन कैसा होता हैं, यह किस्सों में ही सुना हैं..
यहाँ तो हर घंटे, नए चेहरों ने मुझे चुना हैं..

रंडी, वैश्या, बाज़ारू, कई मिले हैं नाम मुझे..
कोई तो पुकारो, बाबा के रखे, पुराने नाम से मुझे..

अब वक़्त भी आगे बढ़ चला..
जवानी भी वैसी रही नहीं..

जो कभी लुटाते थे हजारों मुझपर..
आज उनकी बातों में, मेरा कोई जिक्र नहीं..

अब जिंदगी के कुछ साल..
भीख मांग कर गुज़ारनी हैं..

इस जिस्म के बाज़ार में..
ज़रा सोचो, कौन असली भिखारी हैं..???

#

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress