नई दिल्लीः श्रीलंका में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से संसद भंग करने के राष्ट्रपति के फैसले को पलटने के एक दिन बाद बुधवार को श्रीलंका की संसद ने विवादित तौर नियुक्त किए गए महिन्द्रा राजपक्षे सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित किया। स्पीकर कारू जयसूर्या ने अपने फैसले में बताया कि 26 अक्टूबर को रानिल विक्रमसिंघे की जगह पर प्रधानमंत्री बनाए गए राजपक्षे के खिलाफ 225 सदस्यीय सदन में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को बहुमत से समर्थन दिया गया।

इसके नतीजे के तौर पर ऐसा नहीं देखा जाना चाहिए कि संसद में सबसे बड़ी वार्टी वाले विक्रमसिंघे की संवैधिनिक तौर पर जीत हो गई है। राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना को अगला प्रधानमंत्री चुनने का अधिकार है। द्वीप वाले देश में सत्ता संघर्ष के बीच रानिल विक्रम सिंघे और उनके पूरे मंत्रिमंडल को हटाने के बाद राष्ट्रपति सिरिसेना की तरफ से संसद भंग करने के बाद पहली बार संसद बुलाई गई।

इससे एक दिन पहले, मंगलवार को श्रीलंका के सुप्रीम कोर्ट ने संसद भंग करने के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना के कदम को पलट दिया और पांच जनवरी को प्रस्तावित मध्यावधि चुनाव की तैयारियों पर विराम लगाने का आदेश दिया। वहां मौजूद पार्टी पदाधिकारियों ने यह बताया।

प्रधान न्यायाधीश नलिन पेरेरा की अध्यक्षता में तीन सदस्यों वाली एक पीठ ने सिरीसेना के नौ नवंबर के फैसले के खिलाफ दायर तकरीबन 13 और पक्ष में दायर पांच याचिकाओं पर दो दिन की अदालती कार्यवाही के बाद यह व्यवस्था दी।

शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी कि सिरीसेना के फैसले से जुड़ी सभी याचिकाओं पर अब चार, पांच और छह दिसंबर को सुनवाई होगी।याचिकाकर्ताओं में विभिन्न पार्टियों के साथ स्वतंत्र चुनाव आयोग के एक सदस्य रत्नाजीवन हुले भी शामिल थे। सिरीसेना ने संसद भंग कर दी थी और पांच जनवरी को मध्यावधि चुनाव करने के आदेश जारी किए थे। इससे देश अभूतपूर्व संकट में फंस गया।