रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति पर उठा सवाल
नई दिल्ली, मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन ने रिजर्व बैंक की नीतिगत ब्याज दर में और कटौती के लिये जोरदार तर्क देते हुए कहा है कि भारत में वास्तविक ब्याज दरें अभी भी ‘‘बहुत अधिक’‘ उंची है जिससे कंपनियों को रिण की समस्या से निपटना मुश्किल हो रहा है।सुब्रमणियन ने वीओएक्स सीईपीआर पॉलिसी पोर्टल पर एक लेख में सवाल उठाते हुये कहा है, ‘‘तो क्या, मौजूदा :मौद्रिक: नीति में जो रख अपनाया गया है वह उपयुक्त है? बेशक यह कहना मुश्किल है लेकिन इस मामले में और ज्यादा विश्लेषणात्मक विचार विमर्श की जरूरत है। खासतौर से इस बात पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये कि यह एक असाधारण समय है।उन्होंने कहा, ‘‘वास्तविक ब्याज दरें उपभोक्ताओं और उत्पादाकों के लिये उल्लेखनीय रूप से काफी अलग अलग दिशा में चली गयी हैं और उत्पादकों के लिये यह काफी उुंची हैं। उत्पादाकों के मामले में उंची वास्तविक दरों को उनकी बैलेंस सीट की समस्या के समक्ष देखा जाना चाहिये।’’ रिजर्व बैंक के मौजूदा गवर्नर रघुराम राजन ने अब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक :सीपीआई: पर आधारित मुद्रास्फीति पर गौर करना शुरू किया है। इस प्रकार की नीति प्राथमिक तौर पर मूल्यवृद्धि पर अंकुश रखने के उद्देश्य से अपनाई गई है। रिजर्व बैंक ने हालांकि इस साल जनवरी के बाद से तीन किस्तों में नीतिगत दर में 0.75 प्रतिशत की कटौती की है। इस समय रेपो दर 7.25 प्रतिशत है।वास्तविक ब्याज दर यानी नीतिगत ब्याज दर में से मुद्रास्फीति की दर को घटाने पर प्राप्त होता है और रेपो रेट :नीतिगत ब्याज दर: 7.25 प्रतिशत है। सुब्रमणियन ने सवाल किया, ‘‘आज वास्तविक नीतिगत दर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक :सीपीआई: के आधार पर 2.4 प्रतिशत, सीपीआई और थोक मूल्य सूचकांक के औसत के आधार पर 5.9 प्रतिशत या जीडीपी डीप्लेटर के आधार पर 7.5 प्रतिशत है। ऐसे में इनमें से मौद्रिक नीति के रख को परखने का सही पैमाना कौन सा है।’’