निगाहें

स्टेशन की सीढियां चढ़ते हुए

हर रोज़

रास्ता रोक लेती हैं

कुछ निगाहें

अजीब से सवाल करती हैं

और मैं

नज़रें बचाते हुए

हर बार की तरह

आगे बढ़ जाता हूं

ऐसा लगता है

जैसे एक बार फिर

ईमान गिरवी रख कर भी

अपना सब कुछ बेच आया हूं

और किसलिए

चंद सिक्कों की खातिर

क्यूं नहीं जाता

मेरा हाथ

अपनी जेब की तरफ

और

क्यूं नहीं निकलती उसमे से

कुछ चिल्लर

जो दबी पड़ी है

हजार के नोटों के बीच में

ठीक वैसे ही

जैसे

मेरा मन दबा है

उन निगाहों के बोझ से

लोगों की हिकारत भरी नज़रों के बोझ से

अनजाने से डर के बोझ से

और शायद

अपनी जेब हल्की होने के बोझ से

क्या कभी ऐसा कर पाऊंगा

बिना डरे

बिना सोचे

बिना झिझके

चंद सिक्के

चुपचाप वहां रख पाऊंगा

पता नहीं

शायद

कभी ये सब सच हो जाये

या फिर

सपना, सपने में ही मर जाये…

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अंकुर विजयवर्गीय
टाइम्स ऑफ इंडिया से रिपोर्टर के तौर पर पत्रकारिता की विधिवत शुरुआत। वहां से दूरदर्शन पहुंचे ओर उसके बाद जी न्यूज और जी नेटवर्क के क्षेत्रीय चैनल जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ के भोपाल संवाददाता के तौर पर कार्य। इसी बीच होशंगाबाद के पास बांद्राभान में नर्मदा बचाओ आंदोलन में मेधा पाटकर के साथ कुछ समय तक काम किया। दिल्ली और अखबार का प्रेम एक बार फिर से दिल्ली ले आया। फिर पांच साल हिन्दुस्तान टाइम्स के लिए काम किया। अपने जुदा अंदाज की रिपोर्टिंग के चलते भोपाल और दिल्ली के राजनीतिक हलकों में खास पहचान। लिखने का शौक पत्रकारिता में ले आया और अब पत्रकारिता में इस लिखने के शौक को जिंदा रखे हुए है। साहित्य से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं, लेकिन फिर भी साहित्य और खास तौर पर हिन्दी सहित्य को युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाने की उत्कट इच्छा। पत्रकार एवं संस्कृतिकर्मी संजय द्विवेदी पर एकाग्र पुस्तक “कुछ तो लोग कहेंगे” का संपादन। विभिन्न सामाजिक संगठनों से संबंद्वता। संप्रति – सहायक संपादक (डिजिटल), दिल्ली प्रेस समूह, ई-3, रानी झांसी मार्ग, झंडेवालान एस्टेट, नई दिल्ली-110055

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