‘न टैलेंट की कमी, न टेक्नोलॉजी की और न पूँजी की’

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इ. राजेश पाठक
                    
                 ‘देश में न टैलेंट की कमी है, न टेक्नोलॉजी की और ना ही पूँजी की. हमारे पास बैंकिंग, फार्मा, ऑटो सेक्टर में वर्ल्ड- क्लास कम्पनीज़ हैं, जिनका  बड़ा  लाभ अर्जित करने वाला प्रदर्शन रहा है. एक देश[चीन] से पैसा ना आने से सब-कुछ रुक जाएगा, ये एक कमजोर सोच है. निवेश देश के अन्दर से, और विश्व के अन्य देशों से क्योँ नहीं आ सकता.’-विपिन प्रीत सिंह,मोवीक्विक के को-फाउंडर. देश के स्टार्टअप्स में चीनी निवेश को  लेकर बिज़ीनेस चैनेल,सीएनबीसी आवाज़, पर आयोजित बहस में उनके द्वारा कही गयी इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है. वैसे, करोना के फैलाव  और अपनी अविश्वसनीय व्यापार के तौर तरीकों को लेकर  चीन  से  दुनिया भर की कम्पनीयों व निवेशकों नें  बाहर निकल दूसरे विकल्पों पर विचार करना शुरू कर दिया है. उसमें भारत उनकी पसंद में शीर्ष स्थान पर है. इसलिए, क्योंकि भारत में उपलब्ध कुशल श्रम बल से वे अनभिग्य नहीं है. मानव संसाधन पर अपनी पेनी नज़र रखने वाला विश्व में ख्याति प्राप्त संगठन ‘कॉर्न  फेरी’ की रिपोर्ट के अनुसार सन २०३० के आते-आते जबकि पूरी दुनिया कुशल श्रम बल के आभाव से जूझ रही होगी, तब भारत अपने पास उपलब्ध २४.५ करोड़ अतिरिक्त कुशल श्रम बल की बदोलत दुनिया को इस संकट में राह दिखलाने का काम करेगा.
                  और फिर अपने  सटीक निष्कर्षों को लेकर दुनिया भर में  प्रतिष्ठा रखने वाली एकाउंटिंग कंसल्टेंसी फर्म ‘केपीऍमजी’ की राय भी भिन्न नहीं. इसके सर्वे के मुताबिक आर्टिफ़ीशियल इंटेलिजेंस; मशीन लर्निंग ;ब्लाकचैन इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स के क्षेत्र में निरंतर चलने वाली  नई खोजों और अनुसंधान में भारत और चीन दुनिया में दूसरे नंबर पर  हैं. आज अमेरिका की  क्लाउड-कंप्यूटिंग; आर्टिफ़ीशियल इंटेलिजेंस; कंप्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेर बनाने वाली दुनिया की  अग्रणी बहुराष्ट्रीय कंपनी ‘आईबीऍम’  [IBM-इंटरनेशनल बिज़नेस मशीन कारपोरेशन ] में कुल ३,५२,६०० कर्मचारी काम करते हैं , जिसमें से १,५०,००० से अधिक भारतीय मूल के हैं [२०१९ के आंकड़ों के अनुसार]. और फिर इसके वर्तमान सीईओ अरविन्द कृष्णन भी अमेरिका में बसे भारत वंशी ही हैं.
             ‘भारत को विश्व की सॉफ्टवेयर राजधानी के रूप में देख जाता है, और दुनिया की सभी ख्यातिनाम सॉफ्टवेयर कंपनीयों में प्रत्यक तीसरा व्यक्ति भारतीय है. भारत को जब ‘क्रे’ सुपर कंप्यूटर ३६ करोड़ में भी देने से अमेरिका नें सर्वथा इनकार कर दिया था तब भारत नें मात्र कुछ लाख रूपए में पेरेलल प्रोसेसर  परम बना लिया, जो क्रे सुपर कंप्यूटर से भी कुछ मायनों  में श्रेष्ठ  व उच्च प्रोसेसिंग स्पीड युक्त था. आज भारत ५०० टेराफ्लॉप तक की प्रोसेसिंग स्पीड के परम सुपर कंप्यूटर [पेरेलल प्रोसेसर] बना रहा है, और विश्व भर में निर्यात कर इस क्षेत्र में विश्व नेतृत्व रखता है.’[‘अजेय राष्ट्र’- डॉ भगवती प्रकाश शर्मा , पृ-४६] .
             यही कारण है कि आज संकट के इस दौर में दुनिया की तमाम कंपनियों को घर से काम कर रहे [वर्क फ्रॉम होम] हमारे टेक्नोक्रेटस ने बड़ी राहत पहुंचाने का काम किया है. इसने देश में रहने वाले  ऐसे कुशल तकनिकी  ज्ञान संपन्न लोगों के लिए भी वैश्विक-कंपनीयों से जुड़ने का मार्ग प्रशस्त किया है, जो कि विभिन्न कारणों से विदेश जा सकने में असमर्थ रहे. स्टार्टअप्स की बात हो चाहे चीनी एप्स पर लगे प्रतिबन्ध की हमारे यहाँ उपलब्ध प्रतिभा संपन्न लोग इस से उत्त्पन्न संभावित चुनौती से निपटनें  में सफल होकर बाहर निकलेंगे, इसमें संदेह का कोई कारण नहीं. और इसकी शुरुआत भी देखने को मिलने लगी है. विडियो-कालिंग के मामले में चीनी एप ‘ज़ूम’ के वर्चस्व को देश देख चुका है, पर  अब इसके दिन लदने के दौर की शुरुआत भी हो चुकी है. अब हमारे पास स्वयं का ‘जियो-मीट’ विडियो-कालिंग एप उपयोग के लिए तैयार हो चुका है. साथ ही प्रतिबंधित टिक टाक समेत  कई चीनी एप के स्वदेशी विकल्पों  नें धीरे-धीरे बाज़ार में अपनी आमद दर्ज करना शुरू कर दिया है. गूगल के सीईओ भारतवंशी सुन्दर पिचई नें अभी देश में ७५००० करोड़ के निवेश की घोषणा भर की थी कि RIL[रिलायंस इंडिया लिमिटेड] नें गूगल के साथ स्ट्रेटेजिक पार्टनर के एक क़रार को अंजाम भी दे डाला. इसके अंतर्गत 4G व  5G सालूशन, एंड्राइड बेस्ड स्मार्टफ़ोन के  निर्माण के क्षेत्र में काम किया जायेगा.
               जिन्हें देश की काबिलियत पर भरोसा कम है, उन्हें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि जिन वस्तुओं को लेकर हम आज चीन पर आश्रित हो चलें हैं, उनमें पहले हम पूर्णत: आत्मनिर्भर ही थे. दवाईयों में कच्चे माल के रूप में उपयोग होने वाले एपीआई[ एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेजिएंट]  पहले भारत में ही बनकर तैयार हुआ करते थे. पर इनका आयात १९९१ में १% से शुरू होकर २०१९ में ७०% हो गया. अगले आठ सालों में इस स्थिति को बदलने के लिए भारत सरकार नें एक परियोजना शुरू की है, जिसमें कुल ७००० करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है. दरअसल  आत्मनिर्भरता के मोर्चे पर भी हमने चीन से मात ही खाई है. हमसे  काफी आगे बढ़कर उसने तो हमारे यहाँ से निर्यात होने वाली २८४८ वस्तुओं पर अपने यहाँ पहले से ही रोक लगा रखी है, जबकि हमने यही कदम  मात्र ४३३ वस्तुओं के विरुद्ध ही उठाया है.

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