भ्रष्टाचार का गरलः निजात नहीं सरल

0
161

-ललित गर्ग-

india

चाणक्य ने कहा था कि जिस तरह अपनी जिह्ना पर रखे शहद या हलाहल को न चखना असंभव है, उसी प्रकार सरकारी कोष से संबंधित व्यक्ति राजा के धन का उपयोग न करे, यह भी असंभव है। जिस प्रकार पानी के अन्दर मछली पानी पी रही है या नहीं, जानना कठिन है, उसी प्रकार राज कर्मचारियों के पैसा लेने या न लेने के बारे में जानना भी असंभव है।

भारत में यह समय भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई लड़ने का है। समस्त देश में भ्रष्टाचार एक व्यापक मुद्दा है जिसके लिए जनता के जनजागरण की आवश्यकता है। जनता जागी है, इसमें सन्देह नहीं है। क्योंकि वर्तमान केन्द्र की सरकार हो या दिल्ली में ‘आप’ की सरकार इसी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर जीत हासिल की है। हमने इससे पहले भी भ्रष्टाचार को लेकर सरकारें बदली है और सरकारें बनाई भी है। लेकिन हम भ्रष्टाचार को रोकने में सफल नहीं हो पाए। इसका कारण यह है कि भ्रष्टाचार सरकारों की खामियों से ही नहीं बल्कि व्यवस्था की खामियों से भी है। यह स्थिति हाल ही में देश के सबसे बडे़ उद्योग चैम्बर फिक्की और प्रख्यात पिंकर्टन कॉरपोरेट रिस्क मैनेजमेंट की ताजा रिपोर्ट से उजागर हुई है। रिपोर्ट के अनुसार देश की आर्थिक प्रगति के सामने सबसे बड़ी समस्या अभी भी भ्रष्टाचार ही है। इस रिपोर्ट में साइबर सुरक्षा में सेंध को दूसरे स्थान पर रखा गया है, जबकि आतंकवाद तीसरे स्थान पर है। यह रिपोर्ट चार वर्षों से एक व्यापक सर्वेक्षण के बाद तैयार होती है। फिक्की का दावा है कि इस रिपोर्ट के आधार पर ही कई कंपनियां आगे की रणनीति बनाती हैं। ऐसे में अगर भ्रष्टाचार को अभी भी उद्योग जगत एक बड़ी समस्या मान रहा है तो इसका मतलब है कि मोदी सरकार को मेक इन इंडिया कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अभी बहुत कुछ करना है।यह सर्वेक्षण इसलिए भी अहम है क्योंकि इसे निजी व सरकारी कंपनियों के अलावा आम प्रोफेशनल्स व कई अन्य क्षेत्रों के लोगों से बात करने के बाद तैयार किया जाता है। इंडिया रिस्क सर्वे 2015 के मुताबिक भ्रष्टाचार और कॉरपोरेट धोखाधड़ी को सबसे बड़ी अड़चन के तौर पर देखा गया है। यह लगातार दूसरा वर्ष है कि भ्रष्टाचार व कॉरपोरेट धोखाधड़ी को देश की अर्थव्यवस्था के सामने सबसे बड़े अरोधक के रूप में देखा जा रहा है। इस सर्वेक्षण में दुनिया की अन्य रिपोर्टों का भी हवाला दिया गया है जिसमें भारत में कारोबार करने की चुनौतियों का जिक्र है। मसलन, विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में कारोबार करने के लिए 189 बेहतर देशों की सूची में भारत का स्थान 142वां था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को शीर्ष 50 देशों की सूची में शामिल करने का लक्ष्य रखा है। यह तभी संभव है जब हम भ्रष्टाचार के विरुद्ध सशक्त लड़ाई लडे़ेगे। क्योंकि भ्रष्टाचार के मामले सम्पूर्ण राष्ट्रीय गरिमा एवं पवित्रता को धूमिल किये हुए है।

 

भारत सरकार की प्रामाणिक संस्थाओं के सर्वेक्षणों ने भी ऐसे ही चैंकानेवाले तथ्यों को  उजागर किया हैं। ये तथ्य आश्चर्यजनक रूप से भ्रष्टाचार के शिष्टाचार बनने की बात को व्यक्त करते है। इन सर्वेक्षणों से पता चला है कि हमारे देश का हर शहरी परिवार हर साल कम से कम 4,400 रुपए रिश्वत देता है और ग्रामीण परिवार 2900 रुपए! शहरों में नौकरी पाने और तबादले करवाने के लिए प्रति व्यक्ति को औसत 18000 रुपए देने पड़ते हैं। एक तरह से हमारे देश में रिश्वत का बाजार लाखों-करोड़ों नहीं, अरबों-खरबों रूपए का है। यह तो तस्वीर केवल प्रशासनिक गलियारों की हैं, राजनीतिक रिश्वत इसमें शामिल नहीं है, जो हमारे नेता लोग खाते हैं।

सर्वेक्षण के तथ्यों ने हमें चौंकाया है, क्या राजनीति के लोग भी चौंके हैं? क्या राजनीतिक शुद्धिकरण के नाम पर और भ्रष्टाचार कोे जड़ से समाप्त करके सत्ता में काबिज होने वाले नेताओं को भी ये तथ्य डराते हैं? क्या उनकी नींद उड़ाने के लिये यह पर्याप्त है? आज जबकि रिश्वत का भ्रष्टाचार तो राष्ट्रीय शिष्टाचार बन गया है। मोदी कैसे इस पर नियंत्रण करेंगे? मोदीजी की क्या योजना है भ्रष्टाचारमुक्त शासन देने की? क्या मोदी कोई ऐसा यंत्र निर्मित करेंगे जो बता सके कि देश में भ्रष्टाचार कितना कम हुआ है? या अब भ्रष्टाचार कोरा चुनाव जीतने भर का हथियार बन कर रह जायेगा?

हमारा देश विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आगे बढ़ने के दृश्यों के बीच में कितना पीछे होता जा रहा है, सहज की महंगाई, भ्रष्टाचार, सामाजिक-आर्थिक अन्याय एवं बेरोजगारी की विभीषिका से अन्दाज लगाया जा सकता है। विशेषज्ञों ने भ्रष्टाचार को मुद्रास्फीति के साथ भारत की विकास दर में सर्वोच्च रुकावट माना है। यह भारत में गिरती नैतिकता की महत्वपूर्ण स्वीकारोक्ति है। सरकार का हर स्तंभ अभी भी भ्रष्टाचार की काली छाया से मुक्त नहीं है।

आज नैतिकता को भी राजनीतिक दल अपने-अपने नजरिये से देखने को अभिशप्त हैं। राजनीति से जुड़े लोगों के लिये भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र का निर्माण सर्वोच्च प्राथमिकता होनी ही चाहिए। शोषित एवं वंचित वर्ग के बढ़ते असन्तोष को बलपूर्वक दबाने के प्रयास छोड़ कर भ्रष्टाचार मुक्त एवं सामाजिक समरसता वाले भारत के निर्माण की दिशा में प्रयत्न किये जाने की आवश्यकता है। हमारे राष्ट्र की लोकसभा का यही पवित्र दायित्व है तथा सभी प्रतिनिधि भगवान् और आत्मा की साक्षी से इस दायित्व को निष्ठा व ईमानदारी से निभाने की शपथ लें। भ्रष्टाचार के मामले में एक-दूसरे के पैरों के नीचे से फट्टा खींचने का अभिनय तो सब करते हैं पर खींचता कोई भी नहीं। रणनीति में सभी अपने को चाणक्य बताने का प्रयास करते हैं पर चन्द्रगुप्त किसी के पास नहीं है। घोटालों और भ्रष्टाचार के लिए हल्ला उनके लिए राजनैतिक मुद्दा होता है, कोई नैतिक आग्रह नहीं। कारण अपने गिरेबार मंे तो सभी झांकते हैं वहां सभी को अपनी कमीज दागी नजर आती है, फिर भला भ्रष्टाचार से कौन निजात दिरायेगा।

कैसी विडम्बना है कि आजादी के बाद सातवें दशक में भी हम अपने आचरण और काबिलीयत को एक स्तर तक भी नहीं उठा सके, हममें कोई एक भी काबिलीयत और चरित्र वाला राजनायक नहीं है जो भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था निर्माण के लिये संघर्षरत दिखें। यदि हमारे प्रतिनिधि ईमानदारी से नहीं सोचंेगे और आचरण नहीं करेंगे तो इस राष्ट्र की आम जनता सही और गलत, नैतिक और अनैतिक के बीच अन्तर करना ही छोड़ देगी। एक तरह से यह सोची समझी रणनीति के अन्तर्गत आम-जन को कुंद करने की साजिश है। इस साजिश को नाकाम करना वर्तमान सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। हमें खुशी है कि कांग्रेस के भ्रष्टाचार को चर्चित करके मोदी प्रधानमंत्री बने, हमें इस बात की भी खुशी है अब तक न तो मोदी और न ही उनके मंत्रियों पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप लगा है। लेकिन इस तरह के निष्कर्ष और इस तरह क्लिन चीट देना जल्दबाजी होगा। मूल प्रश्न भ्रष्टाचार को समाप्त करने का या उस पर नियंत्रण करने का है। विदेशों से काले धन को लाने से ज्यादा जरूरी है कि काले धन की उत्पत्ति के सारे रास्ते बन्द हो। काला धन भारत में वापस आये यह अच्छा है लेकिन इससे पहले हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि क्या काला धन बनना बंद हुआ? क्या काला धन बाहर जाना बंद हुआ है? इसलिए जरूरी यह है कि काला धन बनना रुके और देश से बाहर जाना रुके। हमारे भीतर नीति और निष्ठा के साथ गहरी जागृति जरूरी है। नीतियां सिर्फ शब्दों में हो और निष्ठा पर सन्देह की पर्तें पड़ने लगें तो भला उपलब्धियों का आंकड़ा वजनदार कैसे होगा? भ्रष्टाचार को हम कैसे देश निकाला दे पाएंगे। बिना जागती आंखों के सुरक्षा की साक्षी भी कैसी! एक वफादार चैकीदार अच्छा सपना देचाने पर भी इसलिये मालिक क्षरा तत्काल हटा दिया जाता है कि पहरेदारी में सपनों का खयाल चोर को खुला आमंत्रण है। राष्ट्र में जब राष्ट्रीय मूल्य कमजोर हो जाते हैं और सिर्फ निजी हैसियत को ऊँचा करना ही महत्त्वपूर्ण हो जाता है तो वह राष्ट्र निश्चित रूप से कमजोर हो जाता है और वर्तमान सरकार का दायित्व है कि वह राष्ट्र को कमजोर न होने दे। उसे दोहरा दायित्व निभाना है। अतीत की भूलों को सुधारना और भविष्य के निर्माण में सावधानी से आगे कदमों को बढ़ाना। वर्तमान सरकार के हाथों में उन्नत, विकसित एवं भ्रष्टाचारमुक्त भारत की सम्पूर्ण जिम्मेदारियां थमी हुई हैं। भ्रष्टाचार की समस्या का कल नहीं, आज और अभी समाधान ढूंढना है, तभी भविष्य सुरक्षित रह पायेगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress