युवाओं की जिंदगी को गर्त में धकेल रही आनलाइन गेमिंग

हाल ही में भारत के माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्टूडेंट्स सुसाइड और गेमिंग ऐप से बर्बादी पर चिंता जताई है और इस पर सख्त लहजा अपनाते हुए यह बात कही है कि ‘विद्यार्थी मर रहे हैं, सरकार कर क्या रही है…? मामले को हल्के में न लें !’ पाठकों को बताता चलूं कि हाल ही में 23 मई 2025 को ही सुप्रीम कोर्ट ने  ऑनलाइन और ऑफलाइन सट्टेबाज़ी ऐप्स को विनियमित करने की मांग वाली एक जनहित याचिका (पीआइएल) पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। दरअसल,यह कदम युवाओं और बच्चों पर इन ऐप्स के कथित दुष्प्रभाव को लेकर बढ़ती चिंता के बीच उठाया गया है। यह वाकई बहुत ही चिंताजनक है कि आज सट्टेबाज़ी और जुए की लत के कारण विशेष रूप से तेलंगाना में सैकड़ों युवाओं ने आत्महत्या कर ली है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार अकेले तेलंगाना में 1,023 से अधिक लोगों ने आत्महत्या की है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज बॉलीवुड और टॉलीवुड के 25 से अधिक अभिनेता और सोशल  मीडिया इन्फ्लुएंसर इन ऐप्स का प्रचार कर रहे हैं, जिससे बच्चे इनकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। यहां तक कि कुछ पूर्व क्रिकेटर भी इन ऐप्स का प्रचार कर रहे हैं जिससे युवाओं में इसकी लत बढ़ रही है। जानकारी के अनुसार तेलंगाना में इन इन्फ्लुएंसर्स के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है क्योंकि यह मामला मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। गौरतलब है कि इस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि कानून बनाना हमेशा ऐसे सामाजिक विचलनों को रोकने का उपाय नहीं हो सकता। जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की, ‘सैद्धांतिक रूप से हम आपके साथ हैं कि इसे रोका जाना चाहिए… लेकिन शायद आप इस भ्रांति में हैं कि इसे कानून से रोका जा सकता है। जैसे हम हत्या को पूरी तरह नहीं रोक सकते, वैसे ही सट्टेबाज़ी और जुए को भी नहीं रोका जा सकता।’ इतना ही नहीं, इधर कोटा में आत्महत्याओं पर भी माननीय कोर्ट ने राजस्थान सरकार को फटकार लगाई है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दो अलग-अलग मामलों की सुनवाई में गेमिंग ऐप के जरिए सट्टे के कारण युवाओं की बरबादी और कोचिंग व शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों की आत्महत्या के प्रकरणों पर चिंता और सख्ती दिखाई। पाठक जानते होंगे कि कोटा शिक्षा नगरी के नाम से पूरे देश में विख्यात है और यहां विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से छात्र नीट व इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करने आते हैं। कोचिंग का हब कहलाने वाले कोटा में पिछले कुछ सालों से छात्र-छात्राओं की आत्महत्याओं की खबरें हर किसी को विचलित करतीं हैं और अब माननीय कोर्ट ने देश में मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग हब बने राजस्थान के कोटा में विद्यार्थियों की सुसाइड पर कोर्ट ने राजस्थान सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच कोटा व खड़गपुर आइआइटी में विद्यार्थियों के सुसाइड मामलों की सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान बेंच कोटा में एक छात्रा के सुसाइड मामले में एफआइआर दर्ज नहीं करने से नाराज दिखी और राजस्थान सरकार के वकील से इस संबंध में तीखे सवाल पूछे। खड़गपुर आइआइटी में छात्र के सुसाइड मामले में माननीय कोर्ट ने यह कहा कि ‘एफआइआर दर्ज करने में चार दिन क्यों लगे? बेंच ने कहा कि कोटा में इसी साल 14 कोचिंग स्टूडेंट सुसाइड कर चुके हैं, सरकार इसे लेकर कर क्या रही है? कोटा में ही विद्यार्थी क्यों मर रहे हैं, क्या सरकार ने इस पर कोई विचार नहीं किया?’ बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि आजकल ऑनलाइन गेमिंग सिर्फ एंटरटेनमेंट का साधन ही नहीं, बल्कि युवाओं में एक गंभीर लत बन चुका है। पाठकों को बताता चलूं कि कई रिपोर्ट्स में यह सामने आया है कि ऑनलाइन गेमिंग की लत के कारण किशोर और युवा मानसिक तनाव में आकर आत्महत्या तक कर रहे हैं।आज आनलाइन का युग है और ऑनलाइन गैंबलिंग में पैसे या पुरस्कार जीतने के लिये खेल और आयोजनों पर दाँव लगाकर इंटरनेट के माध्यम से जुआ गतिविधियों में भाग लेना शामिल है। इसे विभिन्न उपकरणों जैसे कंप्यूटर, एंड्रॉयड मोबाइल फोन, लैपटॉप आदि पर खेला जा सकता है और इसमें नकदी के बजाय वर्चुअल चिप्स या डिजिटल मुद्राएँ शामिल होती हैं। भारत आज विश्व का एक बड़ा देश है और यदि हम यहां आंकड़ों की बात करें तो एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑनलाइन गेमिंग वर्ष 2026-27 तक भारत की जीडीपी में 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक जोड़ सकते हैं। यदि हम यहां पर भारत में ऑनलाइन गेमिंग और गैंबलिंग की वैधता की स्थिति की बात करें तो भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II (राज्य सूची) की प्रविष्टि संख्या 34 के तहत राज्य विधानमंडल को गेमिंग, बेटिंग या सट्टेबाजी और गैंबलिंग या जुए के संबंध में कानून बनाने की विशेष शक्ति दी गई है। भारत में डिजिटल कैसीनो, ऑनलाइन गैंबलिंग एवं गेमिंग की चुनौतियों से निपटने के लिये 

सार्वजनिक जुआ अधिनियम 1867 की स्थापना की गई है लेकिन यह अपर्याप्त कानून है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि शिक्षा मंत्रालय ने 27 सितंबर, 2021 को ऑनलाइन गेमिंग के नुकसानों पर काबू पाने के लिए अभिभावकों और शिक्षकों के लिए एक एडवाइजरी जारी की थी। इसके बाद, शिक्षा मंत्रालय ने 10 दिसंबर, 2021 को बच्चों के सुरक्षित ऑनलाइन गेमिंग पर अभिभावकों और शिक्षकों को भी एक एडवाइजरी जारी की थी। दरअसल, अभिभावकों और शिक्षकों को एडवाइजरी को व्यापक रूप से प्रसारित करने और बच्चों को मानसिक और शारीरिक तनाव से जुड़े सभी ऑनलाइन गेमिंग नुकसानों पर काबू पाने में प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कार्रवाई के लिए उन्हें शिक्षित करने की सिफारिश की गई।बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि आज भारत धीरे-धीरे एक डिजिटल क्रांति की ओर अग्रसर हो रहा है। हमारे यहां ऑनलाइन गेमिंग को विनियमित करने के लिए हालांकि कदम उठाए गए हैं लेकिन ऑनलाइन गेमिंग में मजबूत विनियमन की तत्काल आवश्यकता है।ऑनलाइन गेमिंग से जहां एक ओर हमारी युवा पीढ़ी में इसकी लत विकसित हो रही है, वहीं दूसरी ओर यह हमारे युवाओं के मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य को भी गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है। बच्चे पढ़ाई से विमुख हो रहे हैं और अनेकों बार वे अतिवादी कदम उठाने को मजबूर हो रहे हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि ऑनलाइन गेमिंग जहां वित्तीय धोखाधड़ी को जन्म दे रहा है वहीं दूसरी ओर यह राष्ट्रीय सुरक्षा जोखिमों को भी कहीं न कहीं जन्म दे रहा है। अतः बहुत अच्छा हो यदि देश में आनलाइन गेमिंग को विनियमित करने के क्रम में और भी अधिक प्रभावी व माकूल कदम उठाए जाएं।

सुनील कुमार महला

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