कविता – गर्म होता समय और हम

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timeअभी समय के भंडार में

ब्लैकहोल होने की बात

सुगबुगाहट तक सिमित नहीं है

और ना ही बची है

कोई ओजोन

समय के गर्भ मेँ ।

 

आज समय का नाप-तौल

मापने की सारी शक्ति

उदारवाद के चमकते फर्श पर

सिसकने को विवश है

और कामना के हर कदम पर

बिछने को आतुर

वे सारी संभावनाएं

धीरे से

सुगबुगाहट बनती जा रही है ।

 

अभी और अभी ही

एक चिड़िया

स्याह घोसले को

ढूंढने में व्यस्त है

और कई चमगादड़

अपने पेड़ों को छोड़ चुके हैं ।

 

उधर एक बादल का टूकड़ा

चाँद की ओर

चुपके से पाँव पसार रहा है

इधर डिबरी के मद्धिम रोशनी में

इस चौपाल के उस कोने में

चार जने सुगबुगाहट आँच में

धीरे-धीरे गर्म हो रहे हैं ।

 

यदि हम कांटों को

कांटे से निकालने की बात छोड़ भी दें

तो भी बड़ी लाईन को

छोटी करने की बात

हम साथ लिए

इस विकट समय में ही जाएंगें

जहाँ ओजोन

और ब्लैकहोल की बात

समय के गर्भ में

अभी बेईमानी लगती है

जब हमारा आकाश

रक्तिम होकर

हमारे आंगन में पसरा है ।

 

मोतीलाल

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मोतीलाल
जन्म - 08.12.1962 शिक्षा - बीए. राँची विश्वविद्यालय । संप्रति - भारतीय रेल सेवा में कार्यरत । प्रकाशन - देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं लगभग 200 कविताएँ प्रकाशित यथा - गगनांचल, भाषा, साक्ष्य, मधुमति, अक्षरपर्व, तेवर, संदर्श, संवेद, अभिनव कदम, अलाव, आशय, पाठ, प्रसंग, बया, देशज, अक्षरा, साक्षात्कार, प्रेरणा, लोकमत, राजस्थान पत्रिका, हिन्दुस्तान, प्रभातखबर, नवज्योति, जनसत्ता, भास्कर आदि । मराठी में कुछ कविताएँ अनुदित । इप्टा से जुड़ाव । संपर्क - विद्युत लोको शेड, बंडामुंडा राउरकेला - 770032 ओडिशा

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