कविता / मन का शृंगार

काश।

एक कोरा केनवास ही रहता

मन…।

न होती कामनाओं की पौध

न होते रिश्तों के फूल

सिर्फ सफेद कोरा केनवास होता

मन…।

न होती भावनाओं के वेग में

ले जाती उन्मुक्त हवा

न होती अनुभूतियों की

गहराईयों में ले जाती निशा।

सोचता हूं,

अगर वाकई ऐसा होता मन

तो मन मन नहीं होता

तन तन नहीं होता

जीवन जीवन नहीं होता…।

तो सिर्फ पौधा एक पौधा होता

फूल सिर्फ एक फूल होता

फूल पौधों का उपवन नहीं होता…।

हवा सिर्फ हवा होती

निशा सिर्फ निशा होती

कोई खूशबू नहीं होती

कोई उषा नहीं होती…।

जीवन की संजीवनी है भाव

रिश्तों का प्राण है प्यार

मन और तन दोनों का

यही तो है

शाश्वत शृंगार

एक मात्र मूल आधार… ।

-अंकुर विजयवर्गीय

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अंकुर विजयवर्गीय
टाइम्स ऑफ इंडिया से रिपोर्टर के तौर पर पत्रकारिता की विधिवत शुरुआत। वहां से दूरदर्शन पहुंचे ओर उसके बाद जी न्यूज और जी नेटवर्क के क्षेत्रीय चैनल जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ के भोपाल संवाददाता के तौर पर कार्य। इसी बीच होशंगाबाद के पास बांद्राभान में नर्मदा बचाओ आंदोलन में मेधा पाटकर के साथ कुछ समय तक काम किया। दिल्ली और अखबार का प्रेम एक बार फिर से दिल्ली ले आया। फिर पांच साल हिन्दुस्तान टाइम्स के लिए काम किया। अपने जुदा अंदाज की रिपोर्टिंग के चलते भोपाल और दिल्ली के राजनीतिक हलकों में खास पहचान। लिखने का शौक पत्रकारिता में ले आया और अब पत्रकारिता में इस लिखने के शौक को जिंदा रखे हुए है। साहित्य से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं, लेकिन फिर भी साहित्य और खास तौर पर हिन्दी सहित्य को युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाने की उत्कट इच्छा। पत्रकार एवं संस्कृतिकर्मी संजय द्विवेदी पर एकाग्र पुस्तक “कुछ तो लोग कहेंगे” का संपादन। विभिन्न सामाजिक संगठनों से संबंद्वता। संप्रति – सहायक संपादक (डिजिटल), दिल्ली प्रेस समूह, ई-3, रानी झांसी मार्ग, झंडेवालान एस्टेट, नई दिल्ली-110055

2 COMMENTS

  1. अंकुर जी आप का कविता अच्छा लगा आप के विचार प्रसंसनीय है आपको हार्दिक बधाई ……………..
    लक्ष्मी नारायण लहरे
    कोसीर छत्तीसगढ़

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