पंजाब का सबसे बड़ा मुद्दा शराब और नशीले पदार्थों का खात्मा है !

तथ्य यह है कि हर चुनाव में मुसलमानों का वोट अत्यंत महत्व रखने के कारण चर्चा में रहता है। देश के सभी छोटे और बड़े राजनीतिक दल मुसलमानों के वोट हासिल करने के विभिन्न तरीके से संघर्ष करते हैं। मुसलमानों के वोट जिस पार्टी या उम्मीदवार को मिलने की उम्मीद हो जाए, उसकी सफलता लगभग तय है। इसके बावजूद न मुसलमानों को अपने वोट का मूल्य मालूम है और न ही मुस्लिम प्रतिनिधियों या दलों को इस स्थिति को मद्देनजर रखते हुए मुसलमानों से संबंधित मुद्दों को घरेलू स्तर पर, क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर या सामाजिक स्तर पर, उनके समाधान में प्रगति का अवसर मिलता है। अगर कुछ होता भी है तो यह कि कुछ मुसलमान समय समय पर राजनीतिक दलों से अपने सम्बन्ध स्थापित करते हैं, फिर संबंधों और अपनी स्थिति के आधार पर लेनदेन का सौदा कर लेते हैं। नतीजे में वह तो खूब फ़ायदा उठाते हैं इसके बावजूद मुस्लमान एक समुदाय के रूप में या समाज में पिछड़े होने की बिना पे कोई फ़ायदा नही उठा पाते।

 

इसके विपरीत स्वतंत्रता से लेकर आज तक मुसलमानों को एक समुदाय के रूप में राजनीतिक स्तर पर कोई बड़ा फायदा नहीं हो सका है। वहीं भारतीय मुसलमानों का एक बड़ा मुद्दा उनके राजनीतिक महत्व और हैसियत का न होना भी है जिसके कारण वह हर बार चुनाव में उन दलों को अपना कीमती वोट देते हैं जो खुद को आमतौर पर सांप्रदायिक तत्त्वों के खिलाफ राजनीति में सक्रिय होने का दावा करते हैं या अपने प्रतिद्वंद्वी उनके खिलाफ खड़े करते हैं। लेकिन यह भी अजीब त्रासदी है कि वह राजनीतिक दल जिन्हें सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ चुनाव के समय प्रतिद्वंद्वी माना जाता है या उनके खिलाफ वह अपने प्रतिनिधियों को खड़ा करते हैं, बहुत जल्द वह भी उन राजनीतिक दलों से अपने संबंधों का निर्माण करने की चिंता में ग्रस्त हो जाते हैं, जिनके खिलाफ अल्पसंख्यकों और पीड़ितों ने अपना कीमती वोट दिया था।

 

वहीं यह बात भी सत्य से परे नहीं है कि सांप्रदायिक ताकतों के विरुद्ध राजनीतिक दल, सामने से तो सांप्रदायिक दलों से अपने संबंध मज़बूत करती नज़र नही आतीं, फिर भी सांप्रदायिकता से प्रभावित धारकों की एक बड़ी संख्या उनके नीतिगत संस्थानों और उनकी विचारधारा में मौजूद होते हैं, जिनके आधार पर सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ वोट डालने वालों को चुनाव के बाद, पांच साल की अवधि में कोई विशेष लाभ नहीं पहुंचता। न किए गए वादे पूरे किए जाते हैं, न उनके लिए किसी प्रकार की योजना शुरू होता है, न वर्तमान योजनाओं का लाभ उठाने का कार्यक्रम बनाया जाता है, न समाधान पे ध्यान दिया जाता है और न ही किसी भी स्तर पर लगता है कि अल्पसंख्यकों और पीड़ितों की ओर ध्यान दया जा रहा है। नतीजे में समस्याएं वहीं के वहीं मौजूद रहती हैं और कम नहीं होती तथा नई समस्याएं जो हर दिन सामने आती हैं वह अल्पसंख्यकों और पीड़ितों की मज़ीद कमर तोड़ देती हैं।

 

बातचीत की इस पृष्ठभूमि में मुसलमानों के वोट प्रतिशत और समस्याओं के साथ देश और समाज के सामान्य मुद्दों का भी विश्लेषण क्या जाना चाहिए और देखना चाहिए कि क्या देश में समस्याओं का अंत हो रहा है या नहीं? तथा हर सुबह देशवासी जो एक नई समस्या के साथ जूझते नज़र आते हैं उसकी वजह क्या है? लेकिन फिलहाल हम अल्पसंख्यकों और पीड़ितों की समस्याओं पर बात न करते हुए पंजाब की मौजूदा स्थिति की समीक्षा करेंगे। इस के बावजूद हमारा सुझाव यही है कि अल्पसंख्यकों और पीड़ितों के प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत और सामूहिक, हर स्तर पर उठाए गए सवालों की समीक्षा करनी चाहिए। साथ ही समाधान के लिए रणनीति का तैयार किया जाना और उसमें प्रगति की ओर हर समय ध्यान और विचार करते रहने भी ज़रूरी है।

 

पिछले सप्ताह हमने पंजाब की स्थिति पर चर्चा की थी, जहां मोटे तौर पर यह बात सामने आई थी कि पंजाब में हालांकि अल्पसंख्यकों की समस्याएं नाममात्र हैं वहीं राज्य में धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक कुछ विशिष्ट पाक्टस में ही रहते हैं। इसके बावजूद पंजाब के कई अहम मुद्दे ऐसे हैं जिन्हें बतौर मुसलमान और बतौर देश का नागरिक मुसलमान नाज़ अंदाज़ नहीं कर सकते। इन समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या शराब और नशीले पदार्थों का सेवन है, जिसने राज्य के हर घर को प्रभावित क्या हुआ है। दूसरी ओर भ्रष्टाचार है जिसने राज्य की जड़ें हर स्तर पर खोखली की हुई हैं। तीसरे, बेरोजगारी का बढ़ता ग्राफ और बढ़ती महंगाई, किसानों के ऋण, खेती से सम्बंधित समस्याएं, सतलुज का पानी और उस पर अधिकार, शैक्षिक पिछड़ापन, महिलाओं के अधिकारों से खिलवाड़ और राज्य में दोपार्टी प्रणाली का अस्तित्व भी एक प्रकार की समस्या ही है। जिसके नतीजे में जनता के सामने कोई तीसरा विकल्प नहीं होना, लोकतंत्र का खुला मज़ाक़ है। मज़ाक़ इसलिए कि दोनों ही राजनीतिक दल एक समय से जनता का शोषण करती आई हैं और समाधान में गंभीरता नहीं दिखती। यही कारण है कि आज शराब और नशीले पदार्थों के सेवन से हर घर प्रभावित है, और मज़े की बात यह कि यह शराब के ठेके भी वही लोग प्राप्त करते हैं जिन पर जिम्मेदारी है कि वह इसके नुकसान से जनता को बचाएं। फिर क्यूँ कि राज्य में एक बड़ी राशि नशीले पदार्थों और शराब को बेचने से प्राप्त हो रही है, इसलिए इसके खात्मे के लिए सरकार और उनके हवाली मवाली चिंताजनक चिंतित नहीं दिखते। वहीं शराब और नशा सेवन में राज्य का युवा, जवान और बूढ़े सभी न सिर्फ परेशान हैं बल्कि पीड़ित भी हैं। वहीं बे इंतहा शराब और नशे की लत ने युवाओं के कौशल को बर्बाद कर दिया है, साथ ही धन का इस्तेमाल एक ऐसी सामग्री प्राप्त करने के लिए क्या जा रहा है जिससे कुछ हासिल होने की बजाय उलटा नुकसान हो रहा है। मादक पदार्थों की लत ने स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ाया है, सामाजिक बुराईयां आम हो रही हैं, परिवार प्रणाली बुरी तरह से प्रभावित है, बहनों और बेटियों की इज़्ज़त तार तार हो रही है, साथ ही इस लत ने युवाओं को बेरोजगारी में भी ला धकेला है, गुंडागर्दी में वृद्धि हुई है, वहीं कानून एवं व्यवस्था कमजोर हुई है। इस पूरे पृष्ठभूमि में राज्य में शराब और नशीले पदार्थों का सफाया सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है।

 

4 फरवरी 2017 को पंजाब की 117 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने वाले हैं। जिस के लिए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया है। कांग्रेस के घोषणा पत्र में लड़कियों को मुफ्त शिक्षा देने, नौकरियों और शिक्षा में महिलाओं को 33% प्रतिशत आरक्षण, रोजगार और किसानों पर विशेष फोकस, युवाओं को स्मार्टफोन, 4 सप्ताह में राज्य को नशा मुक्त करने, पंजाब में उद्योग को बढ़ावा देने, किसानों को कम पैसे में बिजली आपूर्ति और ‘पंजाब का पानी पंजाब के लिए’, जैसे वादे किए हैं। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी ने किसानों को 12 घंटे मुफ्त बिजली देने के साथ ही फसल बर्बाद होने पर किसानों को 20 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा देने, किसानों का कर्ज माफ करने तथा 2018 तक सभी किसानों के ऋण से मुक्त राज्य बनाने, सतलुज यमुना लिंक के लिए ली गई किसानों की जमीन वापस करने, शराब और नशीली दवाओं पर प्रतिबंध लगाने, बेरोजगारी खत्म करने, शिक्षा को बढ़ावा देने और इसे सार्वजनिक करने, जैसे वादे किए हैं।

 

वहीं ताजा स्थिति यह है कि नवजोत सिंह सिद्धू ने भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया है, और उन्होंने भी दूसरों की ले में ले मिलाते हुए आम आदमी पार्टी को “बाहरी” साबित करने की बात कही है। इसके बावजूद राजनीतिक विश्लेषक और जनता की एक बड़ी संख्या राज्य में उभरते तीसरे दल के आगमन की बात करते खूब अच्छी तरह सुने जा सकते हैं। इसके बावजूद यह वक्त ही बताएगा कि राज्य की अहम तरीन मुख्यमंत्री की गद्दी किसके हाथ लगती है।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress